हटु रे, नाहीं त तोरे…


Sanichara बांई तरफ है पण्डा का तख्त और छतरी। बीच में जमीन पर बैठे हैं इस पोस्ट के नायक! दांई ओर वृद्धगण।

शिवकुटी मन्दिर से गंगा तट पर उतरती सीढ़ियां हैं। उसके बाद बैठते है पण्डा जो स्नान कर आने लोगों को संकल्प – दान कराते हैं। उन पण्डा जी से अभी मेरी दुआ-सलाम (सॉरी, नमस्कार-बातचीत) नहीं हुई है। पर सवेरे सवेरे वहां बैठे लोग एक नियमित दृष्य बनते हैं।

पण्डा अपने पुराने से तख्त पर आसीन होते हैं। बारिश की सम्भावना होने पर पुरानी सी छतरी लगाये रहते हैं। कुछ वृद्ध थोड़ा हट कर यूंही बैठे रहते हैं।

इसी कैनवास में बीच में होते हैं एक सांवले रंग के नंगे बदन, चारखाने की लुंगी पहने दुबले से आदमी – जो मुखारी कर रहे होते हैं या बीड़ी मुंह में दबाये होते हैं। क्या नाम दें उन्हें? रागदरबारी के पात्र नजर आते हैं – बैद जी के अनुचर।

जानवर उनसे बहुत हिले मिले रहते हैं। जानवर माने बकरी या कुत्ता। यहां फोटो में एक कुत्ते के साथ उनका संवाद होता दीख रहा है।

पर शिवपालगंजी संवाद तो उस दिन हुआ था जब ये सज्जन बीड़ी फूंक रहे थे और बकरी उनसे सटी मटरगश्ती कर रही थी। वह बार बार उसे हटा रहे थे पर फिर वह उनके पास आ सट जा रही थी। उनके “हटु रे” कहने का असर नहीं हो रहा था।

Sanichara Dog Dialogueगंगा तट पर कुकुर से संवाद रत!

अन्त में खीझ कर ये सज्जन एक हाथ में बीड़ी लिये और दूसरे हाथ से बकरी धकियाते बोले – हटु रे, नांही त तोरे गं*या में बीड़ी जलाइ देब (हट रे, नहीं तो तेरे विशिष्ट स्थान में बीड़ी जला दूंगा)!

जिगर की आग से पिया को बीड़ी जलाने का आमंत्रण करती है बिपासा! और यहां ये कहां जा कर बीड़ी जला रहे हैं? इसको शूट कर अगर फिल्म बनायें तो क्या होगा वह? समान्तर सिनेमा?

और अगर आप पुराने जमाने के हैं तो यह कहूंगा – ये सज्जन शिवकुटीय समान्तर वेद के होता-अध्वर्यु-उद्गाता है!

[आप पूछेंगे कि “शिवकुटीय समान्तर वेद” क्या है?  “होता-अध्वर्यु-उद्गाता” क्या होते हैं? अब सब सवाल के जवाब हमें ही देने हैं क्या? हम तो मात्र पोस्ट ठेलक हैं! रेण्डमाइज्ड विचार जब तक गायब हों, उससे पहले पोस्ट में लिख मारने वाले। हम क्या खा कर बतायेंगे! आप तो कुछ इस्लाम के विषय में ज्ञानदान करने वाले ब्लॉगरगणों से पूछें, वे हिन्दू दर्शन पर जबरदस्त शोधकार्य कर रहे हैं!]


आज सवेरे का अपडेट – श्रावण मास समाप्त होने पर आज गंगा तट पर भीड़ गायब थी। पण्डा जी भी अपनी गद्दी पर नहीं थे। पर हमारी पोस्ट के नायक महोदय दतुअन चबाते अपनी नियत जगह पर बैठे थे। एक फोटो उनका फिर खींच लिया है। पर कितने फोटो ठेलें ब्लॉग पर!


इन्हें पढ़ें:
काशी नाथ सिंह जी की भाषा
“काशी का अस्सी” के रास्ते हिन्दी सीखें
भविष्यद्रष्टा


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

31 thoughts on “हटु रे, नाहीं त तोरे…

  1. पिछली दो पोस्टों में वर्णित परिवेश को देखने के बाद आपसे कोई यह आशा करे कि आपके विचार विशुद्ध प्रबुद्ध हों और पोस्टों पर सुन्दर और सुशील विषय और भाषा उठायी जाये तो वह कदाचित स्वप्नशीलता की पराकाष्ठा होगी । जब आप भी शिव की बारात के नियमित सदस्य हों तो पोस्टों में शिवकुटीय ’टिंज’ आना स्वाभाविक है । यह सब देखने के बाद ’गंगा बहती हो क्यों’ अवश्य सुना करें मन को शान्ति मिलेगी । सदियों से तो हम सारी ’रिसपोन्सिबिलिटी’ गंगा पर ही डालते आ रहे हैं ।

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  2. 'बिल्लो बकरी' – नमवा तो कटरवा से कटिला बा हो!! ई सतीश कहाँ से पा गईलें.

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  3. आप तो कुछ इस्लाम के विषय में ज्ञानदान करने वाले ब्लॉगरगणों से पूछें, वे हिन्दू दर्शन पर जबरदस्त शोधकार्य कर रहे हैं!बहुत सही पकडा आपने.रामराम.

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  4. ये रहा 'इलाहाबादावली' का रफ ड्राफ्ट जीयालाल उघडे बदन गंगा के तट पर उकडूं बैठे दतुअन चबा रहे हैं, बगल में ही कहीं गुलजार का गीत रेडियो पर बज रहा है -न चक्कुओं की धारन दरांती न कटारऐसा काटे की दांत का निशान छोड देऔर जीयालाल के दतुअन चबाने में अचानक ही विलक्षण तेजी आ जाती है। तभी कहीं से 'बिल्लो बकरी' चरती हुई उधर ही आ जाती है।शेष अगले अध्याय में……. :)

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  5. 'साहित्यिक टच' लिये हुए निवास स्थान पर रहने के कारण एक और कालजयी रचना लिखी जा सकती है जिसका शीर्षक हो सकता है – 'इलाहाबादावली'और हां, दतुअन चबाते इस कैरेक्टर पर एकाध अध्याय बीडी जलावली, बकरी छुआवली और दतुअन चबावली जैसे अध्याय लिखे जा सकते हैं :)

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  6. यह तो अपने प्रिय पाठको से अन्याय है -होता ,अध्वर्यु और उद्गाता का भाष्य भी कर ही दिए होते -काहें उन लोगों पर छोड़ दिए जो पहले से ही हिन्दू और इस्लाम के एकीकरण के पुनीत काम में लगे हैं !

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  7. आप तो कुछ इस्लाम के विषय में ज्ञानदान करने वाले ब्लॉगरगणों से पूछें, वे हिन्दू दर्शन पर जबरदस्त शोधकार्य कर रहे हैं!-चले तो जायें वहाँ समझने मगर इतने से छूटने न पायेंगे और भी बहुत कुछ समझना पड़ेगा. बिना जाने ही जैसे अब तक का जीवन कटा है, वैसे ही थोड़ा बचा भी कट ही जायेगा. बहुत शिकायत नहीं है अभी तक की कटिंग से.-मस्त रहा यह विचार ठेलन भी.

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