स्वात : आतिश-ए-दोज़ख


गर आतिश-ए-दोज़ख बर रू-ए-जमीं अस्त।

हमीं अस्तो हमीं अस्तो हमीं अस्त!

 Swat


स्वात घाटी का नक्शा और चित्र, गूगल अर्थ से।


SwatFloggingफोटो लॉस एंजेलेस टाइम्स से।

यह पूरी पोस्ट चुरातत्वीय है। मेरा योगदान केवल भावना अभिव्यक्ति का है। आतिश-ए-दोज़ख से (मैं समझता हूं) अर्थ होता है नर्क की आग। बाकी मीन-मेख-मतलब आप निकालें।   


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

31 thoughts on “स्वात : आतिश-ए-दोज़ख

  1. जिस समाज के सज्‍जन, निष्क्रिय और मौन रहें तथा दुर्जन सक्रिय और मुखर – वहां यह सब अनिवार्य और अपरिहार्य ही है।भारत भी इसी मुकाम पर चल पडा है। देखते जाइए, यहां भी यह सब होगा।

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  2. ‘चुरातत्वीय’ पोस्ट के माध्यम से गूगल अर्थ का सुन्दर और लॉस एंजल्स टाइम्स का वीभत्स चित्र उपलब्ध कराने हेतु आभार. चित्र देखकर ऐसी शर्मनाक मानसिकता पर अफ़सोस ही जाहिर किया जा सकता है.

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  3. kisi news site me pakistan ke liye ek report ke hawale se jo para tha, ise dekh ke yehi laga ki shartiya woh sahi ho sakta hai agar aisa hi chala to.lekin ye tay hai swarg aur nark isi duniya me hain, unhe dekhne ke liye marne ka intzar karne ki jaroorat nahi

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  4. भाई ज्ञान जी,भले ही आपकी पोस्ट, जैसा की आप स्वीकारते हैं “पूरी पोस्ट चुरातत्वीय है।” किन्तु मानवीय हरकत के अधोपतन का जीता जागता नमूना है.किसी धर्म या महजब में ऐसी हरकत वन्दनीय नहीं.फिर महजब के नाम पर जंग लड़ने वालों पर लोग क्या स्वेच्छा से योगदान दे रहे है विशश्वत नहीं लगता, विश्श्वस्त तो यह लगता की लोगों में भयंकर भय पैदा करा कर जेहाद के नाम पर हर वो कुछ किया जा रहा है, जिसकी स्वीकृति किसी महजब में नहीं है.फोटो से भावना अभिव्यक्ति को शक्ति मिली , सत्य है पर आज ऐसे कृत्य कहाँ नहीं हो रहे हैं, बस नहीं है तो उसकी ऐसी तस्वीर.ऐसी तस्वीरें सामने न आने पाए इसके भी पुख्ता उपाए आजकल उठाय जाने लगे हैं.जहाँ हर गलत काम को सामने लाने पर रोक, टोक, परेशानियाँ, परिवार पर संकट जैसे खतरे हो वंहा ऐसे ही कृत्य अपना और प्रसार करेंगे इसमें तनिक भी संदेह नहीं और फिर लोहा ही लोहे को कटेगा यह भी निश्चित है.चन्द्र मोहन गुप्त

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