बाई-पोलर डिसऑर्डर और उत्तर प्रदेश के डी.आई.जी.

उत्तरप्रदेश के डी.आई.जी. का न्यूज आइटम

उत्तर प्रदेश के डी.आई.जी. (फायर सर्विसेज) श्री डी डी मिश्र ने लाइव टेलीवीजन के सामने अपने ए.डी.जी.  पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये और उन्हे लाद फान्द कर अस्पताल में भर्ती कराया गया। यह खबर मीडिया और प्रतिपक्ष ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पर निशाना साधने के लिये प्रयोग की।

बाद में बताया गया कि श्री मिश्र सम्भवत बाई-पोलर डिसऑर्डर से पीड़ित हैं।

यह डिसऑर्डर मानसिक बीमारी है और इसे पागल पन जैसे अप्रिय शब्द से नहीं समझाया जा सकता। बाई-पोलर डिसऑर्डर का मरीज सामान्यत एक क्रियेटिव और प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति होता है। उदाहरण के लिये विंसेंट वॉन गॉग जैसा महान चित्रकार इस डिसऑर्डर से ग्रस्त था। यह एक सेलेब्रिटी बीमारी है!

प्रीति शेनॉय के उपन्यास का कवर

जब मैने अखबार में श्री मिश्र के बारे में पढ़ा और मेरी पत्नीजी ने बताया कि श्री मिश्र टेलीवीजन पर उत्तर प्रदेश सरकार पर आरोप लगा रहे थे और उन्हे उठाकर अस्पताल में भर्ती करा कर पागल करार दिया गया है; तब मैने प्रीति शेनॉय के उपन्यास को पढ़ने की सोची। यह उपन्यास कुछ समय पहले मैने खरीदा था – Life is what you make it. इस उपन्यास में एक बाई-पोलर डिसऑर्डर से ग्रस्त लड़की की कथा है। पहले यह उपन्यास शुरू के कुछ पन्ने पढ़ कर छोड़ दिया था। अब इसे एक दिन में पूरा पढ़ गया।

इस डिसऑर्डर का मरीज क्रियेटिविटी के क्रेस्ट और ट्रफ (ऊंचाई और गर्त) के बीच असहाय सा झूलता है। विंसेण्ट वॉन गॉग जो एक महान चित्रकार थे, इस बीमारी के कारण जब क्षमताओं के निचले स्तर से जूझ रहे थे तो अवसाद में उन्होने अपना कान भी काट लिया था। इस डिसऑर्डर की नीचाई की दशा में मरीज आत्महत्या तक कर सकता है। और जब इसकी ऊंचाई पर होता है तो बिना खाये पिये, नींद लिये उत्कृष्टता के प्रतिमान भी बना सकता है।

प्रीति शेनॉय ने  अपने उपन्यास में अनेक सेलिब्रिटी लोगों के नाम बताये हैं जो इस बीमारी से पीड़ित थे। भारत में इस डिसऑर्डर को पागलपन से जोड़ कर देखने की प्रवृत्ति है और लोग इसके बारे में बात ही नहीं करना चाहते। इस उपन्यास में प्रीति शेनॉय ने इलाज में इलेक्ट्रोकनवल्सिव थेरेपी (बिजली के शॉक का प्रयोग), लीथियम के डोज़ और ऑक्यूपेशनल थेरपी की बात कही है। पता नहीं, डी.आई.जी. साहब के मामले में क्या इलाज होगा।

सामाजिक आर्थिक और अन्य परिवर्तनों के कारण समाज में इस प्रकार के डिसऑर्डर के मामले उत्तरोत्तर बढ़ेंगे। व्यक्तियों में परफार्म करने की ललक और दबाव दोनो बढ़ रहे हैं। बढ़ती जटिलताओं के चलते छटपटाहट भी ज्यादा है। अत: समाज “सिर फिर गया है” या “पागल हो गया है” जैसे सरलीकृत एक्प्लेनेशन से मामले को समझने की कोशिश करता रहेगा – अपनी वर्जनाओं या असंवेदनशीलता के चलते; तो बहुत ही गलत होगा।

मैं आशा करता हूं कि शेनॉय के उपन्यास को लोग पढ़ेंगे और श्री मिश्र के मामले से ही सही, इस डिसऑर्डर पर स्वस्थ विचार प्रसारित करने में पहल करेंगे।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

37 thoughts on “बाई-पोलर डिसऑर्डर और उत्तर प्रदेश के डी.आई.जी.

  1. डी डी मिश्रा जी से पूरी सहानुभूति रखते हुए इतना जरूर कहूंगा कि उनके इस प्रकटीकरण को राजनेता अपने अपने ढंग से चिन्हित करने में लगे होंगे।

    मायावती के विरोधी कहेंगे कि सरकार के खिलाफ सच बोलकर बाइपोलर के ‘उच्चतम स्तर’ को छूआ गया है, और बसपा कहेगी कि ‘निम्नतर स्तर’ को छूआ गया है।

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  2. बीमारी ही है। और मानसिक भी।

    सुना है बिजली के झटके से ठीक हो जाने की संभावना होती है। किताब के बारे में जानने को मिला। अवसर मिला तो पढ़ूंगा।

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    1. मरीज अवसाद में अपनी जान लेने का यत्न कर सकता है। यह भावना एण्टी-डिप्रेसेण्ट दवाइयों से हटाई जा सकती है पर उनका असर आने में हफ्तों लग सकते हैं। ई.सी.टी. से यह त्वरित गति से हो सकता है। ऐसा उपन्यास में कहा गया है। इसके अलावा बाई-पोलर डिसऑर्डर के लिये तो लीथियम डोज़ की ही बात है उपन्यास में!

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  3. अखबार में जैसे ही मिश्रा जी द्वारा लगाये गये आरोपं के बारे में पढ़ा था, उनका अगला मुकाम दिखने लगा था जो अगले दिन की अखबार से कन्फ़र्म हो गया।
    अनुराग जी सही कह रहे हैं, मानसिक रोगों में एक बड़ी दिक्कत ये भी है कि मरीज खुद ही ईलाज करवाने में सहयोगी नहीं होता\होती। वजह ऐसी बीमारी का टैबू होना हो या कुछ और, लेकिन ऐसा है।
    स्वस्थ विचार प्रसारित …………, आमीन।

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    1. जिस ऊंचाई और गर्त की हम लोग बात या कल्पना करते हैं, उससे कहीं अलग चीज है यह।
      बेहतर समझ के लिये उपन्यास पढ़ा जाये!

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  4. इस बीमारी पर आपने सामयिक और फौरी जानकारी उपलब्ध कराकर ब्लागिंग के सर्वोच्च मानदंडों की स्थापना में अवदान किया है (कोई श्लेशार्थ नहीं )
    बाकी तो आचार संहिता कुछ कहने से प्रतिबंधित कर रही है …
    अपने ब्लॉग के हेडर में कृपया ऊपर नीचे दिख रहे [ ] को ठीक करें और दायीं ओर का एक चित्र भी जो कई लोगों को आपत्तिजनक दिख रहा है!

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    1. मेरी पत्नीजी हेडर में परिवर्तन के सख्त खिलाफ हैं। फिर भी मैं परिवर्तन कर दे रहा हूं। पर गारण्टी नहीं कि उनके कहने पर वही वापस कर दूं।
      वे आलोचना को दरकिनार करने को कहती हैं! :)

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      1. सॉरी, मेरी पत्नीजी ने बहुत अधिक आपत्ति की है मेरी टिमिडिटी पर।

        एक और श्रद्धेय व्यक्ति ने भी अपत्ति जताई – गंगा तट पर स्नान का दृष्य ही परिपूर्णता लाता है।

        लिहाजा मैं हेडर का चित्र यथावत कर रहा हूं। मुझे अन्दाज नहीं था कि यह चित्र इतनी इण्टेंस संवेदनायें बनायेगा। शायद मेरे कैमरे से मुझसे कहीं ज्यादा प्रतिभा की चीज निकली है यह।

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        1. ज्ञानदत्त जी ,
          मुझे भी कोई आपत्ति नहीं है मगर चित्र इरोटिक है,सायास प्रस्तुत किया हुआ लगता है और एक उस अनाम श्रद्धालु का विज्ञापन जिसे इसका भान भी नहीं है कि कहीं वह दर्शनीय बनी हुयी है..और बात नारी की गरिमा से जुडी हई भी है -और लोगों को आपत्तिजनक लग सकता है,मगर वे आपसे कहेगें नहीं -एक सद्भावनापूर्ण अनुरोध था मेरा बस ..बाकी आपकी सदेच्छा!

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        2. “अनाम श्रद्धालु” कह कर उपेक्षा नहीं की जा सकती!
          उनका मेल था –

          ja ki rahi bhavna jaisi, prabhu murat dekhi tin jaisi.

          I did not notice the difference as some people saw it. My view is to ignore the criticism, unless the subject concerned objects. in any case it is difficult to identify the person.

          मेरी पत्नीजी भी यही विचार रखती हैं। और मुझे किसी प्रकार के उद्दीपन से ब्लॉग पाठक बढ़ाने की न इच्छा है, न आवश्यकता!

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  5. आज के दौर मे ईमानदारी की बाते करना अपने आप मे बाई-पोलर डिसऑर्डर का एक लक्षण है .

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  6. मिश्र जी ऐसी बीमारियों से पीड़ित हैं भी या नहीं, वह एक अलग विषय हो सकता है परंतु ऐसे बीमारों के साथ बड़ी समस्या इनका टैबू होना भी है। विशेषकर भारत में पढे लिखे लोग भी दुनिया भर को अपने खिलाफ़ षडयंत्रकारी मानकर अपने इलाज के मार्ग बन्द कर देते हैं। भगवान जाने उनके परिवारजनों का क्या हाल होता होगा। मरीज़ों से पूरी सहानुभूति होते हुए भी कई केसेज़ में तो यही ठीक लगता है कि जबरिया इलाज होना चाहिये।

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    1. टैबू होने के साथ साथ इनके बारे में अज्ञानता के चलते आले ओझाई, फिर सामान्य डिप्रेशन का इलाज होने लगता है!

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