कल्लू के उद्यम

कल्लू के कुत्ते चरती भैसों को भगा रहे थे। लोग गंगास्नान कर लौट रहे थे।

बहुत दिनों बाद कल्लू दिखा कछार में। गंगा दशहरा के पहले ही उसके खेतों का काम धाम खत्म हो गया था। अब वह सरसों के डण्ठल समेटता नजर आया। उसके साथ दो कुत्ते थे जो कछार में चरती भैसों को भौंक कर भगा रहे थे। लोग स्नान कर आ जा रहे थे। मुझे कल्लू का दीखना अच्छा लगा। दूर से ही हमने हाथ हिला कर परस्पर अभिवादन किया। फ़िर मैं रास्ता बदल कर उसके पास गया।

कल्लू सरसों के डण्ठल समेटता नजर आया।

क्या हाल है?

जी ठीक ही है। खेत का काम धाम तो खत्म ही हो गया है। यह (डण्ठल की ओर इशारा कर) बटोर रहा हूं। जलाने के काम आयेगा।

हां, अब तो बरसात के बाद अक्तूबर नवम्बर में ही शुरू होगा फिर से सब्जी बोने का कार्यक्रम? 

देखिये। अगले मौसम में शायद वैसा या उतना न हो। अभी तो सब्जी की फ़सल अच्छी हो गयी थी। आने वाले मौसम में तो कुम्भ भी लगना है। घाट पर जाने के लिये ज्यादा रास्ता छोड़ना होगा। भीड़ ज्यादा आयेगी तो खेती कम होगी।

कल्लू ने स्वत: बताना शुरू किया। अभी तो वह लीची का ठेला लगा रहा था। लीची का मौसम उतार पर है। एक बारिश होते ही वह खत्म हो जायेगी। फ़िर सोचना होगा कि क्या किया जाये। प्याज और लहसुन का ठेला लगाने का मन है। “यही सब काम तो हैं हमारे लिये”।

मैं सोचने लगा – कल्लू की माली दशा औरों से बेहतर है। उसके पास उद्यम के बेहतर विकल्प हैं। सब्जी बोने में भी वह खाद देने और पम्पिंग सेट से सिंचाई करने के बेहतर प्रयोग कर लेता है। ठेले लगाने में भी उसके पास औरों की अपेक्षा बेहतर बार्गेनिंग पावर होगी।

मुझे कल्लू अच्छा लगता है। जिस तरह से वह मुझसे बेझिझक बात करता है, उससे लगता है कि वह भी मुझे अच्छा समझता होगा। देखते हैं वह अगली बार क्या करता है। उससे कब और कहां मुलाकात होती है – कछार में सब्जी उगाते या ठेले पर सब्जी बेचते।

कल्लू, सूखा भूसा/डण्ठल और उसके कुत्ते।

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कल जवाहिरलाल को अपने लड़के के तिलक की पत्रिका मैने दी, शिवकुटी घाट के पास। जवाहिरलाल ने ध्यान से देखी पत्रिका। एक बहुत आत्मीय सी मुस्कान दी मुझे और फ़िर वह पत्रिका पण्डाजी के पास सहेज कर रखने चला गया।

जवाहिरलाल ने तिलक की पत्रिका हाथ में ली।
पत्रिका ध्यान से देखी।
और फ़िर उसे सहेज कर रखने पण्डाजी की चौकी की ओर चल दिया।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

16 thoughts on “कल्लू के उद्यम

  1. जवाहिर को आपके निमंत्रण की कदर है । कल्लू की मेहनत और उद्यम आपकी पारखी नजर ने पहचान ली ।

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