बन्दर पांडे भटक कर आ गये हैं। इकल्ले। भोजन छीन कर खाते हैं – सो बच्चों को बनाते हैं सॉफ्ट टार्गेट। पड़ोस के शुक्ला जी के किरायेदार के लड़के और लड़की को छीना-झपटी में काट चुके हैं। बिचारे किरायेदार जी इस चक्कर में ड्यूटी पर न जा सके।
हनुमानजी के आईकॉन हैं बन्दर पांडे – इसलिये कोई मार डालने का पाप नहीं ले सकता। हमारे घर को उन्होने अपने दफ्तर का एनेक्सी बना लिया है। लिहाजा एक छड़ी और एक लोहे की रॉड ढूंढ़ निकाली गयी है उन्हे डराने को। देखें कब तक रहते हैं यहां!
नगरपालिका के बोंदा जैसे कर्मचारी आये थे इन्हें पकड़ने। उनके आने पर ये सटक लिये रमबगिया में। संकल्पशून्य कर्मियों के भाग्य में तो बन्दर पांडे नहीं लिखे हैं। दिवाली पर अपने निठल्लेपन से बोनस भले झटक लें वो!
आज सवेरे सैर पर जाते देखा कि वे सो रहे थे हमारे घर की पेरापेट पर। कैमरे के शटर की आवाज से जग गये। दिन में फिर हांव हांव मचेगी उनकी गतिविधियों को ले कर।
बन्दर पांडे को भरतलाल दूध डबलरोटी दे देता है। पड़ोसी बहुत नाराज हैं कि इस हिसाब से तो यह कभी जायेगा ही नहीं।
मेरे पास एक प्लान है बन्दर पांडे को भगाने का। उन्हें डायजापाम की दो गोलियां डाल केला खाने को दे दिया जाये और जब वे खा कर बेहोश हो जायें तो एक नाव किराये पर ले गंगा उस पार छोड़ आया जाये। पर मुझे यह मालुम है कि यह तकनीक चलेगी नहीं। ऑफ्टर आल हम केवल आईडिया ठेलक हैं, इम्प्लीमेण्टर नही! :-)
सितम्बर’१५, सवेरे –
बन्दर पांड़े कल से चले गये। लोग पठाखे फोड़ उन्हे भगाने का यत्न कर रहे थे। किसी ने पत्थर भी मारा था। अब वे दिख नहीं रहे हैं। भरतलाल उदास है और हम भी। लगभग सप्ताह भर रहे बन्दर पांड़े यहां।
गोलू पांड़े का भी घर में रहने का मन नहीं है। घर की चीजों को फाड़ना-चबाना तो ठीक था। पर वे बाहर घुमाने पर भी घर में इधर उधर निपटान करने लग गये थे। मौका पा कर निकल भागते थे। उनकी प्रवृत्ति देख उन्हे चार दिन पहले छोड़ दिया गया था। अब वे समय पर घर आ कर भोजन कर जाते हैं। लेकिन स्वच्छन्द रहना उन्हे अधिक भा रहा है। कौन रहना चाहता है बन्धन और अनुशासन में?
मुझे दिवंगत पुराना गोलू याद आता है, जो दफ्तर से आने पर पुत्रवत पास रहना चाहता था और स्नेह न करने पर अपना विरोध भी दर्ज करता था!

सिर्फ प्लान और आईडिया :-)आपसे यह उम्मीद नहीं थी! बी एस पाबला
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हनुमानजी के आईकॉन हैं बन्दर पांडेये आईकान की अच्छी याद दिलाई आप ने -अभी अभी यहाँ भी आयिकानों की चर्चा चल रही थी -आईडिया आप ही मूर्त करो ज्ञान जी रोज रोज तो गंगा माई तक जा ही रहे हैं !
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"ऑफ्टर आल हम केवल आईडिया ठेलक हैं, इम्प्लीमेण्टर नही! :-) "यहाँ स्माइली का क्या काम ? इसमें क्या इठलाना । आज हिन्दी दिवस है । आज सभी आईडिया ठेलक उतिरा जायेंगे । उभ-चुभ होकर आईडिया ठेलेंगे । आप अकेले थोड़े ही हैं ।
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इतने अच्छे तो लग रहे हैं पांडे जी, काहे इनको भगाने के चक्कर में हैं ? लिव एंड लेट लिव में विश्वास नहीं करते क्या ??
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आईडिया तो ठेल दिये हैं अब किसी से इम्पलीमेण्ट भी करवा लीजिये, नहीं तो इनको परमानेण्ट ठिकाना दे दीजिये, आपकी लोहे की रॉड से ये डरने वालों में नहीं है।
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आफ्टर आल बंदर भी पांडे है तो दूध ब्रेड का हक़दार तो है ही . हमारे यहाँ तो बंदर रिजेर्वेशन वाले है सरकारी इमदाद की आस में ही रहते है जो आजकल मूर्तियों में खप रही है
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जब बन्दर पांडे को भरतलाल दूध डबलरोटी दे रहे है तो वे क्यों जाए ?
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आज क्या गजब किये हैं ..सुबह सुबह खाली पेट इनका नाम बुलवाए हैं .. " प्रात लेई जो नाम हमारा ते दिन ताहि ना मिले अहारा "आगे अब भगवान् ही रखवाला ..!!
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जब आईडिया आया है तो कोशिश करने में कोई बुराई नहीं. शायद आईडिया हिट हो जाये. ऐसा सोचते होते तो न जाने कितनी पोस्ट तो चढ़ा ही नहीं पाते. आखिर रिस्क लेने के फायदे तो हुए ही हैं.आज भी रिस्क लिए ही हैं. फायदा भी होगा ही..निश्चिंत रहिये.वैसे बन्दर पाण्डॆ इतने क्यूट लग रहे हैं कि भरतलाल की गल्ति बहुत ज्यादा दिखती नहीं है. कोई भी बेचारे को दूध ब्रेड देकर पुण्य लूट लेगा. संकट मोचन तक जाने का पेट्रोल और बचा.
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बंदर तो दिख रहा है, पर पांडे नज़र नहीं आये एक भी फोटू में.राम राम !
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