दहेज

वक्र टिप्पणियों का बहुधा मैं बुरा नहीं मानता। शायद मैं भी करता रहता हूं। पर विवेक सिंह की यह पिछली पोस्ट पर वक्र टिप्पणी चुभ गई:

“मेरी पत्नीजी के खेत का गेंहूं है।”
क्या ! आप अभी तक दहेज लिए जा रहे है ?

GyanRitaMarriage याद आया अपनी शादी के समय का वह तनाव। मैं परम्परा से अरेंज्ड शादी के लिये तैयार हो गया था, पर दहेज न लेने पर अड़ा था। बेवकूफ समझा जा रहा था। दबे जुबान से सम्बोधन सुना था – चाण्डाल!

अब यह विवेक सिंह मुझे चाण्डाल बता रहे हैं। मैं शादी के समय भी चाण्डाल कहने वाले से अपॉलॉजी डिमाण्ड नहीं कर पाया था। अब भी विवेक सिंह से नहीं कर पाऊंगा।

ब्लॉगिंग का यह नफा भी है, कुरेद देते हैं अतीत को!


हां, नत्तू पांड़े के चक्कर में हिंजड़े बाहर गा-बजा रहे हैं। यह बताने पर कि नत्तू पांड़े तो जा चुके बोकारो, मान नहीं रहे! उनका वीडियो –


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

66 thoughts on “दहेज

  1. आपका यह वर्डप्रेस वाला ब्लॉग पहली बार देख रहा हूँ……..ज्यादा तफरीह नहीं कर पाता ( करने की इच्छा नहीं होती)
    फेसबुक है पर वहां ज्यादा जाता नही, ऑरकुट है पर साल से ज्यादा हो गये लॉगिन किये…………….ट्विटर पर तो अकाउंट ही नहीं खोला…….कई बार लोगों की देखा देखी बहना शुरू कर दिया जाता है और मैं उसी बहने से बच रहा हूँ……..देखना चाहता हूँ कि अनसोशल होकर कैसा लगता है :)

    वैसे काम भर का सोशल हूँ……ब्लॉगर…..बज् बस यही……।

    टिप्पणीयां चुभती हैं यह बात सच है……….तब और……. जब मतलब कोई दूसरा ही निकल रहा हो………इसका भुक्तभोगी हूँ , इसलिये मैं भी संभल कर टिप्पणी करने लगा हूँ…………पहले बेधड़क मनमाफिक कुछ भी बोल देता था : (

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    1. यह ब्लॉग नया नया जो है! इस पर यह नेस्टेड टिप्पणी का जुगाड़ पसन्द आ रहा है!

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      1. जी हां,

        नेस्टेड टिप्पणी वाला फीचर कुछ रोचक है। लगता है वन टू वन बात हो रही है।

        वैसे ब्लॉगर मे भी @ कहकर बतियाहट का अंश रहता था लेकिन यहाँ थोड़ा अलग सा लग रहा है।

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  2. पिछली पोस्ट, उस पर आयी टिप्पणियां और इसके बाद यह पोस्ट देखकर लग रहा है आप सही में बड़े-बुजुर्ग हो गये हैं। इससे अधिक कुछ कहने में डर लगने लगा है। सच में!

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    1. हां, हीहीफीफी की एक सीमा होती है। आदमी सीमा के इस उस पार आता जाता रहता है।
      न कोई शाश्वत बुजुर्ग होता है न शाश्वत शिशु!

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        1. है यह DisQus जैसा ही। कम से कम मेरा वही ध्येय पूरा कर रहा है। और सुहागा यह है कि निशान्त को भी पसन्द है! :)

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  3. ग्याण जी दिल पर ना ले, वेसे हमे आज तक लनाते मिल रही है, इस मुये दहेज को ना लेने के कारण, ओर हमारी सगी मां ही कई साल तक हम से नाराज रही थी……

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    1. हां दहेज को ले कर पीढियों के द्वन्द्व समझ आते हैं।
      आपकी माता जी अपनी जगह सही रही होंगी।
      दहेज जब सामान्य सामाजिक व्यवहार था, ठीक था। जब यह लड़की वालों को चूसने का यन्त्र बन गया, घृणित हो गया। अभी भी दहेज की रस्म निभाती साफ सुथरी शादियां होती हैं। दोनो पक्षों की मर्यादा रहती है। पर वह उत्तरोत्तर कम होता गया है।
      दुष्परिणाम हैं नारी उत्पीड़न या भ्रूण हत्या!

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  4. ओरिजनल जगह टिप्पणी करने का आनन्द ही और है। लग रहा है असली दस्तावेज तिजोरी में बन्द है और फोटो कॉपी पर दस्तखत बनाए जा रहे हैं :(
    अगली पोस्ट हिजड़ा गायन पर होगी शायद। यहाँ लखनऊ वाले बड़े तहजीब वाले हैं। कभी कभी तिक्त होता हूँ तो लगता है कह बैठूँगा कि यहाँ तहजीब तो बस उनमें ही बची हुई है। वहाँ वाले कैसे हैं ?
    विवाह का फोटो अच्छा लगा। उसका रिजोल्यूसन बढ़ा कर दीजिए, ताकि हमें अन्दाज लगे कि आप गुरु गम्भीर किस कारण बने हुए हैं – रिसियाए हैं कि चिंतन कर रहे हैं। रिसियाए हैं तो क्यों? चिंतन कर रहे हैं तो क्यों? हाथ जिस तरह से बाँधे हैं उससे तो लगता है कि भिड़ने की तैयारी में हैं :)
    विवेक जी आते ही होंगे लेकिन उनकी टिप्पणी के बहाने यह फोटो तो देखने को मिल गया।

    ब्लैक ऍण्ड ह्वाइट फोटो की मुद्रा का सहज विकास है – प्रोफाइल में लगा रंगीन, गाल पर हाथ धरे सोचियाता सा फोटो।
    टिप्पणी भेजने से पहले स्कैन कर लिए हैं, चुभियाने जैसा कुछ नहीं नजर आया। आप को लगे तो भात खाते दाँत तले आए काँकरी सा निकाल फेंकिएगा।

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  5. आदरणीय ज्ञानदत्त पाण्डेय जी ! मेरी टिप्पणी का उद्देश्य आपको चाण्डाल कहने नहीं था । फिर भी यदि मेरी टिप्पणी से ऐसा ध्वनित हुआ है तो मैं क्षमा चाहता हूँ । मेरे द्वारा आपको कष्ट पहुँचा, इसका मुझे अफ़सोस रहेगा ।

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  6. देव ,
    एक बात और …
    यह जो गाना ”हिजड़ा सांग एंड डांस” है , इसको पूरा सुनना
    चाह रहा हूँ … बड़ी इच्छा है …. सुन्दर गीत है … हो तो ज़रा प्रबंध कर दें …
    आभारी रहूंगा …

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    1. पूरा तो वीडियो नहीं बनाया। पर एक बड़ा हिस्सा है। उसका ऑडियो निकाल कर कभी चिपकाऊंगा। अच्छा लगा था देखने सुनने में।
      मुद्रा की चपत भी खूब लगा गये हिंजड़े। साथ में नयी साड़ी भी! :-)

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      1. मुद्रा … साड़ी …. अरे उनका भी हक़ बनता है , :)
        आडियो के चिपकाव का बेसब्री से इन्तजार है ….
        आपके आश्वासन से थई मिली !

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      2. हमारे यहाँ लकदक टोयोटा इनोवा में आते हैं हिजड़े. उनमें से एक धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलकर उन लोगों को चमका देता है जो उनके सामने अंग्रेजी में गिटपिट करने की कोशिश करते हैं.
        अब तो नया घर लेने पर भी इन्होने गाना-बजाना शुरू कर दिया है.
        पिछले महीने नाराज होकर एक घर का सारा राशन संग लेते गए. घर में उस समय बच्चे के नाना-नानी भर थे. सुना कि उनके कपडे भी फाड़ दिए उन्होंने.

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        1. यहां तो बड़े आत्मीय से थे। नाम भी थे – मोहन और अमरनाथ। मेरी मां के साथ मंहगाई के सुख दुख की चर्चा भी हुई!

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  7. चलिए अच्छा ही रहा … इसी बहाने आपके जीवन की वह फोटो देखने को मिली
    जिसे देख कर लग ही नहीं रहा है कि आप ही हैं !.. बड़ा बदलाव आ गया है .. हाँ लग
    रहा है कि चस्मा तब भी लगाते थे , मौर ठिकुवाने में तो बड़ी दिक्कत हुई होगी .. :)
    ………. लेकिन इंटेलेक्चुअल लुक तब भी
    था , एकदम — ” इंटेलेक्चुअल ज्वान ” ! [ गिरिजेश राव जी के लिए , हम भी
    ज्वान ही लिखेंगे , ‘वर्तनी – सुधार – आन्दोलन’ का दुरूपयोग न करें , ये महराज .. नहीं
    तो लोक की सहजता का गला घुँट जाएगा ]

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  8. हमको तो गदहा और बेवकूफ बोला गया था दोनों पक्षों द्वारा । और बाद में पीठ पीछे क्या हुआ, उस तथ्य को न मेरी कुरेदने की हिम्मत और न औरों की बताने की हिम्मत । बस अपने घर पर एक भी वस्तु ससुराल पक्ष की न होने की जिद लेकर उस ग्लानि को मिटाने की जद्दोजहद में लगा हूँ ।

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  9. टैगिग शायद मिस हो गयी है.. शादी की फ़ोटो दिखाने के लिये शुक्रिया.. देखकर लग रहा है कि किसी बात पर रूठे हुये है :P
    फ़ोटो का साइज़ थोडा छोटा है..

    शादी के बारे मे और लिखिये न? शादी भी एक ट्राउमा का नाम है.. खासकर अनसोशल लोगो के लिये.. लगता है कि कोई आकर बस ज़िन्दगी को अपने तरीके से अस्त-व्यस्त कर देगा :)
    दिमाग की दही बना देते है आस पास वाले भी.. कितना कमाते हो? बोम्बे मे अकेले रहते हो?

    आपकी एनालिसिस से शायद मेरे जैसे लोगो को मदद मिले..

    बाकी मै वीडियो देख रहा हू…

    छोटे मुह सलाह: टिप्पणियो को दिल से न ले.. ’अलग थलग ब्लागर’ होने के फ़ायदो को उठाये.. :)

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    1. टिप्पणियो को दिल से न ले.. > दामन साफ रखने की चाहत दिल पर ले जाती है टिप्पणी! :-(

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      1. दामन साफ़ है और हमेशा रहेगा भी… कभी कभार हमे परिस्थितियो के सामने झुकना पडता है और वो सब हमे उम्र भर कचोटता रहता है…
        अपने इस जीवन मे हम भांति-भांति के प्रयोग करते रहते है, कुछ सफ़ल होते है तो कुछ असफ़ल.. कुछ प्रयोगो के लिये हम अपने आस पास के समाज से प्रापर सपोर्ट ही नही जुटा पाते…

        किसी गाने का दो लाईन्स चेप रहा हू..

        “हमको जो ताने देते है कि हम खोये है इन रंगरलियों मे
        हमने उनको भी छुप छुप के जाते देखा उन गलियो मे…
        कुछ तो लोग कहेगे, लोगो का काम है कहना….”

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    2. आप शादी कर के भी अनसोशल रह सकते हैं । कई परिवार हैं जो सामाजिक सीमितता में रहते हैं । पर इस विषय पर घर में एक मत होना चाहिये ।

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      1. शादी करके अनसोशल रहना ओबवियसली दोनो पर डिपेन्ड करेगा.. लेकिन शादी होने से पहले की जो प्रोसेस है.. वो काफ़ी irritating है.. जैसे लडकिया देखना.. उन्हे समझना.. उनके परिवार वालो से मिलना और उन्हे समझना फ़िर उनमे से किसी को पसन्द करना, उसे और समझना.. फ़िर रिश्तेदारो को जवाब देना.. उन्हे भी समझना.. फ़िर घर वालो को अपनी बात समझाना/समझना.. फ़िर… न जाने ऐसे कितने ’फ़िर’…

        ये समस्या शायद ’लव मैरिजेस’ मे नही आती होगी लेकिन सारे ’लव’ मैरिज मे कनवर्ट भी तो नही होते है और जब नही होते है तो अनसोशल लोगो को इन सोशल एलीमेन्ट्स को कैसे झेलना चाहिये…

        ज्ञानदत्त जी की रूठी हुयी मुद्रा मे फ़ोटो काफ़ी कुछ कहती है.. :)
        पब्लिक डिमान्ड पर इस फ़ोटू को बडा किया जाय…

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    3. विवाह जिस पर जीवन की भावी खुशियाँ निर्भर हैं उस प्रक्रिया में धैर्य की आवश्यकता है । शीघ्रता तो कदापि न करें । सब यदि 1 माह में निश्चय करने को कहें तो आप 3 माह लें और वह भी बिना इरीटेट हुये । संस्कार और शिक्षा, दो आधारभूत स्तम्भ हैं एक अच्छे जीवनसाथी के । शेष स्वयं सध जाता है ।

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      1. एक चीज और जोड़ूंगा। जो काम आप न कर सकते हों, और साथी करने में सक्षम/दक्ष हो तो बहुत बढ़िया! दोनो जीवन साथियों के रोल कई फील्ड्स में कॉम्प्लिमेण्ट्री होते हैं।

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