
कल्लू की मटर बेकार हो गयी थी। पर बगल में जो सरसों बोई थी, वह बढ़िया हुई। आज होली के दिन सवेरे घूमने गया तो देखा कि सरसों काट कर गट्ठर खेत में रखे हैं। खेत के आकार के हिसाब से ठीकठाक निकल आयेगी सरसों। इनकी सिंचाई के लिये गंगाजी का पानी नहीं, शिवकुटी, चिल्ला और सलोरी/गोविन्दपुरी के नालों का पानी मोड़ा था कल्लू एण्ड कम्पनी ने। अभी भी वह पानी सब्जियों की सिंचाई के काम आता है। वैसे भी वही पानी कुछ देर बाद गंगाजी में पंहुच कर नाले का पानी नहीं रहता, गंगाजी का पानी हो ही जाता।
सब्जियां लगने लगी हैं। एक लौकी के खेत की सरपत की बाड़ के अन्दर चार बांस गाड़ कर टेण्ट नुमा झोंपड़ी में कोई रखवाली करने वाला सवेरे सवेरे सोया हुआ था। सरपत की बाड़ से सटा कर एक ठेले पर डीजल से चलने वाला पानी का पम्प रखा था। अधिकतर खेती करने वाले गगरी से पानी ला ला कर सब्जियों को सींचते हैं। पम्प से डीजल का खर्चा तो होगा पर मैनुअल लेबर बच जायेगा। पिछली साल रामसिंह जी ने यही इस्तेमाल किया था। इस साल शायद उसका उपयोग और व्यापक हो जाये।
जवाहिरलाल जाती सर्दी में भी सवेरे अलाव जलाने का अनुष्ठान पूरा करता है। आज भी कर रहा था।
रामकृष्ण ओझा नियमित हैं अपनी पत्नी के साथ गंगा स्नान करने में। आज भी वे स्नान कर लौट रहे थे। पण्डाजी के पास उनकी पत्नी ने पॉलीथीन की पन्नी से पाव भर चावल और दो आलू निकाले और संकल्प करने के लिये वे दम्पति गंगाजी/सूर्य की ओर मुंह कर खड़े हो गये और पण्डाजी संकल्प कराने लगे। यह अनुष्ठान भी घाट का नियमित अनुष्ठान है। ओझाजी निपटे ही थे कि एक महिला भी आ गयीं इसी ध्येय से।
दो तीन लोग यह सब देखने, बोलने बतियाने और हास परिहास को वहां उपस्थित थे। मेरा भी मन हुआ कि वहां रुका जाये, पर अपने रेल नियंत्रण के काम में देरी होने की आशंका के कारण मैने वह विचार दबा दिया।
होलिका दहन का मुहूर्त आज सवेरे (8 मार्च) का था। तिकोनिया पार्क में तीन चार लोग रात की ओस से गीली होलिका की लकड़ियां जलाने का यत्न कर रहे थे पर आग बार बार बुझ जा रही थी। मैं तेज पांव घर लौटा और मालगाड़ियां गिनने के अपने काम में लग गया!

….वैसे भी वही पानी कुछ देर बाद गंगाजी में पंहुच कर नाले का पानी नहीं रहता, गंगाजी का पानी हो ही जाता।
….बढ़िया व्यंग्य है। गंगाजी जाने से अच्छा है यहीं कहीं नाले वाले में स्नान ध्यान कर लिया जाय:)
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एक नदिया एक नार कहावत मैलो नीर भरो,
जब मिलकर दोऊ एक बरन भये, सुरसरि नाम परौ!
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जवाहिर लाल अलाव जलाता है कि अलख जगाता है कौन जाने!!
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मालगाड़ी परिचालन और होलिका दहन!! पता नहीं कौन किसकी दुश्मन!! हमारे पर्सपेक्टिव से!
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जब तक रिटायर नहीं होता तब तक होलिकादहन ट्रेन परिचालन की दुश्मन।
उसके बाद तो हिन्दुस्तान (बिहार इंक्ल्यूडेड – राजगृह, नालन्दा, लिच्छवि गणराज्य की जमीन, मगध… !) देखने का मन है – दो हजार वर्षों मे एक साथ जीने वाले देश को समझने के लिये।
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मगध.. सुनकर गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूँ.. आपकी नज़रों से अपने प्रदेश को देखने तक परमात्मा से जीवन प्रदान करने की प्रार्थना करता हूँ!!
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लगता है रखवाली करने वाला सियार /हुंडार से डरता नहीं है . हम तो अभी कल ही अपने गांव में करईल वाले खेत पर गए थे . सरसों अभी पकनी बाकी है . मसूर पक गई है .घरवाले बता रहे थे की सियार और घोड़पडार ने फसल को बहुत नुकसान किया है .
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सियार यदा कदा दिखते हैं। अब कम ही दिखते हैं। गंगा इस पार नीलगाय नहीं आते।
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यही समस्या आती है डबल ड्यूटी में.
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होली पर शुभकामनाएँ!
हम तो इस बार नए मुहल्ले में अपने घर बैठे चोटिल घुटने को आराम देते रहे।
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अरे, खैरियत है न?
आपको सपरिवार शुभकामनायें!
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समीर जी की बात में दम है, अगर मालगाड़ियों के संचालन की देख-रेख से कुछ फुर्सत पाई होती तो होलिका दहन पर एक अच्छा आलेख पढने को मिलता. बहरहाल यह कछार रिपोर्ताज पढ़कर अच्छा लगा, इसकी फ्रीक्वेन्सी बढ़ाइये.
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मालगाड़ी के चक्कर में अच्छी कमेन्टरी रह गई होलिका दहन की…खैर, होली मुबारक मालगाड़ी मैन को सपरिवार!!
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जवाहिर लाल को गंगाजी से न जाने कितना कुछ सीखने को मिल गया है, निश्चिन्त भाव से बहते रहना, चाहे नदी मिले या नाला..
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हां, वह शायद गंगाजी से सीख रहा है और हम उससे!
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जवाहिरलाल को कौन बताता होगा कि भइये बस करो अब गर्मियां शुरू हो गईं…
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अभी गगा तट से हो कर आ रहा हूं। आज भी अलाव जलाये है जवाहिर।
उससे पूछा तो बताया कि बाउण्ड्री के ठेके में लगभग 900-1000 रुपये का पेमेण्ट नहीं मिला उसे। बोला – “जाईं सारे, ओनकर पईसा ओनके लगे न रहे। कतऊं न कतऊं निकरि जाये”।
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तथास्तु! मगर वहाँ से निकलकर अपने असली मालिक के पास तो आये तब बात बने।
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