शराफत अली ताला चाभी वर्क्स


Photo0016_001मैने शराफत अली को देखा नहीं है। सुलेम सराय/धूमन गंज से उत्तर-मध्य रेलवे के दफ्तर की ओर जो सड़क मुड़ती है, उसपर एक प्राइम लोकेशन पर शराफत अली की औजार पेटी एक मेज नुमा तख्ते पर रखी रहती है। उसकी बगल में टीन का बोर्ड टिका रहता है जिसपर भंगार जैसे ताला-चाभी टंगे रहते हैं। उसके ऊपर लिखा है – शराफत अली ताला चाभी वर्क्स।

जब शराफत अली बैठते नहीं अपनी सीट पर; और उनकी फैक्टरी देख कर लगता है कि तीन शिफ्ट चले, तो भी टर्नओवर बहुत इम्प्रेसिव नहीं हो सकता; तब शराफत अली का गुजारा कैसे चलता होगा?

गरीबी पर्याप्त है और आबादी भी ढ़ेर इस इलाके में। मैं शराफत अली से सिम्पैथियाना चाहता हूं। कल्पना करता हूं कि शराफत अली, शराफत की तरह छुई-मुई सा, पतला दुबला इंसान होगा। बीवी-बच्चों को पालने की दैनिक परेशानियों से जिसका वजन कम होता जा रहा होगा और जिसे देख कर लोग ट्यूबरक्यूलर इंफैक्शन का कयास लगाते होंगे। पर तभी मुझे यह खयाल आता है कि इतने प्राइम कॉर्नर पर अगर शराफत अली की चौकी सालों से बरकरार है, तो यह बिजनेस शराफत अली का फसाड होगा। और खूंखार सा आदमी होगा वह!

ईदर वे, शराफत अली की चौकी, व्यस्त सड़क का एक किनारा, चाभी बनाने वाले का हुनर, पास की दुकान पर चाय सुड़कता पुलीस कॉस्टेबुल और उस दुकान का त्रिशूल छाप मूछों वाला हलवाई, सनसनाहट भरने वाला हिन्दू-मुस्लिम पॉपुलेशन का इलाका — यह सब डेली डेली ऑब्जर्व करता हूं, दफ्तर आते जाते, अपनी कार की खिड़की से। मालगाड़ियाँ चलाने की जिम्मेदारी न होती तो गेर चुका होता एक जेफ्री आर्चरियाना थ्रिलर!

आई वुड हैव बीन ए ग्रेट ऑथर सार! दिस ब्लॉडी नौकरी हैज फक्ड एवरीथिंग!

पता नहीं, कौन है शराफत अली! एक अदद चौकी की फोटो और अण्ट-शण्ट विचार लिये ठेले जा रहा हूं पोस्ट। फिर कहूंगा कि यही ब्लॉगिंग है! Winking smile


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

48 thoughts on “शराफत अली ताला चाभी वर्क्स

  1. अपने पोस्‍ट बॉक्‍स की चाबी खो गयी है, दो महीने से किसी शराफत को खोजने की सोच रहा हूं। पर क्‍यों नहीं खोज पाया, कारण आज समझ में आया।

    …………
    ब्‍लॉगिंग को प्रोत्‍साहन चाहिए?
    लिंग से पत्‍थर उठाने का हठयोग।

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  2. नमस्कार सर,
    आपकी ही भारतीय रेल में डेली पैसेंजरी करते समय एक दफ़ा आपके पोस्ट-नायक के एक हमपेशा, हममजहब दैनिक यात्री के द्वारा अपने धंधे के आगे बड़ी से बड़ी अफ़सरी को अंग विशेष पर रखने की बात सुनी थी। और इस गुरूर की वजह वही थी जो निशांत जी ने बताई है।
    ’सुबह जेब में दस रुपये भी नहीं होते हमारी, और शाम को लौटते समय गिनती नहीं होती। लल्लो-चप्पो करवाते हैं सो अलग। पार्टी खुद लेकर जाती है फ़िर खुद छोड़कर जाती है। लड़के का ससुरा सरकारी अफ़सर है और बहू इसी धौंस में रहती थी। हमने उसके सामने ही अफ़सरी की ऐसी तैसी कर दी, ऐसी अफ़सरी हमारे………। तब से बहू भी अपनी औकात में रहती है और उसके अब्बा भी।’ अक्षरश: इन्हीं शब्दों में समधी को दबाने की दास्तान सुना रहे थे। दोबारा मौका लगा तो नाम कन्फ़र्म करेंगे उनका। हो सकता है एक ब्रांच यमुना तीरे अवस्थित एके नगरी में भी हो ’शराफत अली ताला चाभी वर्क्स’ की।

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    1. जो जितनी धौंस में रहता है, अन्दर से उतना भयभीत भी होता है कि धौंस की ऐसी तैसी न हो जाये! लिहाजा ऐसे को दबेड़ना ज्यादा मुश्किल नहीं। आप की टिप्पणी में जैसा पात्र है, वैसा काफी है! :)

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  3. आप की पोस्ट की खबर पहले पब्लिश होते ही मिल जाती थी, अब स्पैम में चली जाती है, पता नहीं क्युं।
    खैर, हमें पोस्ट के टॉपिक ने इतना एक्साइट नहीं किया जितना आप में हुए बदलाव ने…:) इट इस नाइस्। नॉवल तो साह्ब लिख ही डालिए, हमें कहने का मौका मिले कि एक अवॉर्ड विनिंग राइटर को हम भी जानते हैं…॥:)

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