
बहुत अर्से से यह मुझे बहुत लिज़लिजी और भद्दी चीज लगती थी। व्यक्तित्व के दुमुंहेपन का प्रतीक!
मुझे याद है कि एक बार मुझे अपने संस्थान में झण्डावन्दन और परेड का निरीक्षण करना था। एक सज्जन गांधी टोपी मुझे पहनाने लगे। मैने पूरी शालीनता से मना कर दिया और अपनी एक पुरानी गोल्फ टोपी पहनी।
पर, अब कुछ दिनों से इस टोपी के प्रति भाव बदल गये हैं। मन होता है एक टोपी खादी भण्डार से खरीद लूं, या सिलवा लूं। पहनने का मन करता है – इस लिये नहीं कि फैशन की बात है। फैशन के अनुकूल तो मैं कभी चला नहीं। बस, मन हो रहा है।
इस टोपी की पुरानी ठसक वापस आनी चाहिये। शायद आ रही हो। आप बेहतर बता सकते हैं।

गांधी टोपी सामयिक घटनाक्रम का परिणाम है ……….
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लगता है कालचक्र सामयिकता बनाता रहेगा!
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aaj bahut maja aaya…………..hansi aa gayi tippani-pratitippani padhkar…………………..
ise pahan-ne se achha laega but usme ‘thasak’ anne ke baad…………..
pranam.
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वही! ठसकत्व बढ़ने की प्रतीक्षा की जाये?! :)
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गांधी के जाने के दशकों बाद भी उनकी टोपी की ठसक बरकरार है. सड़्कों पर उमढ़ता जन-सैलाब बता रहा है कि उम्मीद की शमा अभी बुझी नहीं है.
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कल एक टीवी एंकर को गांधी टोपी पहने देखा! :)
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सबसे अच्छा मौका है यह -चन्द्र बरदाई होते तो फ़ौरन बोल पड़ते -मत चूको चौहान!
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जुझारूत्व देखते हुये तो चौहान आप ही लगते हैं। चूकिये मत! अण्णत्व दिखाइये! :)
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आपको क्या लगता है अण्णत्व के द्वारा सारे मसले सुलझ जायेंगे….
विचार कीजिए और दे मारिये एस पर एगो पोस्ट … जविहर लाल को संबोधित करके .. :)
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इंशाअल्लाह, तबियत चकाचक रही तो इस विषय पर लिखूंगा जरूर दीपक जी। आखिर इस विषय पर मानसिक कुलबुलाहट जरूर है।
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पहले यहां मुम्बई में किसी महाराष्ट्रियन के विवाह समारोह में सम्मिलित होने पर वह बड़े प्रेम से सफ़ेद रंग की गाँधी टोपी और तौलिया भेंट करता था लेकिन आजकल उसका चलन धीरे धीरे कम होता जा रहा है। मेरे पास अभी भी एक गांधी टोपी है लेकिन उसे कभी पहना नहीं।
हां, इच्छा मेरी भी है कि धोती कुर्ता पहनूं लेकिन एक तो मुझे धोती पहनने नहीं आती और दूजे डर लगा रहता है कि कहीं रास्ते में चलते चलते कछाट खुल गई तो कोई मौके पर फिर से पहनाने वाला भी न मिलेगा :)
आजकल इलास्टिक वाली रेडीमेड धोती भी मिलती है, कभी मौका मिला तो आजमाउंगा…..तब तक लुन्गी जिन्दाबाद :)
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धोती तो एक दो बार ही मैने पहनी है – अपने पिताजी या अपनी पत्नी के सहयोग से। चुन्नट लगाना अभी तक सीख न पाया! और बूढ़ा घोड़ा अब क्या सीखेगा! :)
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बुढा़ कौन है जी ?
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सब सापेक्ष है!
कोई आंकड़े नहीं हैं कि हिन्दी ब्लॉगर की औसत उम्र क्या है? शायद 30-35 वर्ष के बीच होगी। मेरी उम्र 55-56 है! :lol:
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वैसे अगर धोती कुरता दुबारा प्रचालन में आ आ जाए तो कैसा रहेगा…
मैं एक गोरखपूरी मित्र के यहाँ विवाह उत्साव में गया था… रिटर्न गिफ्ट पीली धोती मिली … पंजाबी पठान को :)
संभाल रखी है… देखो कब मौका मिलेगा पहनने का .:)
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अभी तक टोपी प्रयोग की वस्तु थी, अब गरिमा पा रही है।
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बिल्कुल! वास्तव में।
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गाँधी टोपी की ठसक वापिस जरुर आएगी… आप भी पहनिए…
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आपका यह विश्वास बहुत संक्रामक लगता है बन्धुवर!
धन्यवाद।
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हाँ खरीद लीजिए…. और प्रोफाइल पर फोटू भी वही लगाईयेगा…
वैसे पशिचमी उत्तर प्रदेश और उत्तरखंड के गाँव दिहातों में पहनी हुई गांधी टोपी अच्छी लगती है.. बिना किसी दिखावे के.
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दीपक जी मेरे पास हिमांचली टोपी है – गोल वाली। सर्दियों में यदा कदा पहनता हूं। अच्छा लगता है। पहन कर फोटो खिंचाने की नहीं सूझी।
याद नहीं आता कि दशकों से कोई फोटो टाई पहन कर या टोपी/हैट पहन कर खिंचाई हो। :)
गांधी टोपी का मसला तो सामयिक है!
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एक टोपी वी पी सिंह भी पहनते थे…… जरा गौर फरमाइयेगा… वैसे वो बस सर्दियों के लिए ही है … जैसे की हिमाचली टोपी. एक फेशन तो उस टोपी का भी आया था और हाँ, उस समय मेनका गांधी ने वी पी सिंह को बिना पशु के बालों के सेम टोपी गिफ्ट किया था. गर आपको याद हो तो
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वह टोपी जंचती जरूर थी; पर विश्वनाथ प्रताप सिंह जी ने समाज को विखण्डित कर बहुत जल्दी लीद गोबर कर दिया था!
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क्या बात है जनाब ,ये पढ़कर लगा की ” आग दोनों तरफ है बराबर लगी हुई ”
में भी अक्सर छुट्टी क़े दिन धोती – कुर्ता तो अक्सर पहनता ही हूँ बस ये टोपी वाला केस चल रहा है मन में ,
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आप तो ज्योतिष वाले व्यक्ति हैं मनोज जी! क्या रहेगा गांधी टोपी का हिसाब किताब?!
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उम्र भी एक कारण हो सकता है …………….. गांधी टोपी पहनने का
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धीरू सिंह जी, मैने सोचा उम्र को ध्यान में रख कर। पर यह फैक्टर लगा नहीं!
यह पोस्ट मेरे बुढ़ाने का परिणाम नहीं। सामयिक घटनाक्रम का परिणाम अवश्य है।
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