चाय की दुकान पर ब्लॉग-विमर्श


Mike इलाहाबाद में ब्लॉगिंग पर गोष्ठी हुई। युवा लोगों द्वारा बड़ा ही प्रोफेशनली मैनेज्ड कार्यक्रम। गड़बड़ सिर्फ हम नॉट सो यंग लोगों ने अपने माइक-मोह से की। माइक मोह बहुत गलत टाइप का मोह है। माइक आपको अचानक सर्वज्ञ होने का सम्मोहन करता है। आपको अच्छे भले आदमी को कचरा करवाना है तो उसे एक माइक थमा दें। वह गरीब तो डिरेलमेण्ट के लिये तैयार बैठा है। जो कुछ उसके मन में पका, अधपका ज्ञान है – सब ठेल देगा। ज्यादा वाह वाह कर दी तो एक आध गजल – गीत – भजन भी सुना जायेगा।  

Mikeaastraमाइक-आक्रमण से त्रस्त युवा और अन्य

ब्लॉगिंग को उत्सुक बहुत युवा दिखे। यह दुखद है कि वे मेरे ठस दिमाग का मोनोलॉग झेलते रहे। यह मोनोलॉग न हो, इसके लिये लगता है कि हफ्ते में एक दिन उनमें से ५-७ उत्सुक लोग किसी चाय की दुकान पर इकठ्ठा हों। वहां हम सारी अफसरी छोड़-छाड़, प्रेम से बात कर पायें उनसे। ऑफकोर्स कट चाय और एक समोसे का खर्चा उन्हें करना होगा।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

34 thoughts on “चाय की दुकान पर ब्लॉग-विमर्श

  1. इसीलिये मैंने आक्रान्त होकर आपसे पूंछा था ( अब आप से ही क्यों पूंछा था ? ) की मुझे कितनी देर बोलना है ? मगर जब आप कुछ भी न बोले तो मैंने भी थोडा अपना माईक मोह दिखा ही दिया ! शंकर शंकर ! ( क्षमां करे क्षमा करें ) यह ससुरी माईक है ही बड़ी कुत्ती चीज -पूरी तरह सहमत ! और क्या क्या मानसिक हलचल रही ? मेरी तो उपलब्धियां ही उपलब्धियां रहीं ! (ज्ञान ) साहित्य और लालित्य दोनों की जोड़ी -माने आपके साथ ही आदरणीय रीता जी से मुलाकात ! अनूप जी जो शरीफ शरारतों का मानो कोई मौका ही हाथ से नहीं जाने देना चाहते ! सिद्धस्थ सिद्धार्थ का शिष्टाचार और कुशल वक्ता वाचकनवी को सुनना ,इमरान महान की शेरो शायरी -यह सब कया कोई कभी भी भूल सकता है ? सब कुछ अविस्मर्णीय !

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  2. तो कब आ रहे हैं फतेहपुर (अपने पड़ोस में ) सोचिये तब तक मैं चाय की दुकानों का सर्वे कर के आता हूँ !!इलाहाबाद में तो कटरा में लक्ष्मी चौराहा पर ही ज्यादा उठा बैठा हूँ?ज्यादा औपचारिकतायें होने से मूल विषय भटक जाता है !! फिर माइक का तड़का??प्राइमरी का मास्टरफतेहपुर

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  3. खैर चाहे माइक सहित हो या गली-नुक्कड़ खड़े-खड़े। दोनों तरह की बकैती में हम माहिर हैं। अगली बार वाला जहां भी हो समय से बता दीजिएगा। छुट्टी का जुगाड़ थोड़ा कठिन होता है ना

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  4. सर जी एक बार हम भी गए थे ऐसे ही बैठक में. बहुत पहले पहुँच गए. रेस्टोरेंट का नाम भी कुछ फ्रेंच सा था. सोफे पे बैठ कर जब उनका मेनू कार्ड देखा तो पाया कि एक काफ़ी ७५ रुपये की थी. हम चुप चाप खिसक लिए. बड़ी प्रसन्नता हुई आपके कट चाय और समोसे के संग वाले सुझाव से. .

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  5. आलोक पुराणिक को भी पढ़ लिए..अपनी तो किस्मत ही खोटी निकली:न अफसर है, न मास्टर और न इलाहाबादी…चलते हैं जी यहाँ से भारी मन से.तस्वीर में देखकर लगा था कि इस बार तो ट्यूब के जगह बाल्टी भर गई होगी कई दिन के मटेरियल के लिए…कल से जुगाली शुरु होगी क्या??

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  6. हम ना बोलता माइक देखकर, हम तो बोलने के पैसा मांगता हूं। भईया धंधा यही है। मास्टरी की नौकरी में यही सुख है कि बकवास सुनाने के भी पैसे मिलते हैं, हाय अफसर इस सुख से वंचित है। वैसे ब्लागर मीट एक ही बहुत है। बहुत ज्यादा नियमित होने से मामला गड़बड़ हो जाता है। फिजूल की चिरकुटईयां ज्यादा हो जाती हैं।

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  7. माइक थाम कर विमर्श करना तो साहित्यिक हो गया जी…ब्लॉगिंग तो कुछ और ही चीज है. कटींग चाय के साथ हो संगोष्टी तो कोई बात भी हो….

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  8. बहुत गलत बात है जी, जो लोग इलाहाबाद में नहीं रहते वो तो आप के ज्ञान से भी जायेगे और चाय समोसे से भी। हम ने फ़ोटोस में देखा कि आप के सामने लैपटॉप रखा था तो यकीनन आप ने पॉवर पोंइंट प्रेसेन्टेशन किया होगा, हमें भी दिखाइए, चाय और समोसे उधार रहे मय सूद वसूल लिजिएगा लेकिन दिखाइए तो …:)

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  9. इस खबर का लिंक यह रहाhttp://www.ahmedabadmirror.com/index.aspx?page=article&sectid=3&contentid=20090406200904060248137172757e222&sectxslt=&pageno=1

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