रमेश कुमार जी के रिटायरमेण्ट अनुभव

श्री रमेश कुमार, मेरे अभिन्न मित्र। जिन्होने अपना चित्र भेजने के लिये पहली बार अपना सेल्फी लिया!
श्री रमेश कुमार, मेरे अभिन्न मित्र। जिन्होने अपना चित्र भेजने के लिये पहली बार अपना सेल्फी लिया!

रमेश कुमार जी मेरे अभिन्न मित्रों में से हैं। हम दोनों ने लगभग एक साथ नौकरी ज्वाइन की थी। दोनो केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण में असिस्टेण्ट डायरेक्टर थे। कुंवारे। दिल्ली के दूर दराज में एक एक कमरा ले कर रहते थे। घर में नूतन स्टोव पर कुछ बना लिया करते थे। दफ़्तर आने के लिये लम्बी डीटीसी की यात्रा करनी पड़ती थी – जो अधिकांशत: खड़े खड़े होती थी।

क्लास वन गजटेड नौकरी लगने पर जो अभिजात्य भाव होता, वह नौकरी लगने के पहले सप्ताह में ही खत्म हो चुका था। याद है कि जब एक मित्र ने बताया था कि वह अपने लिये मकान खोजने निकला तो मकान मालिक ने गजटेड नौकरी की सुन कर कहा था – “नो, यू पेटी गवर्नमेण्ट सरवेण्ट काण्ट अफ़ोर्ड दिस अकॉमोडेशन” ( नहीं, तुम छुद्र सरकारी कर्मचारी इस मकान का किराया भर नहीं पाओगे)।

खैर हम दोनों में कोई बहुत एयर्स नहीं थी सरकारी अफसरी की – न उस समय और न आज।
कालान्तर में मैं रेलवे की यातायात सेवा ज्वाइन कर दिल्ली से चला आया पश्चिम रेलवे में, पर रमेश जी केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण में ही रहे। उसी सेवा में उन्होने कुछ वर्ष पावर ग्रिड कार्पोरेशन की डेप्यूटेशन पर इलाहाबाद में काटे। उस समय मैं भी वहां पदस्थ था उत्तर-मध्य रेलवे में। एक जगह पर होने के कारण पुरानी मैत्री पुन: प्रगाढ़ हो गयी। वह प्रगाढ़ता आज भी बनी है।

रमेश जी रिटायर हुये इसी साल जून के महीने में। मैं सितम्बर में होने जा रहा हूं। वे इलाहाबाद और दिल्ली के बीच रहते हैं। अधिकांशत: इलाहाबाद। मैं इलाहाबाद और वाराणसी के बीच रहूंगा – अधिकांशत: कटका में। ज्यादा दूरी नहीं रहेगी। वैसे भी; मैं इलाहाबाद-वाराणसी के बीच एक मन्थली सीजन टिकट का पास बनवाने की सोच रहा हूं – जिससे इलाहाबाद आना जाना होता रहेगा। उनसे सम्पर्क भी बना रहेगा।

उस रोज रमेश जी से बात हो रही थी। अपने रिटायरमेंण्ट के बाद के लगभग ढाई महीने से वे काफ़ी प्रसन्न नजर आ रहे थे। मैने उनसे कहा कि ऐसे नहीं बन्धु, जरा अपना अनुभव ह्वाट्सएप्प पर लिख कर दे दो। उसे मैं भविष्य के लिये ब्लॉग पर टांग दूं और हां, एक चित्र – सेल्फी भी जरूर नत्थी कर देना।

इस तरह के काम में रमेश कुमार मुझसे उलट काफी सुस्त हैं। खैर, मैत्री का लिहाज रखते हुये एक दो मनुहार के बाद उनका लिखा मुझे मिल गया और थोड़ी और मनुहार के बाद सेल्फी भी।

अपनी कहता रहूं तो रमेश जी के साथ जो जीवन गुजारा है – उसपर एक अच्छी खासी पुस्तक बन सकती है। सुख और दुख – दोनों में बहुत अन्तरंग रहे हैं वे। पर यहां उनका ह्वाट्सएप्प पर लिखा प्रस्तुत कर दे रहा हूं।अन्ग्ररेजी से हिदी अनुवाद के साथ।

रमेश लिखते हैं –

आज आपसे बात कर बहुत प्रसन्नता हुई। मेरे ख्याल से आप 30 सितम्बर की काफ़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे होंगे। पिछले दो महीने से अधिक से मैं अपनी रिटायर्ड जिन्दगी पूरी तरह एन्ज्वॉय कर रहा हूं। मैं किसी अनुशासित दिनचर्या पर नहीं चल रहा (सिवाय नित्य सवेरे की सैर और यदा-कदा शाम की सैर के)। मैं पढ़ता हूं – करीब तीन-चार समाचारपत्र और जो हाथ लग जा रहा है (इस समय एक से अधिक पुस्तकें पढ़ रहा हूं) तथा बागवानी करता हूं। मुझे पक्का यकीन है कि आपके पास ढेरों अपठित पुस्तकें होंगी। अब समय आ रहा है कि उनके साथ न्याय किया जाये। और आपको तो लिखने में रुचि है – आपके पास तो अवसर ही अवसर हैं अब।

मैं संगीत सुनता हूं और अब सीखने का भी प्रयास करने लगा हूं। मैं किसी न किसी प्रकार से समाज सेवा भी करना चाहता हूं – यद्यपि उसके बारे में विचार पक्के नहीं किये हैं।

मेरा डाईबिटीज़ कण्ट्रोल में है। मेरी HbA1C रीडिंग 7.3 से घट कर 6.5 हो गयी है। मुझे पक्के तौर पर नहीं पता कि यह चमत्कार कैसे हुआ, पर निश्चय ही रिलेक्स जिन्दगी, समय की किसी डेडलाइन को मीट करने की अनिवार्यता न होना, आफिस का तनाव घर पर न लाने की बात ने सहायता की है। कुल मिला कर मुझे जो करने का मन है, वह कर रहा हूं। मेरे ख्याल से हर आदमी यही चाहता है।

अगर पैसा कमाने की कोई बाध्यता नहीं है ( सरकार सामान्य और सन्तुष्ट जीवन जीने के लिये पर्याप्त दे देती है) और अगर स्वास्थ्य के कोई बड़े मुद्दे नहीं हैं तो अनेकानेक सम्भावनायें है जीवन को आनन्द से व्यतीत करने की, रिटायरमेण्ट के बाद। आप अपनी सुनें और तय करें।

मुझे बहुत उत्सुकता है आपके नये ’आशियाने’ को देखने की कटका में। ज्यादा आनन्द के लिये हंस-योग का प्रयास करें।

सस्नेह,
रमेश कुमार।


रमेश कुमार जी ने हंस-योग का नाम लिया अन्त में। इसके विषय में उनसे पूछना रह गया। सम्भवत: वे स्वामी परमहंस योगानन्द या उनसे सम्बद्ध किसी योग (क्रिया योग?) की बात कर रहे हैं। शायद उनका आशय यह है कि मैं किसी योग-प्राणायाम आदि की ओर अपना झुकाव बनाऊं।

देखता हूं, आगे क्या होता है। अभी तो मन सूर्योदय को गंगा की बहती धारा में झिलमिलाते देखने को ही ललचा रहा है! बस!


 

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

4 thoughts on “रमेश कुमार जी के रिटायरमेण्ट अनुभव

  1. बढ़िया है। रमेश जी को शुभकामनाएं।

    कल आप भी सेवानिवृत्त हो रहे हैं। अपनी इच्छा सूची के हिसाब से काम शुरू कीजिये। :)

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  2. रिटायर्मेंट के कारण अब तक छूटे हुए काम पुरे करने की फुर्सत अवश्य मिलेगी.लेकिन नौकरी का टाईट शिड्यूल जो अनुशासन प्रदान करता है, उसके अभाव में अनुशासन अपनी जेब से लगाना पडेगा. मेरे जैसे आरामपसंद व्यक्ति को तो रिटायरमेंट के आरंभिक दिन इसी अनुशासन को ढूंढने और फिर उसकी एक-एक ईंट जमाकर आगे के दिन नियमित करने में लगाना पडेगा. हार्दिक शुभकामनायें!

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