सवेरे की हाइपर एक्टिविटी


जिनका सोचना है कि नौकरशाही केवल ऐश करने, हुक्म देने और मलाई चाभने के लिये है; उन्हें हमारे जैसे का एक सामान्य दिन देखना चाहिये।

सवेरे की व्यस्तता बहुत थकाऊ चीज है। वे लोग जो सवेरे तैयार हो कर भागमभाग कर जल्दी काम पर पंहुचते होंगे और फिर काम उन्हें एंगल्फ (engulf – निगल, समाहित) कर लेता होगा; वे मेरी व्यस्तता का अनुमान लगा सकते हैं। मेरे लिये काम पर पंहुचने की भागमभाग इतनी नहीं है, जितनी काम के मुझे ऐज-इज-ह्वेयर-इज बेसिस पर एंगल्फ कर लेने की है। जिनका सोचना है कि नौकरशाही केवल ऐश करने, हुक्म देने और मलाई चाभने के लिये है; उन्हें हमारे जैसे का एक सामान्य दिन देखना चाहिये।

Labourers पर हम ही केवल हाइपर एक्टिविटी (अत्यधिक क्रियाशीलता) के शिकार नहीं हैं। सवेरे की सैर पर मैं एक खण्डहर में रह रहे दिहाड़ी मजदूरों की हाइपर एक्टिविटी देखता हूं। सड़क के किनारे बन रही दुकानों को कभी डिमॉलिश (demolish – ढहाना) कर दिया गया होगा। उन्हीं के खण्डहरों में ये पन्द्रह बीस मजदूर रहते हैं। सवेरे काम पर निकलने के पहले ये नित्यकर्म से निपट रहे होते हैं। दो-तीन सामुहिक चूल्हों पर कुछ मजदूर अपनी रोटियां बना रहे होते हैं। सड़क के उस पार एक सामुहिक नल पर कुछ कुल्ला-मुखारी-स्नान करते देखे जाते हैं। एक दूसरे की दाढ़ी बनाते भी पाया है मैने उन्हें।

Labourers1इन चित्रों में बाहर जितने लोग दीख रहे हैं, उससे ज्यादा इन खण्डहरों के अन्दर हाइपर एक्टिविटी रत रहते हैं।

उनके तसले, फावड़े और अन्य औजार बाहर निकाले दीखते हैं। कहीं कोई सब्जी काटता और कोई आटा गूंथता दीखता है। साधन अत्यन्त सीमित नजर आते हैं उनके पास। पता नहीं उनकी वर्क-साइट कितनी दूर होगी। पैदल ही जाते होंगे – कोई साइकल आदि नहीं देखी उनके पास। अपना सामान वहीं खण्डहर में सीमेण्ट की बोरियों में लपेट-लपाट कर काम पर जाते होंगे।

उन्हें सवेरे पास से गुजरते हुये कुछ क्षणों के लिये देखता हूं मैं। उसके आधार पर मन में बहुत कुछ चलता है। कभी कभी लगता है (और मन भी ललचाता है उनकी मोटी रोटियां सिंकते देख) कि उनके साथ कुछ समय बिताऊं; पर तब मेरा काम कौन करेगा? कौन हांकेगा मालगाड़ियां?

अभी कहां आराम बदा, यह मूक निमंत्रण छलना है।
अभी तो मीलों मुझको, मीलों मुझको चलना है।   


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

48 thoughts on “सवेरे की हाइपर एक्टिविटी

  1. अत्‍यधिक विलम्‍ब से टिप्‍पणी करने का सुख – बहुत सुख हुआ यह देख/जान कर कि हर कोई दुखी है। मेरी तरह खुदा का भी खाना खराब हे।

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  2. हमारी सुबह ही सभी की तरह व्यस्तता भरी होती है….लेकिन सारे दिन की व्यस्तता के बाद कई बार बल्कि अक्सर रात भी हायपर एक्टिव हो जाती है! जो दूर बैठे सोचते हैं की ऐश की जिंदगी है वे नज़दीक आयेंगे तो धारणा बदल जायेगी!

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  3. हमारी हायपर एक्टिविटी तो शिफ्टों के हिसाब से बदलते रहती है। ज़्यादातर यह शिफ़्ट खतम होने के समय नज़र आती है।ये मालगाड़ियाँ हाँकने वाला ज़ुमला खासा पसंद आया।

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  4. हम कुछ नही कर सकते.सिवाय पुराने फुर्सत के दिनों को याद करने के …हरिवंश जी का अनुवाद और रॉबर्ट फ्रोस्ट की मूल कविता दोनों ही बहुत पसंद है मुझे.

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  5. नौकरशाही ऐश करने के लिए तो कतई नहीं है, हाँ नाजायज सुविधाओं का लाभ नौकरशाही जरूर ले लेती है – जैसे मातहत कर्मचारी से घरेलू काम करवा लेना.या सरकारी गाड़ी निजी उपयोग में लाना आदि.जितना बड़ा अफसर है उसे उतनी ही उलझन है. ऊपर का दबाव भी झेलना है और मातहतों को भी साथ ले कर चलना है. वैसे ऐश करना या अति व्यस्तता हो जाना बहुत कुछ कार्य के स्वरूप पर भी निर्भर करता है. कुछ लोग ऐसे पदों पर भी हैं जहां कोई काम नहीं.वे ऐश कर रहे हैं.सुबह की व्यस्तता जिम्मेदार अफसर की ज्यादा रहती है. आप गौर से देखें मजदूर की व्यस्तता कम नहीं है, लेकिन वह तनाव में नहीं दिखता, उस व्यस्तता के बेच भी वह आनंद के क्षण चुरा लेता है, जबकि सफ़ेदपोश ऐसा नहीं कर पाता.

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  6. बहुत सही बात. रेलवे में आप जिस पोस्ट पर हैं उसपर काम के दबाव का मुझे खूब पता है. मैं स्वयं एक महकमे में अनुवादक हूँ और बहुतों को यह लगता है कि हिंदी से जुड़े पदों पर कुछ काम नहीं होता… सही है, लेकिन मुझ जैसे कुछ लोगों को उसके एवज में इतनी तरह के ढेर सारे काम करने पड़ जाते हैं कि बस! यहाँ दिल्ली में मैंने ऐसे दफ्तर भी देखे हैं जहाँ लोग आराम से १२ बजे तक आते हैं और ४:३० बजे चले जाते हैं. और सब मुझसे उम्मीद करते हैं कि मैं extra mile चलूँ… ऐसे ही सबको खुश करने के चक्कर में extra mile चलते-चलते मैंने खुद का कितना नुक्सान कर डाला.

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  7. कितना भिन्न है ये नज़ार उस गांव के दृष्य से जहां सुबह-सवेरे किसान कांधे पर अपना हल लिए बैलों की जोडी की रस्स्सी हाथ में थामे किसी लोकगीत की तान साधे खेत की ओर निकल पडता है!

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  8. नौकरशाही केवल ऐश करने, हुक्म देने और मलाई चाभने के लिये है , मेरे पिता जी का कहना भी यही होता है . कहते है बैंक की नौकरी अच्छी होती है . पिछले २ वर्षो से एक बैंक मनेजर के साथ रह रहा हूँ और मेरे बॉस ( वि आर एस ले चुके ) भी पहले मनेजर रह चुके है , उनका कहना है की बैंक की नौकरी कुत्ते की नौकरी है कभी मत करना और किसी को भी सलाह मत देना . इन बातों से अब जान गया हूँ की “दूर से सब हरा-हरा दिखता है” , पास जाने पर असलियत पता चलती है .

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