पिछले कुछ दिनों से पढ़ रहा हूं कि शहरों में आबादी के घनत्व का अपना एक लाभ है। हाल ही में पढ़ा कि अटलाण्टा और बार्सीलोना लगभग बराबर की आबादी के शहर हैं और दोनो ही ओलम्पिक आयोजन कर चुके हैं। पर बार्सीलोना में लोग अपार्टमेण्ट में रहते हैं और अटलाण्टा में अपने अलग अलग मकानों में। लिहाजा, प्रतिव्यक्ति कार्बन उत्सर्जन अटलाण्टा के अपेक्षा बार्सीलोना में मात्र दसवां हिस्सा है।
घने बसे शहर में लोगों को पैदल ज्यादा चलना होता है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग अधिक होता है। यह मैने मुम्बई सेंट्रल और चर्चगेट के इलाके में देखा था। महिलायें और पुरुष सबर्बन ट्रेन से उतर कर बहुत पैदल चलते थे।
इलाहाबाद में एक गलत बात दीखती है – सड़कों के दोनो ओर फुटपाथ का अस्तित्व ही मरता जा रहा है। दुकानदारों, ठेले वालों और बिजली विभाग के ट्रांसफार्मरों की कृपा तथा नगरपालिका की उदासीनता के चलते फुटपाथ हड़प लिये जा रहे हैं और सडक का अर्थ केवल वाहनों के लिये जगह से लगाया जाता है, फुटपाथ से नहीं।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी और फुटपाथ का अकाल छोटे शहरों के लिये उच्च रक्त चाप सरीखा है। बिगड़ती सेहत का पता भी नहीं चलता और मरीज (शहर) की उम्र क्षरित होती जाती है।
गंगा तट पर घूमने में एक लाभ मुझे दीखता है। गंगा की रेत चलने को निर्बाध स्पेस प्रदान करती है। आप अपनी चप्पल या जूता हाथ में ले कर नंगे पैर चल सकते हैं। बस ध्यान रहे कि गुबरैलों और अन्य कीटों को पहला हक है वहां चलने का!
पर वहां चलने की बाध्यता नहीं है। कभी मन कामचोरी पर उतर आये तो वह चलना बन्द हो सकता है।
शहर ऐसे बनने चाहियें जहां लोगों को पैदल चलना पड़े और चलने की सहूलियत भी हो। क्या सोच है आपकी?
बिजनेस स्टेण्डर्ड का यह पन्ना पढ़ने में अच्छा है।
आदरणीय गोविन्द चन्द्र पाण्डे
बात बात में श्री देवी पाण्डे ने बताया कि श्री गोविन्द चन्द्र पाण्डे की उम्र बहुत हो गई है। आंखों की ज्योति कम हो जाने से वे लिख-पढ़ नहीं पाते। एक व्यक्ति रोज उन्हे पढ़ कर सुनाते हैं। फिर श्री पाण्डे उन्हें डिक्टेशन देते हैं। इस प्रकार सुनने और डिक्टेशन देने के माध्यम से वे नित्य १० घण्टे कार्य करते हैं। ऋग्वेद वाली पुस्तक भी इसी प्रकार लिखी गई थी। यह सुन कर मैं अभिभूत हो गया। श्री गोविन्द चन्द्र पाण्डे (जन्म ३० जुलाई, १९२३) से बत्तीस-तैंतीस साल कम उम्र होने पर भी मैं उतना काम कम ही कर पाता हूं। और जब इन्द्रियां शिथिल होंगी, तब कार्यरत रहने के लिये उनका उदाहरण प्रेरक होगा। श्री गोविन्द चन्द्र पाण्डे का यह चित्र सिद्धार्थ त्रिपाठी ने मुझे ई-मेल से भेजा है। साथ में लिखा है -
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अधिकारीयों ने सड़कों पर पैदल चलना छोड़ दिया है, तो उन्हें महसूस कैसे होगा कि सड़कों पर फुटपाथ की अहमियत क्या है और पहले के ही सही पर बने इन फुटपाथों की हालत क्या से क्या रह गई…………….बची-खुची कसर रजनीतिक पार्टियों के हफ्ता लेने वाले लोग पूरी कर देते हैं, यदि ये फुटपाथ खली हों तो उनकी मोती बैठे थाले आती कमाई बाधित होगी जो………..अजब-गजब खेल है लोकतंत्र में अफसरशाही और रजनीतिक दलों का, "जैसा होना चाहिए" वैसा होने ही नहीं पाता….इलाहबाद शहर के फुटपाथों की सही तस्वीर पेश करने का आभार.
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बहुत पैनी नज़र मारी है आपने.. वाकई फूटपाथ लुप्त होते जा रहे है..
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आदरणीय गोविन्द चन्द्र पाण्डे के अनुकरणीय व्यक्तित्व को नमन …& Foot path & encroachment is a dreadful occurance in Mega cities like Delhi, Bombay or Kolkatta .. India MUST provide basic amenities like Clean water * clean roads * clean living space to its citizen Otherwise, the life expactency & joy in living this LIFE is deffinately eroded . Good & thoughtful post Gyan bhai Saab ..Do see mmy new post, there is a mention of your BLOG :)with warm rgds,- Lavanya
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गोविन्द चन्द्र पांडे जी से परिचय करने का आभार..ईश्वर उनकी जीवटता को ऐसे ही बनाये रखे..!!
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शोचनीय स्थिति है. इन्फ़्रास्ट्रक्चर में सुधार होना है पर पहले लोगों की मानसिक संरचनाओं में सुधार की दरकार है.गोविन्द चन्द्र जी का व्यक्तित्व प्रेरक है.
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जी हां!बिल्कुल सही। आज यदि जनता व प्रशासन चेत जाय तो बात बन जाय।आभार।
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बंबई फुटपाथों का स्वर्ग है । फोर्ट में जिस किताबी इलाके की तस्वीर आपने खींची है, वो तो बस अवशेष रह गया है । फुटपाथ को संवारने के चक्कर में हम जैसे किताबियों के दिल पर बिजली गिरा दी महानगर पालिका ने । किताबें जब्त करके गोदाम में सड़ा दीं । किताबें बेचने वाले अब फैशन-स्ट्रीट पर कपड़े बेचते हैं । बंबई को हमने पैदल खूब छाना है । संसार के सबसे यथार्थ, रंगीले, अनूठे, भयंकर, चालबाज़ और धोखेबाज़ फुटपाथ हैं ये । असली शहर यहीं तो है ।
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हाँ, यह सही है कि शहरों में फुटपाथ का प्रयोग वाहनों को खड़ा करने के लिये हो रहा है । आदरणीय गोविन्द चन्द्र पाण्डे के अनुकरणीय व्यक्तित्व को नमन । काश यह निष्ठा हममें भी कुछ देर ठहर पाती ।
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प्रो गोविन्द चन्द्र पाण्डे जी का व्यक्तित्व अनुकरणीय है. आपका आभार उनसे परिचय कराने का.फुटपाथ की जैसी सहुलियत यहाँ देखता हूँ, मुझ जैसा व्यक्ति भी टहलने को लालायित हो जाता है. जबलपुर में भी फुटपातियों ने दुकान लगा लगा कर फुटपाथ ही गुम कर दिये हैं.चिन्तनीय विषय है.
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हम तो अटलांटा मे भी अब तक अपार्ट्मेन्ट्स मे ही रहे हैं…
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