द्विखण्डित

Gyan900-001 कटरा, इलाहाबाद में कपड़े की दुकान का मालिक, जो स्त्रियों के कपड़े सिलवा भी देता है, अपनी व्यथा सुना रहा था – “तेईस तारीख से ही सारे कारीगर गायब हो गये हैं। किसी की मां बीमार हो गई है। किसी के गांव से खबर आई है कि वापस आ जा। तुझे मार डालेंगे, काट कर फैंक देंगे!”

“कौन हैं कारीगर? हिन्दू कि मुसलमान?”

“ज्यादातर मुसलमान हैं।”

पर मुसलमान क्यों दहशत में हैं? ये ही तो दंगा करते थे। यही मारकाट मचाते थे। यह सामान्य हिन्दू परसेप्शन है।

कोई कहता है – “बाबरी मामले के बाद इतने तुड़ाते गये हैं कि अब फुदकते नहीं। पहले तो उतान हो मूतते थे।”

Gyan879 उधर मेरी सास जी बारम्बार फोन कर कह रही थीं – ज्ञान से कह दो चौबीस को दफ्तर न जाये। छुट्टी ले ले।

पर अगर दंगा हुआ तो चौबीस को ही थोड़े न होगा। बाद में भी हो सकता है। कितने दिन छुट्टी ले कर रहा जा सकता है? मेरी पत्नी जी कहती हैं।

अब तू समझतू नाहीं! मन सब खराबइ सोचऽला। हमार परेसानी नाहीं समझतू।

मैं द्विखण्डित हूं। हिन्दू होने के नाते चाहता हूं, फैसला हो। किच किच बन्द हो। राम जी प्रतिस्थापित हों – डीसेण्टली। पर यह भय में कौन है? कौन काट कर फैंक डाला जायेगा? 

मुसलमान कि हिन्दू? आर्य कि अनार्य? मनई की राच्छस?

मन के किसी कोने अंतरे में डर मैं भी रहा हूं। जाने किससे!   


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

33 thoughts on “द्विखण्डित

  1. हम भी समीर जी से सहमत, अभी कुछ न होगा उसके बाद टाल मटोल्…वैसे न मंदिर बने न मस्जिद तो अच्छा है। एक हॉस्पिटल बन जाए वहां , जहां राम भी हों और रहीम भी साथ में वाहे गुरु भी रख लें, बुद्ध और ईसा मसीह को भी साथ खींच लें , कोई और रह गया क्या?

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  2. पिताजी से भोपाल फोन पर बात हो रही थी. काफी खुलकर बता रहे थे – "यहाँ तो सब सामान भरके रखने लगे हैं. क्या पता कब क्या हो जाय. हर घर में कम से कम एक महीने का राशन और एक्स्ट्रा सिलेंडर होना चाहिए. तुम भी सामान भरके रखा करो. भलाई का जमाना नहीं है. ये कांग्रेस साली नहीं चाहती कि वहां मंदिर बने. लेकिन मस्जिद दोबारा बनवाने का बूता नहीं है इसमें. तुम देखना, ये साले ऐसा गोलमोल डिसीजन देंगे कि हिन्दू मुसलमान दोनों झांसे में आ जायेंगे. बोलेंगे कि अभी इसपर एक आयोग बिठा देते हैं और फलां डिपार्टमेंट से रिसर्च करवा देते हैं. पंद्रह बीस साल इसमें निकल जायेंगे. बीजेपी तो साले चोर हैं. आज देखा कैसे उमाभारती दोबारा-तिबारा थूक कर चाट रही है. तुम तो वहां आराम से रहो. साउथ दिल्ली में तो वैसे भी कोई हंगामा नहीं होता. अपनी नौकरी बजाओ. अब तो बच्चे भी बड़े हो रहे हैं, जिम्मेदारियां भी बढ़ रही हैं. गाडी ठीक चल रही है? अगले टायर बदलवा लेना. बैटरी तो परसाल ही लगाई थी. और कोई बात हो तो बताना…"

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  3. आपका डर जान कर तनिक भी अच्‍छा नहीं लगा। आप तो कृष्‍ण भक्‍त हैं। इन पंक्तियों पर गौर करें -राखे कृष्‍णा, मारे सै?मारे कृष्‍णा, राखे सै?

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  4. अगर देश मै शांति चाहते है तो सभी नेताओ को, पंडित ओर मोलावियो को फ़ेसले से १० दिन पहले जेल मे नजर बंद कर दे ओर फ़ेसले के दस दिन बाद छोडे, फ़िर देखे इन २० दिनो मै लोग कोन सा दंगा करते है?जनता को कोई मतलब नही मंदिर मस्जिद से, ब्स यह भडकाने वाले मर जाये तो शांति ही शांति

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  5. मुझे लगता है निर्धारित तारीख 24 सितंबर को ही फैसला हो जाता तो राजनेताओं को इतनी सारी फिजूल की बयानबाजी करने का मौका न मिल पाता । मामला या तो ठंडे ठंडे ही सुप्रीम कोर्ट में चला जाता या फिर यहीं पर सम। 23 की सुबह तक सब ओर से राजनेताओं के बयान आ रहे थे कि कोर्ट जो फैसला करे हम मानेंगे… लेकिन ये जो दिन ग्रेस के तौर पर मिल गए हैं फैसले के लिए उसमें मीडिया ने अपने चिलगोजई दिखा दी और उसके चलते विवाद पर विवाद करते राजनेता हर चैनल पर कुकुरमुत्तों से उग आए हैं। कभी-कभी मौका समझते हुए अदालतों को हथौड़ा मार देना चाहिए।

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  6. अतीत को भुलाना आसान नहीं है। सहेज कर रखे पुराने एलबम से एक फोटो गुम हो जाए तो टीस होती है। फिर, यहां तो श्रीराम की जन्‍मस्‍थली और बाबर की विरासत का मामला है। इसलिए ऐसा समाधान होना चाहिए कि दोनों समुदायों में से किसी के मन में फांस न रहे। अन्‍यथा श्रीराम और बाबर बार-बार उनकी स्‍मृति में लौटेंगे और उनकी धरोहर की गैर मौजूदगी सालती रहेगी।इसलिए बेहतर होगा कि जितना जल्‍द हो सके सरकार दोनों समुदायों को साथ लेकर अपने कोष से वहां मंदिर व मस्जिद दोनों बनवाए और राष्‍ट्रीय स्‍मारक के रूप में उसकी हिफाजत करे। और,यह काम न्‍यायालय नहीं कर सकता, सरकार को ही इच्‍छाशक्ति व संकल्‍प दिखाना होगा।

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  7. मैंने तो सोचा कि तसलीमा नसरीन की पुस्तक द्विखंडितो की समीक्षा है ..निशाखातिर रहिये बला टल गयी है ..अब कुच्छौ नाही होने वाला …

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