
बेंगळुरू आने का मेरा सरकारी मकसद था व्हाइटफील्ड का मालगोदाम, वेयरहाउसिग और कण्टेनर डीपो देखना। व्हाइटफील्ड बैगळुरु का सेटेलाइट स्टेशन है। आप यशवंतपुर से बंगारपेट की ओर रेल से चलें तो स्टेशन पड़ते हैं – लोट्टगोल्लहल्ली, हेब्बल, बैय्यप्पन हल्ली, कृष्णराजपुरम, व्हाइटफील्ड का सेटेलाइट माल टर्मिनल और व्हाइटफील्ड। मैं वहां रेल से नहीं गया। अत: यह स्टेशन देख नहीं सका। पर जब सीधे सेटेलाइट गुड्स टर्मिनल पर पंहुचा तो उसे बंगळूर जैसे बड़े शहर की आवश्यकता के अनुरूप पाया।
यहां एक इनलैण्ड कण्टेनर डीपो है जिसमें प्रतिदिन लगभग तीन मालगाड़ियां कण्टेनरों की उतारी और लादी जाती हैं। इस डीपो में लगभग 6000 कण्टेनर उतार कर रखने लायक जमीन है। इसके अलावा आयात-निर्यात करने वालों का माल रखने के लिये पर्याप्त गोदाम हैं। कस्टम दफ्तर यहीं पर है, जहां आने जाने वाले माल का क्लियरेंस यहीं होता है।
कण्टेनरों में निर्यात के माल का स्टफिंग (क्लियरेंस के उपरांत) यहीं किया जाता है। स्टफिंग के लिये छोटी फोर्क लिफ्ट क्रेने (3 से 5 टन क्षमता) यहां उपलब्ध हैं। कण्टेनर में माल भरने के बाद उन्हे एक के ऊपर एक जमा कर रखने अथवा मालगाड़ी के फ्लैट वैगनों पर लादने के लिये रीच स्टैकर (32 टन क्षमता) प्रयोग में आते हैं। इन उपकरणों के चित्र आप स्लाइड शो में देख सकेंगे।
इसी प्रकार आयात किया गया कण्टेनर कस्टम क्लियरेंस के बाद रीच स्टेकरों के द्वारा ट्रेलरों में लादा जाता है और ट्रेलर कण्टेनरों को उनके गंतव्य तक पंहुचाने का काम करते हैं।
व्हाइटफील्ड के कण्टेनर डीपो में अंतर्देशीय कण्टेनर भी डील किये जाते हैं। पर उनका अंतर्राष्ट्रीय यातायात की तुलना में अनुपात लगभग 1:6 का है।
व्हाइटफील्ड में कण्टेनर डीपो के अलावा सामान्य मालगोदाम भी है, जहां सीमेण्ट, खाद, अनाज, चीनी और स्टील आदि के वैगन आते हैं। यहां रोज 6-8 रेक (एक रेक में 2500 से 3600टन तक माल आता है – उनकी क्षमतानुसार) प्रतिदिन खाली होते हैं। उसमें से सत्तर प्रतिशत का माल तो व्यवसायी तुरंत उठा कर ले जाते हैं, पर जो व्यवसायी अपना माल खराब होने के भय से अथवा बाजार की दशा के चलते मालगोदाम पर रखना चाहते हैं, उन्हे यहां उपलब्ध सेण्ट्रल वेयरहाउसिंग कार्पोरेशन के वेयरहाउस वाजिब किराये पर रखने की सुविधा देते हैं। मुझे बताया गया कि सामान्यत सीमेण्ट के रेक के लिये यह वेयरहाउस प्रयोग किये जाते हैं।
मुझे प्रवीण पाण्डेय ने बताया कि यहां नित्य लगभग 2-3 रेक सीमेण्ट और 0.8 रेक स्टील उतरता है। भवन और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण में सीमेण्ट और स्टील के प्रयोग का लगभग यही अनुपात है। अर्थात बैंगळूरु सतत निर्मित होता चला जा रहा है और उसका इनपुट आ रहा है व्हाटफील्ड के सेटेलाइट गुड्सशेड से!
वापसी की यात्रा में इस पोस्ट को लिखना मैने प्रारम्भ किया था तब जब मेरी ट्रेन व्हाइटफील्ड से गुजर रही थी, और जब यह पंक्तियां टाइप कर रहा हूं, बंगारपेट आ चुका है। गाड़ी दो मिनट रुक कर चली है। ट्रेन में कुछ लोगों ने खाने के पैकेट लिये हैं। अन्यथा वहां न चढ़ने वाले थे यहां, न उतरनेवाले।
[बंगारप्पा बंगारपेट के ही रहे होंगे। अब तो ऊपर जा चुके। पार्टियां बहुत बदली हों, पैसा भले कमाया हो, बैडमिण्टन रैकेट थामे स्मार्ट भले लगते रहें हो, पर चले ही गये!]
खैर, अब मैं आगे की यात्रा के दौरान व्हाइटफील्ड के स्लाइड शो का काम खत्म करता हूं:
[जैसा ऊपर से स्पष्ट है, यह पोस्ट बैंगळूरु से वापसी यात्रा के दौरान 8 फरवरी को लिखी थी]
स्लाइड शो चकाचक है! 🙂
LikeLike
स्लाइड शो ने आपकी पोस्ट समझने में बडी मदद की।
LikeLike
Ghoom liye ji aapke sath whitefields ke godam….
LikeLike
बेंगलुरु तो समुद्र तट पर नहीं है। शायद यहां से अंतर्राज्य ढुलाई होती है मालगाडियों के माध्यम से।
LikeLike
इनलैण्ड कण्टेनर डीपो के माध्यम से कोई आयातक/निर्यातक इन जगहों पर अपना माल लाद या छुड़ा सकता है। कस्टम की सारी औपचारिकतायें यहीं पूरी हो जाती हैं। सामान कण्टेनर में इन जगहों से बन्दरगाह के बीच यात्रा करता है और उनका जहाजों पर बिना किसी अन्य औपचारिकता के लदान/उतराई होती है। अत: ये तट के नहीं, जमीन के बन्दरगाह हैं!
LikeLike
बढिया है- अर्थात यह सिंगल विंडो सिस्टम हो गया ना 🙂
LikeLike
व्हाईटफिल्ड में दो साल हमने गुजारे है २० साल पहले . रेलवे स्टेशन के पीछे काडूगुडी में सत्य साईं बाबा के आश्रम जाया करते थे सप्ताहांत पर . उन दिनों लम्बी लम्बी विदेशी कारो के काफिले व्हाईट फिल्ड की सड़क पर दिखने का मतलब होता था साईं बाबा का आपने आश्रम में होना. उन दिनों व्हाईट फिल्ड में ज्यादातर रिटायर्ड अंग्लो इंडियन समुदाय के लोग रहते थे . बहुत ही शांत वातावरण. अब तो वहा चिल्ल-पों मची है .
LikeLike