बेंगळूरु – कांक्रीट और वृक्ष का मल्लयुद्ध

यशवंतपुर स्टेशन के पास बनती बहुमंजिला इमारत। विशालकाय निर्माण उपकरण ऐसे लगता है मानो बंगलोर का झण्डा-निशान हो!

बेंगळूरु में मैने अनथक निर्माण प्रक्रिया के दर्शन किये। फ्लाईओवर, सड़कें, मैट्रो रेल का जमीन से उठा अलाइनमेण्ट, बहुमंजिला इमारतें, मॉल … जो देखा बनते देखा। रिप वॉन विंकल बीस साल सोने के बाद उठा तो उसे दुनियां बदली नजर आई; पर बेंगळूरु के रिप वान विंकल को तो मात्र तीन चार साल में ही अटपटा लगेगा – कहां चले आये! कुछ ऐसा श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ ने व्यक्त किया – जो बैंगळूरु में ही रहते हैं बहुत अर्से से, पर स्टेशन क्षेत्र में हमसे मिलने बहुत अंतराल के बाद आये थे। उन्होने कहा कि देखते देखते सड़कें वन वे हो गयी हैं। जहां क्रॉसिंग हुआ करते थे, वहां फ्लाईओवर मिलते हैं। नये/काफी समय बाद आये व्यक्ति को अगर ड्राइव करना हो तो समझ नहीं आता कि कैसे किधर जाये!

महायज्ञ हो रहा है यहां, जिसमें हवि है सीमेण्ट, स्टील, बालू, पत्थर, ईंट … और यज्ञफल है भवन, अट्टालिकायें, मॉल, सड़क, प्लॉईओवर, रेल, सड़क …

हाईराइज टॉवर बनाती ऊंची क्रेने मुझे बैंगळूरु शहर की नव पताकायें सी लगती हैं। जहां देखो, वहां इन्हे पाते हैं हम। कितनी सशक्त निर्माण की मांसपेशियां बनाये जा रहा है यह महानगर, उत्तरोत्तर!

ऐसे में भी यहां की हरियाली जीवंत है। कॉक्रीट से मुकाबला करते सभी आकार प्रकार के वृक्ष अपने लिये जगह बनाये हुये हैं। बैंगळूरु में कैण्टोनमेण्ट हुआ करता था और है, उसके क्षेत्र में हरियाली बरकरार है। सड़कें चौड़ी करने के लिये वृक्ष कटे होंगे जरूर, पर फिर भी बाग बगीचों, सड़कों के किनारे या किसी भी लैण्डस्केप की बची जगह में वृक्ष सांस लेते दीखे। वाहनों ने प्रदूषण बढ़ाया होगा, पर वृक्षों की पत्तियों पर मुझे हरीतिमा अधिक दिखी। अन्यथा, इस महानगर के मुकाबले कहीं छोटे शहर-कस्बों में कहीं अधिक दुर्द्शा देखी है वृक्षों की। वहां पत्तों पर उनकी मोटाई से ज्यादा धूल कालिख जमा होती है, बिजली के तारों की रक्षा के लिये हर मानसून से पहले वृक्षों का जो बोंसाईकरण साल दर साल वहां होता है, वह वन्ध्याकरण जैसा ही होता है वृक्षों के लिये।

बैंगळूरु सिटी स्टेशन पर मैं प्रवास के दौरान रह रहा था। वहां रहने के कारण प्रवीण पाण्डेय ने मुझे सवेरे कब्बन पार्क और फ्रीडम पार्क की सैर का सुझाव दिया। उन्होने अपना वाहन भी वहां तक जाने के लिये सवेरे सवेरे भेज दिया। उस सुझाव के लिये उनका जितना धन्यवाद हम दम्पति दें, कम ही होगा। उन पार्कों में वृक्षों, वनस्पति और पक्षियों की विविधता देख कर मन आनन्दित हो गया! उनके कुछ चित्र भी मैने इस पोस्ट के लिये चुन लिये हैं।

कुल मिला कर निर्माण और हरीतिमा में मल्लयुद्ध हो रहा है बैंगळूरु में। मल्लयुद्ध ही कहा जायेगा। निर्माण के लिये वृक्षों का नादिरशाही कत्लेआम नहीं हो रहा। अन्यथा, पाया है कि छोटे शहरों, कस्बों में; घर सड़क, फैक्टरी बनाने वाले, जमीन हथियाने वाले; अपने वृक्षों, लैण्डस्केप, जीवों, जल और नदियों के प्रति कहीं अधिक निर्मम और कसाई होते हैं तथा वहां की नगरपालिकायें कहीं अधिक मूक-बधिर-पंगु, धूर्त और अन्धी होती हैं। वहां एक स्वस्थ मल्लयुद्ध की कोई सम्भावना ही नहीं होती।

जीतो, प्यारे वृक्षों, जीतो बैंगळूरु में! फिर कभी आऊंगा तुम्हें देखने!

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

22 thoughts on “बेंगळूरु – कांक्रीट और वृक्ष का मल्लयुद्ध

  1. देखिये, शायद मेट्रो का काम पूरा होने के बाद कुछ निजात मिले ट्रैफिक से. इधर हमारे शहर चेन्नई से कभी गुजरते हैं या नहीं? :)

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  2. आप के ब्लोग के हैडर की ये गंगा किनारे की फ़ोटो बहुत अच्छी है।

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  3. सबसे अधिक दिक्कत करने वाली चीज है यहाँ की बढती आबादी. जिस पर सब चुपचाप बैठे हैं. कम से कम भारत के लिए किसी थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस से कम नहीं. यदि यही गति बनी रही तो हरियाली के चित्र ही हमारे काम आयेंगे. और मिट्टी भी किताबों में ही देखने को नसीब होगी. कैसी रेस में हिस्सा ले रहें हैं हम. कहाँ हमें दौडाया जा रहा है.

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  4. आज का बेंगलुरू दूसरों को भले ही हराभरा दिखे पर वहां के रहनेवाले वहां बढ रहे पर्यावरण प्रदूषण, सिमटते सरोवर, कटते तरुवर सभी चिंतित करते हैं॥

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