सूर्यमणि तिवारी – अकेलेपन पर विचार


फोन पर ही सूर्यमणि जी ने कहा था कि बहुत अकेलापन महसूस होता है। यह भी मुझे समझ नहीं आता था। अरबपति व्यक्ति, जो अपने एम्पायर के शीर्ष पर हो, जिसे कर्मचारी, व्यवसाय, समाज और कुटुम्ब के लोग घेरे रहते हों, वह अकेलापन कैसे महसूस कर सकता है?

यह साल बॉयोग्राफी के नाम सही!


ये सभी सही पात्र हैं, जीवनी लेखन के। इनके माध्यम से आधुनिक समय में ताराशंकर बंद्योपाध्याय के गणदेवता या मुन्शी प्रेमचंद के कई उपन्यासों का सीक्वेल बन सकता है। पर वह सब करने के लिये मुझे जीवनी विधा का बारीकी से अध्ययन करना चाहिये।

रसूल हम्जातोव का त्सादा और यहां का गांव


रसूल हम्जातोव जैसी दृष्टि मेरी क्यों नहीं? अपने गांव को ले कर क्यों मैं छिद्रान्वेशी बनता जा रहा हूं। उसके लोगों, बुनकरों, महिलाओं, मन्दिरों, नीलगायों, नेवलों-मोरों में मुझे कविता क्यों नहीं नजर आती। नदी, ताल और पगडण्डियां क्यों नहीं वह भाव उपजाते?

नहुष -स्वर्ग से पतित नायक


नहुष में स्वर्ग से पतित होने पर भी मानवीय दर्प बना है। यही दर्प आज भी सफलता से डंसे पर अन्यथा कर्मठ मानवों में दिखता है। यही शायद मानव इतिहास की सफलताओं की पृष्ठभूमि बनाता है।

मुझे क्या पढ़ना, देखना या सुनना चाहिये?


पढ़ने, देखने या सुनने के इतने विकल्प जीवन में पहले कभी नहीं थे। अब टेलीवीजन का महत्व खत्म हो गया है। जो कुछ है वह मोबाइल या टैब पर है। जब लिखना होता है तब टैब या लैपटॉप पर जाना ठीक लगता है। उसके लिये कभी कभी लगता है कि विण्डोज वाले लैपटॉप की बजायContinue reading “मुझे क्या पढ़ना, देखना या सुनना चाहिये?”

हेमेन्द्र सक्सेना जी के संस्मरण – पुराने इलाहाबाद की यादें (भाग 4)


भारत के उज्वल भविष्य की हमारी आशायें किसी अनिश्चय या भय से कुन्द नहीं हुई थीं। हम यकीन करते थे कि आम आदमी की जिन्दगी आने वाले समय में बेहतर होने वाली है।