गर आतिश-ए-दोज़ख बर रू-ए-जमीं अस्त।
हमीं अस्तो हमीं अस्तो हमीं अस्त!
यह पूरी पोस्ट चुरातत्वीय है। मेरा योगदान केवल भावना अभिव्यक्ति का है। आतिश-ए-दोज़ख से (मैं समझता हूं) अर्थ होता है नर्क की आग। बाकी मीन-मेख-मतलब आप निकालें।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
गर आतिश-ए-दोज़ख बर रू-ए-जमीं अस्त।
हमीं अस्तो हमीं अस्तो हमीं अस्त!
यह पूरी पोस्ट चुरातत्वीय है। मेरा योगदान केवल भावना अभिव्यक्ति का है। आतिश-ए-दोज़ख से (मैं समझता हूं) अर्थ होता है नर्क की आग। बाकी मीन-मेख-मतलब आप निकालें।
जिस समाज के सज्जन, निष्क्रिय और मौन रहें तथा दुर्जन सक्रिय और मुखर – वहां यह सब अनिवार्य और अपरिहार्य ही है।भारत भी इसी मुकाम पर चल पडा है। देखते जाइए, यहां भी यह सब होगा।
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सौ फीसद सही.
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सर, यह खबर देख कर बहुत ही दुःख हुआ था। परमात्मा सब को सदबुद्धि प्रदान करे, यही प्रार्थन है।
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वास्तव में दोजख (नरक से क्या कम है) दिख रहा है . मानवता को चूर चूर करता हुआ चित्र.
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‘चुरातत्वीय’ पोस्ट के माध्यम से गूगल अर्थ का सुन्दर और लॉस एंजल्स टाइम्स का वीभत्स चित्र उपलब्ध कराने हेतु आभार. चित्र देखकर ऐसी शर्मनाक मानसिकता पर अफ़सोस ही जाहिर किया जा सकता है.
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kisi news site me pakistan ke liye ek report ke hawale se jo para tha, ise dekh ke yehi laga ki shartiya woh sahi ho sakta hai agar aisa hi chala to.lekin ye tay hai swarg aur nark isi duniya me hain, unhe dekhne ke liye marne ka intzar karne ki jaroorat nahi
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यह दृश्य हृदय विदारक है.
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अरुन्धति रॉय कहाँ है?तीस्ता सेतलवाड कहाँ है?
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भाई ज्ञान जी,भले ही आपकी पोस्ट, जैसा की आप स्वीकारते हैं “पूरी पोस्ट चुरातत्वीय है।” किन्तु मानवीय हरकत के अधोपतन का जीता जागता नमूना है.किसी धर्म या महजब में ऐसी हरकत वन्दनीय नहीं.फिर महजब के नाम पर जंग लड़ने वालों पर लोग क्या स्वेच्छा से योगदान दे रहे है विशश्वत नहीं लगता, विश्श्वस्त तो यह लगता की लोगों में भयंकर भय पैदा करा कर जेहाद के नाम पर हर वो कुछ किया जा रहा है, जिसकी स्वीकृति किसी महजब में नहीं है.फोटो से भावना अभिव्यक्ति को शक्ति मिली , सत्य है पर आज ऐसे कृत्य कहाँ नहीं हो रहे हैं, बस नहीं है तो उसकी ऐसी तस्वीर.ऐसी तस्वीरें सामने न आने पाए इसके भी पुख्ता उपाए आजकल उठाय जाने लगे हैं.जहाँ हर गलत काम को सामने लाने पर रोक, टोक, परेशानियाँ, परिवार पर संकट जैसे खतरे हो वंहा ऐसे ही कृत्य अपना और प्रसार करेंगे इसमें तनिक भी संदेह नहीं और फिर लोहा ही लोहे को कटेगा यह भी निश्चित है.चन्द्र मोहन गुप्त
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हौलनाक!
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