आपने ग्लैमरस घोड़ा देखा होगा। कच्छ के रन के गधे भी बहुत ग्लैमरस होते हैं। पर कभी ग्लैमरस खच्चर/म्यूल देखा है? मैने नहीं देखा।
ग्लैमर शायद शरीर-मन-प्राण के समग्र से जुड़ा है; अपने आप की अवेयरनेस (awareness – जाग्रतावस्था) से जुड़ा है। खच्चर में अवेयरनेस नहीं है। लिहाजा खच्चर ग्लैमरस नहीं होता।
सवेरे की सैर के दौरान मैने दो खच्चर देखे। कूड़े और घास के बीच बड़े शान्त भाव से घास चर रहे थे। उनकी पेशिंयां/पसलियां भी बुझी-बुझी थीं। थोड़ा दिन निकलने पर बोझ ढोने के काम में लगना ही था उन्हें।
बड़े ही अनिक्षुक भाव से उन्होंने अपनी फोटो खिंचवाई।
किसी कोण से कुछ भी ग्लैमर दिखा आप को चित्र में?
लेकिन ग्लैमर की बात ही क्यों की जाये। ग्लैमर पेज थ्री में स्थान दिला सकता है। ग्लैमर पित्जा का प्रतीक है| पर अगर अपना जीवन-भोजन बथुआ और बजरी की रोटी पर टिका है तो ग्लैमर की क्या सोची जाये। खच्चरीय दृष्टिकोण से; एक आम मध्यवर्गीय जीव की जिन्दगी में ग्लैमर (या जो कहें) तो यही बनता है कि हम पर पत्थर की पटिया की बजाय रूई लादी जाये। जिससे कम से कम पृष्ठ भाग छिलने से बचा रहे।
यह जीवन काफी हद तक खच्चरीय है। जीवन लदान हेतु है। जीवन है बोझा ढोने का नाम। जीवन ग्लैमर का पर्याय कदापि नहीं!
थोड़ी खच्चरीय-कर्म योग की बात कर ली जाये।
| गीता का कर्म-योग: कर्म पर आपका अधिकार है, फल पर नहीं – यह जीवन-दर्शन का मूल तत्व है। मूल तत्व पर ध्यान देना चाहिये। |
खच्चरीय कर्म-योग: न कर्म पर आपका अधिकार है, न फल पर। जो जब लादा जाये उसे ले कर जिस दिशा में हांका जाये, सिर झुकाये चल देना, बिना आपत्ति, बिना दुलत्ती झाड़े – यह जीवन-दर्शन का म्यूल तत्व है। म्यूल* तत्व पर और अधिक ध्यान देना चाहिये। |
अब साहब मालगाड़ी की सतत गणना करने वाला ब्लॉगर खच्चर और लदान पर न लिखेगा तो क्या कामायनी और ऊर्वशी पर लिखेगा! यह जरूर है कि आपने अगर टिप्पणी में ज्यादा मौजियत की; तो हो सकता है पत्नीजी सवेरे की सैर पर हमारे साथ जाने से इंकार कर दें! आखिर यह पोस्ट सवेरे की सैर की मानसिक हलचल का परिणाम है। और पत्नी जी इस प्रकार के ऊटपटांग जीवन-दर्शन के पक्ष में कदापि नहीं।

माननीय महोदय,आज आपके ब्लाग पर आने का अवसर मिला। बहुत ही उपयोगी रचना है आपकी। यदि आप इन्हें प्रकाशित कराना चाहते हैं तो मेरे ब्लग पर अवश्य ही पधारे। आप निराश नहीं होंगे।समीक्षा के लिए http://katha-chakra.blogspot.comआपके संग्रह/पुस्तक प्रकाशन के लिए http://sucheta-prakashan.blogspot.com अखिलेश शुक्ल
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हाय रे यह खच्चरीय जिन्दगी !
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मुझे तो इस खच्चर में मॉडल बनने की पूरी सम्भावना दिखाई देती है. अगर यह फ़ोटो आप किसी विज्ञापन कम्पनी को भेज दें तो यक़ीन मानिए इन ख्च्चर जी को मॉडलिंग के एसाइनमेंट भी मिल जाएंगे. ग्लैमर तोअ फिर मिलेगा ही मिलेगा. और हाँ मेरी इस बात को किसी व्यंग्यकार की बात मानकर हल्के में मत लीजिएगा.
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हमारे यहाँ सर्दियो में बाजरे क़ी रोटी ही खायी जाती रही है.. उसे जब हल्की आँच पर पका कर घी में चुरकर ऊपर गुड रखकर मम्मी थाली में परोसती है तो बाजरे क़ी रोटी भी बड़ी ग्लैमरस लगती है.. म्यूल तत्व बरकरार रखने के लिए फ़्यूल तत्व भी ज़रूरी है.. वो कहा से मिले? प्रात क़ी मधुर बेला में आप ब्लॉग के लिए पोस्ट तलाश लेते है.. ब्लॉगिंग का ये मूल तत्व तो अद्भुत है..
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“खच्चरीय कर्म-योग: न कर्म पर आपका अधिकार है, न फल पर। जो जब लादा जाये उसे ले कर जिस दिशा में हांका जाये, सिर झुकाये चल देना, बिना आपत्ति, बिना दुलत्ती झाड़े – यह जीवन-दर्शन का म्यूल तत्व है।”आपकी प्रातःकालीन हलचल सार्थक रहा. आज हमारा जीवन बहुत हद तक खच्चरत्व कर्म योग के सिद्धांत पर ही चलित है….हाथ में कैमरा लिए आपने फोटो खिचवाने के अनिच्छुक खच्चरों के जरिये खच्चरीय कर्म-योग (गीता ज्ञान) दे दिया. खच्चरीय कर्म योग गीता का आधुनिक पाठ है यातेज और करारा व्यंग
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अफसर को दार्शनिक में बदलने में रेल लदान और खच्चरों का योगदान-यह विषय एमफिल नहीं, तो एक पोस्ट की मांग तो करता है। सही सोहबतों में हैं जी। ब्लागरों से खच्चर तक, वैसे पसली वाली सुंदरियां इन हैं फैशन में। स्वस्थ सुंदरियों का पेज थ्री रेट डाऊन है। खच्चर दर्शन पर व्यवस्थित तरीके से कुछ कीजिये। अठारह अध्याय तो बनते ही बनते हैं। कैमरा कौन सा यूज कर रहे हैं, इन सब फोटुओं के लिए। नोकिया एन 73 म्यूजिक एडीशन के कैमरे के बारे में क्या राय है आपकी।
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उदारीकरण के इस समय में प्रत्येक भाव और विचार की मार्केटिंग की भरपूर सम्भावनाएं हैं। ‘ज्ञानदत्त पाण्डे का खच्चरीय चिन्तन’ शीर्षक से इसका कापी राइट कराने पर विचार कीजिएगा।
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मौज मौज में ही आपने बहुत गंभीर बात कह दी। यदि भाभी जी सुन नहीं रही हों तो कहूंगा कि गीता से भी बड़ा ज्ञान दे दिया :) लेकिन उस खच्चर के अभागेपन पर मुझे अफसोस हो रहा है। उसके फोटो के साथ इतनी सुंदर पोस्ट लिखी गयी है और उस बेचारे को पता तक नहीं :)
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Gadha gadha rehega…lekin insaan kabhi bhi gadha ban sakta hai…denchu ! denchu !!
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जानवरों के व्यवहार से मानवीय कर्म-प्रवृत्तियों की सुचारु विवेचना की जा सकती है । खच्चरों के अतिरिक्त बैल और अजगर भी बहुतायत में प्राप्त होते हैं । चीन की सभ्यता में एवं भारतीय पंचांग में प्रत्येक मनुष्य को किसी न किसी जानवरों से सम्बद्ध किया जाता है ।साहित्यवादियों की परवाह किये बगैर लिखिये । भाषा विचारों का माध्यम है, न कि बाधक ।
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