
अचिन्त्य पहले नॉन रेलवे के अपरिचित हैं जो गोरखपुर में मुझसे मिलने मेरे दफ्तर आये। गोरखपुर में पीढ़ियों पहले से आये बंगाली परिवार से हैं वे। उन्होने बताया कि उनका परिवार सन 1887 में बंगाल से यहां आया। सवा सौ से अधिक वर्षों से गोरखपुरी-बंगाली!
अठ्ठारह सौ अस्सी के समय में बहुत से बंगाली परिवार इलाहाबाद आये थे। मैने वहां जॉर्जटाउन और लूकरगंज में बहुत पुराने बंगले देखे हैं बंगालियों के। पर लगभग उसी समय गोरखपुर में भी बंगाली माइग्रेशन हुआ था – यह मेरे लिये नयी सूचना थी। और ब्लॉग पर प्रस्तुत करने के लिये एक महत्वपूर्ण सामग्री।
श्री अचिन्य ने मुझे बताया कि इतने पुराने समय के लगभग 20 बंगाली परिवार गोरखपुर में हैं। यह संख्या इलाहाबाद की अपेक्षा कहीं कम है। पर कालांतर में कई परिवार यहां आये बंगाल से। अचिंत्य के अनुसार लगभग 20-25 हजार परिवार हैं इस समय। अधिकांश रेलवे में नौकरी लगने के कारण आये – स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद। 1950-60 के दशक में। कुछ परिवार फर्टिलाइजर फेक्टरी में नौकरी के कारण आये। यह फेक्टरी गोरखधाम मन्दिर के पास थी और अब बन्द हो गयी है।
मैने अचिंत्य जी से पूछा कि बंगला लोगों का अपनी संस्कृति से कितना जुड़ाव है यहां गोरखपुर में? उन्होने बताया कि आजकल जुड़ाव में कमी आयी है। मसलन दुर्गापूजा के दौरान पहले 5 दिनों के कार्यक्रम में चार दिन बंगला और एक दिन हिन्दी नाटक हुआ करते थे। अब दो या तीन दिन हिन्दी नाटक हुआ करते हैं। पहले युवा पीढ़ी को बंगला समाचारपत्र और पुस्तकों में रुचि हुआ करती थी। अब वह नहीं रही।
पर वही हाल तो हिन्दी का भी है। पुस्तकें पढ़ने वाले इसमें भी कहां हैं?
अचिंत्य जी ने मुझे बताया कि गोरखपुर में बंगाली उपस्थिति के बारे में उनके पिताजी मुझे और बेहतर जानकारी दे सकेंगे। … और मैं सोच रहा हूं कि आगे कभी अपने प्रश्नों की तैयारी के साथ उनके पिताजी से मुलाकात करूंगा! जरूर!
अच्छा लगा श्री अचिंत्य ( कितना अच्छा नाम है!) जैसे भद्र व्यक्ति से मिलना!
Pranam and Dhanyavad Pandeyji ! Shri Satish Tripathiji IAS (rtd) Deoria ke rahanewale hain aapke lekh unhe pasand hain.kripaya Lahidiji se unhe sampark karaiye. regards/satyanarayan pandey 09869606696 MumbaiDate: Wed, 26 Mar 2014 12:06:35 +0000
To: p.satyanarayan@hotmail.com
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आशा है, श्री लाहिड़ी आपकी टिप्पणी देख लेंगे। मेरे पास उनका मोबाइल नम्बर नहीं है।
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बंगालीजन जहाँ भी जाते हैं अपनी संस्कृति के मुख्य तत्व बचा कर रखते हैं। हर बड़े नगर में उनकी उपस्थिति है, बाहर जाकर रहने में संकोच नहीं करते हैं।
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बंगाली परिवार अधिकतर आसपास ही रहना पसंद करते हैं
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जंक्शन के बाहर ही बड़ा भव्य पंडाल लगता है दुर्गा पूजा के समय…. वहीं आसपास ही शायद ये परिवार रहते हैं..
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अचिंत्य बोले तो क्या वितआउट चिंता तो नहीं होता मैंने मध्य प्रदेश में पाया कि बंगाली समुदाय संघटित है हर शहर में एक काली बाड़ी होती है या मैत्री संघ बस उसी में सिमटे रहते हैं
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