जलवायु परिवर्तन – कहां कितना?


टिम फ्लेनेरी की पुस्तक – "द वेदर मेकर्स" अच्छी किताब है पर्यावरण में हो रहे बदलावों को समझने जानने के लिये। तीन सौ पेजों की इस किताब का हिन्दी में अनुवाद या विवरण उपलब्ध है या नहीं, मैं नहीं जानता।

आप बेहतर होगा कि इस आस्ट्रेलियाई लेखक की यह पुस्तक अंग्रेजी में ही पढ़ें, अगर न पढ़ी हो तो। यह पुस्तक सन २००५ में लिखी गई। उसके बाद के आधे दशक में पर्यावरण के और भी परिवर्तन हुये होंगे। पर पब्लिश होने के समय का फ्रीज मान कर चला जाये तो भारत में अपेक्षतया बहुत कम प्रभाव पड़ा है ग्लोबल वार्मिंग का। उस हिसाब से भारत सरकार अगर "भविष्य के विकास बनाम कार्बन उत्सर्जन की जिम्मेदारी" की बहस में कार्बन उत्सर्जन की जिम्मेदारी की बजाय विकास को ज्यादा अहमियत देती है तो खास बुरा नहीं करती।

उदाहरण के लिये पुस्तक के अध्याय १४ (AN ENERGETIC ONION SKIN) के अन्तिम ४-५ पैराग्राफ पर नजर डालें तो बड़ा रोचक परिदृष्य नजर आता है।

अमेरिका के बारे में फ्लेनेरी लिखते हैं – … आगे यह धरती का उष्ण होना और अधिक होगा उसके मद्देनजर, संयुक्त राज्य अमेरिका को जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक घाटा होने जा रहा है। … और बढ़ते इन्शोरेंस के खर्चे और पानी की बढ़ती किल्लत के रूप में यह जाहिर है कि अमेरिका अभी ही CO2 उत्सर्जन की बड़ी कीमत चुका रहा है।

आस्ट्रेलिया के बारे में फ्लेनेरी का कहना है कि घटती वर्षा के रूप में वह भी जलवायु परिवर्तन का खामियाजा भुगत रहा है। बाढ़ की तीव्रता भी सन १९६० के बाद बहुत बढ़ी है। … कुल मिलाकर इन दोनो देशों (अमेरिका और आस्ट्रेलिया) के जितना किसी देश को जलवायु परिवर्तन का घाटा हुआ हो – यह नहीं लगता।

और भारत के बारे में फ्लेनेरी का कहना है –

अमेरिका और आस्ट्रेलिया के विपरीत कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां परिवर्तन बहुत कम हुआ है। भारत विशेषकर ऐसा देश है, जहां प्रभाव बहुत कम रहा है। पूरे भारतीय उप महाद्वीप में कम प्रभाव है। और, खबर अच्छी है कि; सिवाय गुजरात और पश्चिमी ओड़ीसा को छोड़कर; अन्य भागों में सूखा पिछले पच्चीस सालों के पहले की तुलना कम हो गया है। बंगाल की खाड़ी में तूफान कम आ रहे हैं यद्यपि वे दक्षिण में ज्यादा आने लगे हैं। केवल उत्तर-पश्चिम भारत में बहुत गर्म दिनों की संख्या बढ़ी है और वहां लू से मरने वालों की तादाद बढ़ी है।

फ्लेनेरी आगे लिखते हैं – पृथ्वी के ०.६३ डिग्री सेल्सियस तापक्रम बढ़ने के विभिन्न क्षेत्रों पर मौसमी प्रभाव के मुद्दे पर विस्तृत टिप्पणी करना उनका ध्येय नहीं है। … पर यह जरूर है कि सभी भू-भाग सिकुड़ रहे हैं और गर्मी के बढ़ने से बर्फ कम हो रही है, समुद्र विस्तार ले रहा है।

कुछ लोग आस्ट्रेलियाई टिम फ्लेनेरी की इन बातों को भारत की ग्राउण्ड रियालिटी न समझने वाला विचार कहने की जल्दी दिखा सकते हैं। पर वे अपने रिस्क पर करें। अन्यथा, यह पुस्तक ब्राउज़ करने वाला फ्लेनेरी के पर्यावरण के विषय में गम्भीर और विशद सोच से प्रभावित हुये बिना नहीं रह सकता।


क्या यह पोस्ट लिख कर भारतवासियों को एनविरॉनमेण्टली रिलेक्स होने को प्रेरित कर रहा हूं? कदापि नहीं। इससे तो केवल यही स्पष्ट होता है कि तुलनात्मक रूप से भारत पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम है। और वह तर्कसंगत भी है। अभी भारत वालों के पापकर्म विकसित देशों के स्तर के नहीं हुये हैं! 

मैं तो केवल पोस्ट लिखने का धर्म पालन कर रहा हूं और यह कह रहा हूं कि किताब पढ़ने योग्य है! :)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

28 thoughts on “जलवायु परिवर्तन – कहां कितना?

  1. "मैं तो केवल पोस्ट लिखने का धर्म पालन कर रहा हूं और यह कह रहा हूं कि किताब पढ़ने योग्य है! :)"ऐसे लोग आजकल कम ही मिलते हैं जो धर्मपालन भी करें और मुस्करा भी दें ,आप धन्य हैं,हम भी धन्य हो लिए !

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  2. पर्यावरण पर होने वाले प्रभाव को यदि सिर्फ टिश्यू पेपर के संदर्भ में समझा जाय तो एक रोल टिश्यू पेपर बनाने में पेडों की कटाई का कुल अंदाज लगाया जाये तो पता चल सकता है कि अमरीकीयों ने किस हद तक पर्यावरण को नुकसान पहुँचाया हैं। भारत अब भी उतना ऑटोमेटेड नहीं हुआ है कि टिश्यू पेपर का अमरीकीयों जैसा जमकर इस्तेमाल करे। इससे संबंधित एक रोचक लेख कहीं पढा था पर अब याद नहीं आ रहा कि कहां…किस अखबार में। रही बात भारतीय क्षेत्र में हुए अब तक के नुकसान की तो इस बात से मैं भी सहमत हूँ कि विकसित देशों के मुकाबले भारत को अभी कम झेलना पडा है। आगे क्या होता है इसका तो बाद मे ही पता चल सकता है।

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  3. क्या यह पोस्ट लिख कर भारतवासियों को एनविरॉनमेण्टली रिलेक्स होने को प्रेरित कर रहा हूं? कदापि नहीं।हम भारतवासियों को अपने अपराध को छोटा समझने में आप के इस आलेख ने मदद तो की ही है। जिस की हमें घोर आदत है।

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  4. धर्म का पालन करके आपने प्रभु के अवतरित होने की तिथि आगे सरका दी। रेलवे धर्म का पालन कर ही दिया आखिर आपने।

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  5. बिलकुल रिलेक्स नहीं है..अपने दम पर कोशिश जारी है पेड़ पौधे लगा कर पर्यावरण संतुलन बनाये रखने की..पुस्तक की जानकारी देने का आभार..!!

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  6. आपकी अनुशंसा पर पुस्तक अवश्य पढ़ी जायेगी और तब विस्तार में संभव हुआ तो खबर करेंगे. :)वैसे आपने सही कहा कि इस विषय पर रीलेक्स होने या करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता.

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