एक बात जो सबके जेहन में बैठी है कि फॉर्मल शिक्षा व्यवस्था आदमी की सफलता की रीढ़ है। इस बात को प्रोब करने की जरूरत है।
मैं रिच डैड पूअर डैड पढ़ता हूं और वहां धनवान (पढ़ें सफल) बनने की शिक्षा बड़े अनौपचारिक तरीके से रिच डैड देते पाये जाते हैं। मैं मास्टर महाशय के रामकृष्ण परमहंस के संस्मरण पढ़ता हूं। रामकृष्ण निरक्षर हैं। वे जोड़ के बाद घटाना न सीख पाये – आमी विजोग कोरबे ना! और मास्टर महाशय यूनिवर्सिटी के प्राध्यापक होते हुये भी रामकृष्ण परमहंस के सामने नतमस्तक हैं।
सीमेण्ट लदान करने वाले व्यवसायियों की बैठक में मैं उस वर्टीकल चन्दन लगाये मारवाड़ी की बात सुनता हूं। उनकी अंग्रेजी कामचलाऊ है। बार बार अटक कर हिन्दी में टपकते हैं। लेकिन लाख-करोड़ रुपये की बात वे यूं कर रहे हैं जैसे हम चवन्नी अठन्नी की करें।
कितने कॉलेज ड्राप-आउट मल्टी मिलियोनेर के बारे में बहुधा पढ़ता हूं। स्टीव जॉब्स को तो आपको प्रवीण ने इसी ब्लॉग पर पढ़ाया है। आप स्टीव को पढ़ें – वे न केवल सफल धनी हैं, वरन व्यक्तित्व में भी हीरा नजर आते हैं। ये बन्दे मासेचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी ने नहीं दिये।
हमारे पास अभी भी इतने मारवाड़ी-गुजराती सेठ हैं, जिनकी सफलता फॉर्मल एज्युकेशन की दुकान से नहीं आई। फॉर्मल एज्युकेशन पर जरूरत से ज्यादा जोर है।
अच्छी शिक्षा की तलाश एक विकसित होते व्यक्ति/राष्ट्र का नैसर्गिक गुण है। बहुत कुछ उसी प्रकार जैसे रमण महर्षि कहते हैं कि हर आदमी प्रसन्नता की तलाश में है। उसकी तलाश में गड़बड़ है - वह चरस, गांजा, पोर्नोग्राफी, अपराध और हत्या में प्रसन्नता तलाश रहा है। और उत्तरोत्तर और अप्रसन्न होता जा रहा है। वही बात शिक्षा को ले कर है। आदमी डिग्री लेने में शिक्षा ढ़ूंढ़ रहा है। अंग्रेजी गिटपिटाने भर में शिक्षा ढूंढ़ रहा है। मिसगाइडेड सर्च है यह शिक्षा का तामझाम।
अभिषेक ओझा ने उस दिन ट्विटर पर न्यूयॉर्क टाइम्स का एक बढ़िया लिंक दिया, जिसे मैने रीट्वीट किया – डिग्रियां न चमकाओ! यह पढ़ो! बड़े रोचक अंदाज में लिखा है कि कैसे पढ़े लिखे स्मार्ट आ कर वाल स्ट्रीट को चौपट कर गये। उसके मूल में मन्दी में आराम से बैठे आदमी का यह कथन है – “One of the speakers at my 25th reunion said that, according to a survey he had done of those attending, income was now precisely in inverse proportion to academic standing in the class, and that was partly because everyone in the lower third of the class had become a Wall Street millionaire.”
एक वृद्ध सज्जन जो किसी जमाने में ओवरसियर थे, मेरे घर सपत्नीक आये। वापसी में सोचते थे कि मैं अपनी कार से उन्हें छोड आऊंगा। जब पता चला कि मेरे पास वाहन नहीं है तो आश्चर्य हुआ। बोले – “काका (बच्चे) मैं ये नहीं कह रहा कि तूने ऊपरी कमाई क्यों नहीं की। पर तूने ढंग से जमीन भी खरीदी/बेची होती तो भी तेरे पास पैसे होते।” दुखद यह है कि हमारी शिक्षा यह नहीं सिखाती।
अनन्त तक बड़बड़ा सकता हूं। पर मूल बात यही है कि फॉर्मल एज्युकेशन पर बहुत दाव लगा रखा है हम सब ने। और उसके फण्डामेण्टल्स बहुत स्ट्रॉग नहीं हैं। थे भी नहीं और हो भी नहीं सकते! लिहाजा उसे सारी निराशा टांगने की सुलभ खूंटी मानना अपने को भ्रम में रखना है!
हमारे देश की शिक्षा नीति रास्ते में पड़ी कुतिया है। जिसका मन करता है दो लात लगा देता है। — यह बहुत आशावादी कथन है, भले ही किसी ने व्यंग में लिखा हो। शिक्षा नीति निश्चय ही जिन्दा है। मरी कुतिया को कोई लात नहीं मारता!
लहगर
मेरी पत्नीजी का कहना है कि मैं लहगर हो गया हूं, फोटो खींचने के बारे में। वे यह इस बात पर कह रही थीं कि भले ही लॉगशाट में फोटो लिया गया हो स्त्रियों का फोटो लेने में संयम बरतना चाहिये!
ब्लॉगिंग में सेल्फ इम्पोज्ड प्रतिबन्ध होगा यह। पर स्वीकार्य। लहगरी बन्द!
पर लहगर कौन है? बकौल पत्नीजी जब नारद विष्णु को क्रोध में कहते हैं –
परम स्वतंत्र न सिर पर कोई । भावइ मनहि करहु तुम्ह सोई ॥
भलेहि मंद मंदेहि भल करहू । बिसमय हरष न हियँ कछु धरहू ॥
डहकि डहकि परिचेहु सब काहू । अति असंक मन सदा उछाहू ॥
करम सुभासुभ तुम्हहि न बाधा । अब लगि तुम्हहि न काहूँ साधा ॥
तब वे विष्णु जी को लहगर बता रहे होते हैँ!
गांगेय अपडेट:
आज धुन्ध थी। काफी। तुलना के लिये यह आज का सूर्योदय और उसके नीचे कल का:
आजका सूर्योदय।
यह था कल का सूर्योदय।
यह रहा घाट का चित्र गंगाजी दिख नहीं रहीं।
और धुन्ध में निर्माण रत भावी हिन्दुस्तान के निर्माता।

स्टीव जॉब्स का वह आलेख हिन्दी में रचनाकार पर उपलब्ध है, जिसका अनुवाद आशीष श्रीवास्तव ने किया है. कड़ी है -http://rachanakar.blogspot.com/2005/10/blog-post_20.html
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दीवाली की शुभकामनाएं, जमाये रहिये। लहगरी चालू रखिये। पत्नी को हमेशा सीरियसता से नहीं ना लेना चाहिए।
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बहुत ही सुंदर लिखा है आपने! आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !
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ज्ञान जी .टिप्पणियां तो अक्सर मैं आनंदित हो कर देता रहता हूँ . सामाजिक ,साहित्यिक ,राजनीती आदि विषयों पर . लेकिन बौध्धिक लेखन पर हिम्मत नहीं कर पाता , साहस की कमी के चलते नहीं ,सामर्थ्य की कमी के कारन . लेकिन आपको लगातार पढता रहा हूँ . हिन्दी ब्लॉग जगत में कुछ हैं जो साहसिक बौध्धिक विषय उठाते हैं .आप यह कर रहे हैं . अगर मेरी टिप्पणी न पायें तो कमसे कम ये न समझें की मैं आपका पाठक और प्रशंसक नहीं हूँ .फ़िलहाल इतना ही .सादर राज सिंह
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शिक्षित होना और पैसे कमाना या कहें कि सफल होना दो अलग अलग बातें है, ये बात सही है कि शिक्षित होने से सफल होने के प्रॉबेबिलिटी यानी प्राययिकता बढ़ जाती है लेकिन शिक्षा ग्रहण करना सफल होने की गारंटी नहीं है,दीपावली की शुभकामनायें
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मद्रास विश्वविद्यालय ने डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम का अप्लिकेशन यह कह कर लौटा दिया था कि; "उनके पास वह डिग्री नहीं है कि वे 'उच्च-तम' ग्रेड के छात्रों को पढ़ा सकें."और यह मामला उनके राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद का है.
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शिक्षा का उद्देश्य अगर व्यक्तित्व का विकास है, तो मुझे लगता है कि वह औपचारिक तरीक़े से हो नहीं सकता. औपचारिक शिक्षा उसमें केवल थोडी सी भूमिका निभा सकती है. जितनी कि शिक्षा में प्राथमिक शिक्षा- यानी अक्षर और अंक ज्ञान. इसकी क्वालिटी और नीति को लेकर मुझे लगता है कि बहुत हो-हल्ला मचाया जा चुका है. अब और नहीं मचाया जाना चाहिए. अब अगर मचाना ही हो तो इसकी व्यवस्था सुधारने को हल्ला मचाएं. हमारी शिक्षा व्यवस्था में जो दोहरे मानदंड हैं और शिक्षा के नाम पर जो बजट का दुरुपयोग हो रहा है, इन बातों पर हंगामा किया जाना चाहिए और इन्हें सुधारने पर ज़ोर दिया जाना चाहिए.
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भारत मै शिक्षा का मतलब नोकरी, पेसा कमाना, ही है, फ़िर शिक्षा मै अग्रेजी आना भी जरुरी है, युरोप मे एल एल बी पास, एक ड्रा कि डिग्री वाला, एक आइ आई ती वाला सब तरह के काम करने को तेयार है, इन्हे अग्रेजी भी नही आती, मेने यहा कई वकालत पास लोगो को टेक्सी चलाते भी देखा है, यानि यहां शिक्षा का मतलब शिक्षति होना है, ना कि रटा लगा कर, डिग्री लेना ओर फ़िर उम्र भर उस डिग्री को हाथ मै पकडे मां बाप की रोटीयां तोडन हे, क्योकि जनाब दुसरा काम तो करेगे नही, ओर डिग्री वाला इन्हे मिल नही रहा, लेकिन हमारा सिस्टम आज से नही शुरु से ही ऎसा चल रहा है,ओर हम सोये गे किस्मत को , अरे काम करो जेसा भी मिले, पढाई अपनी जगह हैआप को ओर आप के परिवार को दिपावली की शुभकामनाये
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आप सभी को दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामना।
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अंग्रेजी में बोलो कोई नहीं पूछेगा कहाँ तक पढ़े हो . और पी एच डी बाला अंग्रेजी नहीं जानता हो तो उसकी पढाई बेकार . व्यावसायिक डिग्रियां भी नौकरी को प्रेरित करती है व्यापार को नहीं . हमारे यहाँ एक बनिया परिवार का लड़का ऍम बी बी एस करने के बाद घी बेच रहा है .
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