आत्मोन्नति और अपमान

एक जवान आदमी आत्मोन्नति के पथ पर चलना चाहता था। उसे एबॉट (abbot – मठाधीश) ने कहा – जाओ, साल भर तक प्रत्येक उस आदमी को, जो तुम्हारा अपमान करे, एक सिक्का दो।

अगले बारह महीने तक उस जवान ने प्रत्येक अपमान करने वाले को एक सिक्का दिया। साल पूरा होने पर वह मठाधीश के पास गया, यह पता करने कि अगला चरण क्या होगा आत्मोन्नति के लिये। एबॉट ने कहा – जाओ, शहर से मेरे खाने के लिये भोजन ले कर आओ।

FotoSketcher - Gyan Musing1 जैसे ही जवान आदमी खाना लाने के लिये गया, मठाधीश ने फटाफट अपने कपड़े बदले। एक भिखारी का वेश धर दूसरे रास्ते से जवान के पास पंहुचा और उसका अपमान करने लगा।

“बढ़िया!” जवान ने कहा – साल भर तक मुझे अपमान करने वाले को एक सिक्का देना पड़ा था; अब तो मैं मुफ्त में अपमानित हो सकता हूं, बिना पैसा दिये।

यह सुन कर एबॉट ने अपना बहुरूपिया वेश हटा कर कहा, “वह जो अपने अपमान को गम्भीरता से नहीं लेता, आत्मोन्नति के राह में चल रहा है”।


मुझे बताया गया कि मेरे पास कहने को कुछ भी नहीं होता। लिहाजा यह प्रस्तुत कर रहा हूं, जो पॉल कोह्येलो के ब्लॉग पर है।

अपमान को गम्भीरता से न लेना ठीक, पर एबॉट आगे भी कुछ कहता होगा। वह पॉल कोह्येलो ने बताया/न बताया हो, अपनी सोच में तो आयेगा ही। आगे देखते हैं! 


चर्चायन – आपने यह पोस्ट पढ़ी/सुनी हिमांशु की? अर्चना जी ने गाया है हिमांशु के बाबूजी का गीत। सखि, आओ उड़ चलीं उस वन में जहां मोहन की मुरली की तान है। सास अगोर रही है दरवाजा। क्या बहाना चलेगा!

बहुत नीक लगी पोस्ट!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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