वह तब नहीं था, जब मैं टेम्पो में गोविन्द पुरी में बैठा। डाट की पुलिया के पास करीब पांच सौ मीटर की लम्बाई में सड़क धरती की बजाय चन्द्रमा की जमीन से गुजरती है और जहां हचकोले खाती टेम्पो में हम अपने सिर की खैरियत मनाते हैं कि वह टेम्पो की छत से न जाContinue reading “गुल्ले; टेम्पो कण्डक्टर”
