बारह बिस्वा में अरहर बुवाई थी। कुल बारह किलो मिली। अधिया पर बोने वाले को नफा नहीं हुआ। केवल रँहठा (अरहर का सूखा तना) भर मिला होगा। बारह किलो अरहर का अनुष्ठान चलने वाला है – कहुलने (तसला में गर्म करने) और फिर उसे चकरी में दलने का।
घर के कोने अंतरे में रखी चकरी फिर निकाली जायेगी। मेरी अम्मा तीन दिन व्यस्त रहेंगी। उनके अनुष्ठान की कॉस्टींग की जाये तो अरहर पड़ेगी ५०० रुपये किलो। पर ऐसी कॉस्टिंग शिवकुमार मिश्र जैसे चार्टर्ड अकाउण्टेण्ट कर सकते हैं। अपनी मामी को बताने की कोशिश करें तो डांट खा जायेंगे।
असली चीज है दाल दलने के बाद बचेगी चूनी – दाल के छोटे टुकड़े। उन्हे पानी में भिगो कर आटे में सान कर चूनी की रोटी बनती है। थोड़ा घी लगा दें तो चूनी का परांठा। उसे खाना दिव्य अनुभूति है गंवई मानुस के लिये।
हमारी चूनी तो अभी निकलनी है, पड़ोस की तिवराइन अपनी दाल दलने के बाद कुछ चूनी हमें दे गई थीं। रविवार दोपहर उसी की रोटी/परांठा बना। साथ में आलू-टमाटर की लुटपुटार सब्जी, कटा खरबूजा और मठ्ठा। वाह!
बोल लम्बोदर गजानन महराज की जै। यह खाने के बाद सोना अनिवार्य है – फोन की घण्टी का टेंटुआ दबा कर!
टेंटुआ दबाने की बात पर याद आया कि डिस्कस का इतना विरोध किया मित्रों ने कि उसका टेंटुआ दबाना पड़ गया। पिछली कुछ हंगामेदार पोस्टों के कमेण्ट मय लिंक संजोने का प्रॉजेक्ट अगले सप्ताहान्त पूरा किया जायेगा। कुल ५ पोस्टें हैं डिस्कस वाली जिनके कमेण्ट जमाने हैं।
पुरानी टिप्पणी व्यवस्था पुन: जारी। थ्रेडेड संवाद बन्द। थ्रेडेड संवाद का एक जुगाड़ पंकज उपाध्याय ने बताया है। पर उसमें मामला चमकदार नहीं है। लोगों के फोटो साइड में लाने का जुगाड़ और लगाना होगा। बक्से में बाईं ओर पैडिंग भी चाहिये। अन्यथा अक्षर दीवार से चिपके लगते हैं। पंकज जैसे ज्वान उस पर अपना जोर लगायें आगे बेहतर बनाने को।
गूगल फ्रेण्ड कनेक्ट एक थ्रेडेड टिप्पणी व्यवस्था देता है। मैने प्रयोग के तौर पर उसे नीचे जोड़ दिया है। यदि आप उसका प्रयोग करेंगे तो प्रत्युत्तर आसानी से दिया जा सकेगा(?)। यदि न देना चाहें, तो पुरानी टिप्पणी व्यवस्था है ही!
अपडेट – सॉरी, ब्लॉगर कमेण्ट व्यवस्था मिस बिहेव कर रही थी। अत: पुन: पब्लिश करनी पड़ी पोस्ट! और गूगल फ्रेण्डकनेक्ट की टिप्पणियां गायब हो गयीं!
चर्चायन – चौपटस्वामी युगों बाद जगे। चौपटस्वामी यानी श्री प्रियंकर पालीवाल। उन्हे फिक्र है कि जैसे लच्छन हैं हमारे, उसे देखते हमारा पोस्ट रिटायरमेण्ट समय जैसे बीतेगा, वैसे बीतेगा; पर हमारी पत्नीजी कैसे झेलेंगी फुलटाइम हमें! प्रियंकर जी का गद्य ब्लॉग “समकाल” हिन्दी के सशक्ततम पर डॉरमेण्ट ब्लॉगों में है!

lehsun ki chatni ( with mustard oil), bhi hoti to jyada tasty lagta.
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प्रवीण त्रिवेदी प्रा.मा. साहब की गूगल फ्रेण्ड कनेक्ट पर टिप्पणी (जावा स्क्रिप्ट लोड होने में धीमे कनेक्शन में समय ले रहा था, सो यह जुगाड़ भी निकाल दिया :( ) – प्रथम टीप – कर्ता के रूप में हमारा नाम दर्ज किया जाए |
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@मनोज कुमार – आपने सही पहचाना व्यक्तित्व की डाइकॉटमी को। बौद्धिक और गंवई/सरल दो पहलू हैं व्यक्तित्व के। दोनो एक दूसरे से असंपृक्त नहीं हैं। यह भी पाया है कि ब्लॉगिंग की यात्रा में उनमें दूरी बहुत घटी है। जो प्रारम्भ के साथी हैं वे सही कह सकते हैं इस डाइकॉटमी के बारे में।
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@ हमारी चूनी तो अभी निकलनी है, — !!! ? ….चुन्नी की रोटी, मरुआ की रोटी, मांड़ भात कितनों ने खाया है, जो इसे पढ़ रहे हैं, और कमेंट कर रहे हैं मुझे नहीं पता, हां मैंने बचपन इनके संग बिताया है। इसलिए कह सकता हूं कि यह पोस्ट जेठ की तपती दोपहरी में गांव की धूल भरी मिट्टी कि सड़कों पर वर्षा की पहली फ़ुहार से जो गंध निकलती है उसकी तरह ही है।पर ….पर. डिस्कस, थ्रेडेड संवाद, गूगल फ्रेण्ड कनेक्ट जैसे बुद्धिजीवियों को रिझाने वाले शब्दों का इस पोस्ट के साथ चिपक जाना … लगा चुन्नी की बर्गर खा लिया हो…!
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चूनी की रोटी पर एक शानदार गंवार पोस्ट।फोन का टेंटुआ अच्छी तरह दबाइयेगा।
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@ ज्ञान जी आप मेरी टिप्पणी को विभाजित कर के देख रहे हैं .आप जब ये सब लेकर घर के बाहर होंगे रिटायर होने के बाद तो आपकी पत्नी को पता ही नहीं चलेगा की आप रिटायर हो गए हैं .वैसे भी रिटायर होने के बाद खाली घर बैठना अच्छा नहीं होता है .
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@ डॉ. महेश सिन्हा – पालीवाल जी मेरी नहीं, मेरी पत्नीजी की चिन्ता कर रहे हैं। रूंटी की छिद्रान्वेषी च्यूंटी काटने के लिये धन्यवाद! बाकी, यह च्यूंटी काटने की आदत बना ली तो बहुत च्यूंटियां चाहियें होंगी ब्लॉगजगत में! :)
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पालीवाल जी को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है .टिफ़िन में रूटी हाथ में कैमरा और गंगा किनारे जिंदाबाद
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@ Smart Indian – धन्यवाद अनुराग जी!
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Maja aay gawa!jug jug jiya mere bhai! shetla mayee kai ashirwad bana rahai
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