अतिक्रमण हटा; फिर?

DSC00105 (Small) गंगा तट की सीढ़ियों का अतिक्रमण हट गया।

इस काम में कई लोग लगे थे, पर हमारी ओर से लगे थे श्री विनोद शुक्ल। पुलीस वालों से और स्थानीय लोगों से सम्पर्क करना, उनको इकठ्ठा करना, समय पर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई में सहायक बनना – यह उन्होने किया। मैने विनोद शुक्ल को धन्यवाद दिया। एक दिन पहले जब वे बता रहे थे कि कुछ हो नहीं पा रहा है तो वे विलेन नजर आ रहे थे। मैने उन्हे ही नहीं, जाने किन किन को कोसा था।

Gyan572 गंगा के शिवकुटी घाट की सीढ़ियों से अतिक्रमण हटने पर रीता पाण्डेय ने यह लिखा है।

अपनी उत्तेजना मुझे खुद नहीं समझ आ रही थी। न ही मैने पहली बार अतिक्रमण देखा था और न ही उसके प्रति आना-कानी या टालमटोल कोई नई बात थी। यह तो मुझे पहले पता था कि जब तक कसा न जाये, तब तक कोई सक्रिय नहीं होता – न व्यक्ति न तन्त्र। [1]

मेरे सामने यह भी स्पष्ट था कि अधिकांश लोग इस अतिक्रमण को गलत मान रहे थे। बस संगठित हो प्रतिकार नहीं कर रहे थे। मन में अकुलाहट लोगों को संगठित न कर पाने की ज्यादा थी।

हमारी ओर से ज्यादा काम तो सरकारी कुर्सी के माध्यम से हुआ। उस कुर्सी या वैगन गिनने के काम के प्रति हीन भावना न ज्ञान के मन में है, न मेरे। हीन भावना होती तो सन १९८६ से यह सतत कर नहीं रहे होते। कोने का कोई काम ले कर बैठ गये होते। शुक्ल जी यहां तो गलत ही कह रहे हैं। यह जरूर है कि यह कुर्सी सदा साथ तो रहेगी नहीं। पर फिलहाल तो खुशी है कि काम हो गया।

ऐसा नहीं है कि आगे अतिक्रमण नहीं होगा। लेकिन अगर सक्रिय होना है तो लोगों से संवाद बनाना होगा। उन्हे अपने साथ जोड़ने की क्षमता विकसित करनी होगी। पता नहीं, होगा या नहीं। पर कोशिश तो करनी ही होगी।

— रीता पाण्डेय


[1] शायद रीता ने पहले अतिक्रमण दर्शक के रूप में देखे थे, इस बार उसको हटाने में भागीदारी का भाव था, जो उत्तेजना ला रहा था। मजे की बात यह है कि अतिक्रमण हटने के बाद रीता को यह कहते भी पाया कि उस (अतिक्रमणकर्ता) बेचारे के घर के पानी की निकासी अब कैसे होगी। मन की करुणा कुपात्र-सुपात्र का भेदभाव नहीं करती!

यह संतोष की बात है कि सोशल एक्टिविस्ट के रोल में रीता अपने को देखती हैं। हमे तो बस उनके पीछे रहना है! – ज्ञानदत्त पाण्डेय।

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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