कटरा, इलाहाबाद में कपड़े की दुकान का मालिक, जो स्त्रियों के कपड़े सिलवा भी देता है, अपनी व्यथा सुना रहा था – “तेईस तारीख से ही सारे कारीगर गायब हो गये हैं। किसी की मां बीमार हो गई है। किसी के गांव से खबर आई है कि वापस आ जा। तुझे मार डालेंगे, काट कर फैंक देंगे!”
“कौन हैं कारीगर? हिन्दू कि मुसलमान?”
“ज्यादातर मुसलमान हैं।”
पर मुसलमान क्यों दहशत में हैं? ये ही तो दंगा करते थे। यही मारकाट मचाते थे। यह सामान्य हिन्दू परसेप्शन है।
कोई कहता है – “बाबरी मामले के बाद इतने तुड़ाते गये हैं कि अब फुदकते नहीं। पहले तो उतान हो मूतते थे।”
उधर मेरी सास जी बारम्बार फोन कर कह रही थीं – ज्ञान से कह दो चौबीस को दफ्तर न जाये। छुट्टी ले ले।
पर अगर दंगा हुआ तो चौबीस को ही थोड़े न होगा। बाद में भी हो सकता है। कितने दिन छुट्टी ले कर रहा जा सकता है? मेरी पत्नी जी कहती हैं।
अब तू समझतू नाहीं! मन सब खराबइ सोचऽला। हमार परेसानी नाहीं समझतू।
मैं द्विखण्डित हूं। हिन्दू होने के नाते चाहता हूं, फैसला हो। किच किच बन्द हो। राम जी प्रतिस्थापित हों – डीसेण्टली। पर यह भय में कौन है? कौन काट कर फैंक डाला जायेगा?
मुसलमान कि हिन्दू? आर्य कि अनार्य? मनई की राच्छस?
मन के किसी कोने अंतरे में डर मैं भी रहा हूं। जाने किससे!

जो होना है हो जाये तारीखो से कुछ नही होगा .
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विश्वनाथ जी की टिप्पणी से सहमत…
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विश्वनाथ सर जैसी ही सोच मेरी भी है.. कुछ नहीं होने जाने वाला है.. अभी चिंता भी नहीं कर रहा हूँ.. मेरे ख्याल से उस दिन हम सब मिल कर चिंता-चिंता खेलेंगे जिस दिन सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने वाला होगा.. अभी पन्द्रह-बीस साल निश्चिन्त ही रहना चाहिए…
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bakt badal gaya hai….phir bhi netalog kahan mannewala hai…kuch na kuch to karega/karvayega…lekin ysakuch nahi hoga jaisa pahle ho chuka hai….pranam
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92 me jo janbhavna tha…o' abtak ate..ate…bahut kam ho gaya hai..nata to kuch bhi karne ko tayar hai..magar ab paublic sab janti hai…ootna darne ki bhi jaroorat nahi hai..(kitna…ye hame khud nahi pata)han…mandir to banni chahiye lekinsadbhavna se…jo ho nahi sakti…pranam.
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अभी जल्दी नहीं है. कॉमन वेल्थ के बाद ध्यान भटकाने के लिए सहारा लिया जा सकता है.
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निश्चिंत रहिए।हम तो optimist हैं। कुछ नहीं होगा। निर्णय सुनाया जाएगा।हारी हुई पार्टी मामले को सर्वोच्च न्यायालय तक ले जाएगी।वहाँ मामला बरसों तक फ़िर अटका रहेगा।इस बार सरकार चेत है। दंगे नहीं होंगे। Trouble makers से निपटने के लिए पूरी तैयारी कर रहे हैं।लोग भी ऊब चुके हैं। इतने साल के बाद मामला कुछ ठंण्डा पड गया है।इस से भी अधिक महत्वपूर्ण मामले हैं आजकल जिसपर जनता का ध्यान आकर्षित है।वैसे मुझे नहीं लगता इस का समाधान कोई भी न्यायाधीश दे सकेंगे।एक दिन इस पर संसद में फिर बहस होगी और उपयुक्त बिल पास होगा।तब तक यह आग जलती रहेगी।जी विश्वनाथ
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मनुष्य़ काटेगा और मनुष्य ही कटेगा। मनुष्य के इस स्वभाव को स्वीकार लेने के बाद ही अवरुद्ध द्वार खुलते हैं। वैसे राम मन्दिर वहीं बनना चाहिए। सम्भवत: हम लोगों के जीवनकाल में न हो पाए।
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अजी कुछ नहीं होगा, यह देश तो टालू मिक्सर पीने का आदि है।
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जो सबसे ज्यादा डरे हुये हैं, मुझसे, आपसे भी ज्यादा कायर हैं, वही हमले करते हैं जीप्रमाण है उन्होंनें हथियार भी इकट्ठे कर लिये होंगें और समूह को तैयार कर रहे होंगें।प्रणाम
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