ओह, मैं काशी विश्वनाथ की बात नहीं कर रहा। मैं बंगलौर से हो कर आ रहा हूं और श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ तथा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती ज्योति विश्वनाथ की बात कर रहा हूं! उनको अपने ब्लॉग के निमित्त मैं जानता था। मेरे इस ब्लॉग पर उनकी अनेक अतिथि पोस्टें हैं। उनकी अनेक बड़ी बड़ी, सारगर्भित टिप्पणियां मेरी कई पोस्टों का कई गुणा वैल्यू-एडीशन करती हुई मौजूद हैं। उनके ऑक्सफोर्ड में पढ़ रहे रोड्स स्कॉलर सुपुत्र नकुल के बारे में आप दो-तीन पोस्टों में जान पायेंगे। कुल मिला कर विश्वनाथ जी के परिचय के रूप में इस ब्लॉग पर बहुत कुछ है।
पर जब बंगलौर जा कर उनसे साक्षात मिलना हुआ तो उन्हे जितना सोचा था, उससे कहीं ज्यादा जुझारू और ओजस्वी व्यक्ति पाया। वे सपत्नीक अपने घर से रेलवे स्टेशन के पास दक्षिण मध्य रेल के बैंगळूरु मण्डल के वरिष्ठ मण्डल रेल प्रबन्धक श्री प्रवीण पाण्डेय के चेम्बर में आये। पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार मैं वहां पंहुचा हुआ था। आते ही उनके प्रसन्न चेहरे, जानदार आवाज और आत्मीयता से कमरा मानो भर गया। हमने हाथ मिलाने को आगे बढ़ाये पर वे हाथ स्वत: एक दूसरे को आलिंगन बद्ध कर गये – मानों उन्हे मस्तिष्क से कोई निर्देश चाहिये ही न थे इस प्रक्रिया में।
श्री विश्वनाथ बिट्स पिलानी में मेरे सीनियर थे। मैं जब वहां गया था, तब वे शायद 4थे या 5वें वर्ष में रहे होंगे। वहां हम कभी एक दूसरे से नहीं मिले। अब तक मेल मुलाकात भी वर्चुअल जगत में थी। प्रवीण के चेम्बर में हम पहली बार आमने सामने मिल रहे थे। विश्वनाथ जी ने मुझसे कहा कि उनके मन में मेरी छवि एक लम्बे कद के व्यक्ति की थी! यह बहुधा होता है कि हम किसी की एक छवि मन में बनते हैं और व्यक्ति कुछ अलग निकलता है। पर विश्वनाथ जी या उनकी पत्नीजी की जो छवि मेरे मन में थी, उसके अनुसार ही पाया मैने उन्हें!
श्री विश्वनाथ जी ने अपने कार्य के दिनों को कुछ अर्सा हुआ, अलविदा कह अपने “जूते टांग दिये” हैं। उनके सभी दस-पन्द्रह कर्मचारियों को टेकओवर करने वाली कम्पनी ने उसी या उससे अधिक मेहनताने पर रख लिया है। फिलहाल उनके घर का वह हिस्सा, जो उनकी कम्पनी का दफ्तर था, अब भी है – टेकओवर करने वाली कम्पनी ने किराये पर ले लिया है। नये उपकरण आदि लगाये हैं और कार्य में परिवर्धन किया है। काफी समय विश्वनाथ जी उस नयी कम्पनी के सलाहकार के रूप में रहे। पर अपने स्वास्थ्य आदि की समस्याओं, अपनी उम्र और शायद यह जान कर कि कार्य में जुते रहने का कोई औचित्य नहीं रहा है, उन्होने रिटायरमेण्ट ले लिया।
श्री विश्वनाथ ने डेढ़ साल पहले अपनी अतिथि पोस्ट में लिखा था –
अप्रैल महीने में अचानक मेरा स्वास्थ्य बिगड गया था। सुबह सुबह रोज़ कम से कम एक घंटे तक टहलना मेरी सालों की आदत थी। उस दिन अचानक टहलते समय छाती में अजीब सा दर्द हुआ। कार्डियॉलोजिस्ट के पास गया था और ट्रेड मिल टेस्ट से पता चला कि कुछ गड़बडी है। एन्जियोग्राम करवाया, डॉक्टर ने। पता चला की दो जगह ९९% ओर ८०% का ब्लॉकेज है। डॉक्टर ने कहा कि हार्ट अटैक से बाल बाल बचा हूँ और किसी भी समय यह अटैक हो सकता है। तुरन्त एन्जियोप्लास्टी हुई और तीन दिन के बाद मैं घर वापस आ गया पर उसके बाद खाने पीने पर काफ़ी रोक लगी है। बेंगळूरु में अपोल्लो होस्पिटल में मेरा इलाज हुआ था और साढे तीन लाख का खर्च हुआ। सौभाग्यवश मेरा इन्श्योरेंस “अप टु डेट” था और तीन लाख का खर्च इन्श्योरेंस कंपनी ने उठाया था।
अब वे रिटायरमेण्ट का आनन्द ले रहे हैं।
उन्हे हृदय की तकलीफ हुई थी। काफी समय वे अस्पताल में भी रहे। उनके एक पैर में श्लथता अभी भी है। उसके अलावा वे चुस्त दुरुस्त नजर आते हैं।
प्रवीण के चैम्बर में हम लोगों ने कॉफी-चाय के साथ विविध बातचीत की। श्रीमती विश्वनाथ बीच बीच में भाग लेती रहीं वार्तालाप में। बैंगळूरु में बढ़ते यातायात और बहुत तेज गति से होते निर्माण कार्य पर उन दम्पति की अपनी चिंतायें थीं। वाहन चलाना कठिन काम होता जा रहा है। कुछ ही समय में सड़कों का प्रकार बदल जा रहा है। अब बहुत कम सड़कें टू-वे बची हैं। पार्किंग की समस्या अलग है।
साठ के पार की अपनी उम्र में भी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के प्रति अपनी जिज्ञासा और समझ को प्रदर्शित करने में श्री विश्वनाथ एक अठ्ठारह साल के किशोर को भी मात दे रहे थे। बहुत चाव से उन्होने अपने आई-पैड और सेमसंग गेलेक्सी नोट को मुझे दिखाया, उनके फंक्शन बताये। इतना सजीव था उनका वर्णन/डिमॉंस्ट्रेशन कि अगर वे ये उपकरण बेंच रहे होते और मेरी जेब में उतने पैसे होते तो मैं खरीद चुका होता – देन एण्ड देयर!
हम लोग लगभग डेढ़ घण्टा प्रेम से बतियाये। श्री विश्वनाथ को अस्पताल में भर्ती अपने श्वसुर जी के पास जाना था; सो, प्रवीण, मैं और प्रवीण के तीन चार कर्मचारी उन्हे दफ्तर के बाहर छोड़ने आये। यहां उनकी इलेक्ट्रिक कार रेवा खड़ी थी। रेवा के बारे में आप जानकारी मेरी पहले की पोस्ट पर पा सकते हैं। श्री विश्वनाथ ने सभी को उसी ऊर्जा और जोश से रेवा के बारे में बताया, जैसे वे चेम्बर में अपने आई-पैड और गेलेक्सी टैब के बारे में बता रहे थे।
मैने कहा कि आप तो किसी भी चीज के स्टार सेल्समैन बन सकते हैं। वह काम क्यों नहीं किया?
उत्तर विश्वनाथ जी की पत्नीजी ने दिया – कभी नहीं बन सकते! जब वह सामान बेचने की डील फिक्स करने का समय आयेगा तो ये उस गैजेट के एक एक कर सारे नुक्स भी बता जायेंगे। सामान बिकने से रहा! :-)
मुझे लगता है कि श्रीमती विश्वनाथ के इस कमेण्ट में श्री विश्वनाथ की नैसर्गिक सरलता झलकती है। वे मिलनसारिता की ऊष्मा-ऊर्जा से लबालब एक प्रतिभावान व्यक्तित्व हैं, जरूर; पर उनमें दुनियांदारी का छद्म नहीं है। जो वे अन्दर हैं, वही बाहर दीखते हैं। ट्रांसपेरेण्ट!
उनसे मिल कर जैसा लगा, उसे शब्दों में बांधना मुझ जैसे शब्द-गरीब के लिये सम्भव नहीं।
श्रीमती और श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ की जय हो!

ज्ञान प्रवीण विश्वनाथ जी की जय हो.
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So kind of you sir!
I am blushing!
Gyanjee and Praveen too must be joining me.
We had a memorable session indeed.
I will reply tomorrow to all friends who have been kind enough to comment on this post.
Regards
GV
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वे, जिनकी पोस्टों में उत्कृष्टता पोर पोर में निवास करती है, उन सुब्रह्मण्यन जी की जय हो, जय हो, जय हो!
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तीन बार मिला हूँ और तीनों बार १००-१०० ग्राम खून बढ़ गया होगा शरीर में। श्री विश्वनाथजी से बात कर आप उत्साहित हुये बिना रह ही नहीं सकते। तकनीक के बारे में बहुत युवाओं को पूरे दिन का व्याख्यान दे सकते हैं। गतिमान और अनुकरणीय..
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जय हो! रोचक मुलाकात!
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जय हो, जय हो….
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बहुत खूब लिखा है आपने. श्री विश्वनाथजी की रेवा, गैलेक्सी नोट व आइपैद के चर्चे हमने भी सुने हैं :) सच है जब ब्लोगिंग जगत के लोग वास्तव में मिलते हैं तो लगता ही नहीं की पहले नहीं मिले!
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आपका ब्लॉग भी क्या खूब है इण्डियन होममेकर जी!
और आपके पैशन, आपके विश्वास से सहमत होने से ज्यादा प्रशंसा का भाव मन में है!
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इस विश्वनाथ जी की जय में गोपाल जी और कृष्ण जी भी तो शामिल हैं.
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निश्चय ही, सभी आयाम हैं उनमें!
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It was interesting narration of your meeting Sh G Vishwanath. He has been my virtual friend and we enjoy sending interesting mails to each other….
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विश्वनाथ जी जैसे व्यक्ति से मिल कर जीवन धन्य हो जाता है…रोचक मुलाकात का ब्यौरा भी उतना ही रोचक लगा…
नीरज
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प्रारम्भ की पंक्तियां पढ कर कमलेश्वर कि पुस्तक का टाइटल याद आया- कितने पाकिस्तान! आपकी पोस्ट पढ़ते दो शब्द मस्तिष्क में घूम रहे थे- कितने विश्वनाथ . काशी विश्वनाथ, गुंडप्पा विश्वनाथ और अब गोपालकृष्ण विश्वनाथ :)
विश्वनाथ जी के लेखन से परिचित थे ही और अब विश्वनाथ दम्पत्ति से भी परिचय कराने के लिए आभार पाण्डेय जी॥
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लगता है – कमलेश्वर का “कितने पाकिस्तान” इस बहाने पढ़ ही लूंगा! :-)
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हलचल की पोस्टों से ही विश्वनाथ जी को जाना है। वे वास्तव में उर्जा प्रदायक हैं।
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