मटर की छीमी तोड़ने जाती औरतें


मुम्बई में सबर्बन लोकल ट्रेनों में कम्यूट करने वाली महिलाओं की अपेक्षा ये ज्यादा आपसी बोलचाल में व्यस्त लगती हैं। निश्चय ही उनसे ज्यादा प्रसन्न दीखती हैं। विपन्नता और प्रसन्नता में कोई व्युत्क्रमानुपाती सम्बंध नहीं होता।

रामसेवक जी के उद्यम की कथा


रामसेवक अपने काम से संतुष्ट हैं। और उसका श्रेय पूरी लगन और ईमानदारी से अपने काम करने की आदत को देते हैं। उनके अनुसार लोग अगर इसी तरह से काम करें, कभी जांगरचोरई न करें तो हर एक के लिये सम्मानजनक काम है और इज्जत है।

किरियात में मिर्च की निराई करने जाती महिलायें


ऑटो वाले के पास बैठी महिला ने सुरती बनाई। खुद ली और ऑटो वाले को भी खिलाई। दांत के नीचे सुरती दाब कर ऑटो वाला पीछे जा कर एक रस्सी से ऑटो के इंजन को स्टार्ट किया। वापस आ कर ऑटो ले कर रवाना हुआ।

कुनबी का खेत, मचान और करेला


वह अनुभव ज्यादा महत्वपूर्ण था – पूरी तरह एड-हॉक तरीके से गांव की सड़क पर चलते चले जाना। किसी कुनबी के खेत में यूंही हिल जाना। मचान से सोते किसान को उठाना और पपीता खरीदने की मंशा रखते हुये करेला खरीद लेना।

कुछ बच्चों के पुराने चित्र


कुल मिला कर लड़कियों की जिंदगी ढर्रे पर चल निकली है। वे घर संभालने लगी हैं। खेतों में कटाई के काम में जाने लगी हैं। लड़के अभी बगड्डा घूम रहे हैं, पर कुछ ही साल बाद मजदूरी, बेलदारी, मिस्त्रियाना काम में लग जायेंगे।

गोविंद लॉकडाउन में बम्बई से लौट तीन बीघा मेंं टमाटर उगा रहे हैं


वे लॉकडाउन के समय बंबई से अपने घर वापस लौटे थे। वहां ऑटो चलाते थे। यहां समझ नहीं आया कि क्या किया जाये। फिर यह सब्जी उगाने की सोची।