आज गणतन्त्र दिवस की सुबह मुझे जलेबी लाने को आदेश मिला घर में। सामान्यत: साइकिल से जाता था; आज जल्दी थी और अशोक (कार ड्राइवर) उपस्थित था; सो कार से गया।
जलेबी की जिस दुकान से आम तौर पर लेता था, वहां भीड़ लगी थी। उसने बताया कि आप को आधा घण्टा इन्तजार करना पड़ेगा। इन्तजार की बजाय दूसरी दुकान तलाशना ज्यादा सही लगा मुझे।

सड़क के दूसरी ओर की दुकान पर भी भीड़ थी पर भीड़ को टेकल करने के लिये उनके यहां बेहतर इन्फ़्रास्ट्रक्चर था। दो कड़ाहियां और दो कारीगर लगे थे। दो और लोग बतौर सहायक (जलेबी तोलने और पैसा लेने के लिये) लगे थे। पर भीड़ यहां अनुपात में उतनी ही थी – या ज्यादा ही। लोग जलेबी के साथ समोसा, चटनी आदि भी ले जा रहे थे। पर ज्यादा जोर जलेबी पर था। इक्का दुक्का आदमी लड्डू की फरमाइश वाला था।
पर मूलत: जलेबी। प्रिडॉमिनेण्टली जलेबी ही।
यहां भी मुझे करीब 5-7 मिनट इन्तजार करना पड़ा। इस बीच जलेबी छानने की चार खेप निकल गयीं। वह परात जिसमें जलेबी छान कर रखी जाती थी; बड़ी तत्परता से खाली हो जा रही थी। Queing Theory के मेरे सामान्य ज्ञान के आधार पर एक सेट जलेबी छानक की और जरूरत थी।

खैर, मेरा नम्बर लग गया। सामान्यत: आधा किलो जलेबी लिया करता था। आज एक किलो ली। घर में काम करने वाले और आगन्तुकों के स्वागत के लिये पर्याप्त रहे, यह सोच कर।
जलेबी लेने पर मैने दुकानदार से पूछा – आज कितना जलेबी बिक रही है सामान्य दिन की बजाय?
“बहुत! आज तो रात दो बजे से बना रहे हैं जलेबी। तब भी इक्का दुक्का ग्राहक छूट जा रहे हैं। आम दिन से दस गुना बनी है। अभी दिन भर बनेगी।”
बस आज के रोज रहेगी मांग। कल से सामान्य स्तर वापस लौट आयेगा।

गणतन्त्र दिवस मुझे लगा कि जलेबीतन्त्र दिवस जैसा है। या अगर राइम पर ध्यान दिया जाये तो कहा जा सकता है – जलेबतन्त्र!
और जलेबी से बेहतर भारतीय जनतन्त्र का आईकॉन क्या होगा? सस्ती, सुलभ और सर्वप्रिय मिठाई। दुकानदार से पूछना भूल गया कि सभी धर्मों के लोग लेने आ रहे थे जलेबी या नहीं? जलेबी सेकुलर है या नहीं; यह दुकानदार के इण्टर्व्यू से स्पष्ट होता।
सुना है मौलाना – उलेमा लोगों ने कहा है कि आज वे भारत माता की जै नहीं कहेंगे। उसके बदले हिन्दुस्तान जिन्दाबाद कहेंगे। उसी तर्ज पर कहीं यह न हो कि वे जलेबी नहीं खायेंगे; सेवईंया ही खायेंगे।

बहरहाल, गणतन्त्र दिवस हम गांव वालों के लिये जलेबीतन्त्र दिवस है! 😀