प्रयागराज में सवेरे की साइकिल सैर


गांव से साइकिल मंगवाई. इलाहाबाद सिटी में पदस्थ पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य यातायात निरीक्षक भोला राम जी को अनुरोध किया तो उनके सहकर्मी घंटे भर में विक्रम पुर गांव में मेरे घर से साइकिल ले कर अगली पैसेंजर गाड़ी से यहां पंहुचा दिए. रेलवे की व्यवस्था वैसी ही मुस्तैद है, जैसी मेरे समय में थी.

स्टेशन से शिवकुटी स्थित मेरे घर तक लाने के लिए मित्र ठाकुर एसपी सिंह जी ने सहायता की.

पिताजी के तेरही और सोलहवीं के कर्मकांड से निवृत्त होकर आज सवेरे मैं साइकिल ले कर घूमने निकला. शिव कुटी से वाया अपट्रान चौराहा, तेलियरगंज होते कटरा के नेतराम चौराहे तक गया और वापस लौटा. मैप के अनुसार कुल 11 किलोमीटर साइकिल चलाई.

शिवकुटी से कटरा, नेतराम चौराहा

साइकिल चला आने के बाद यह लगा कि स्टेमिना इससे ज्यादा का है. बीच में एक जगह बिना चीनी की चाय का पड़ाव मिल जाए तो सिविल लाइंस तक का ट्रिप आसानी से लगाया जा सकता है.

मौसम बढ़िया हो गया है. शीत भी बहुत नहीं और घाम भी सुखद लगता है. साइकिल चलाना रिटायर्ड जिन्दगी के लिए अच्छा व्यायाम है. गाँव में भी और शहर में भी.

मोतीलाल संस्थान के पास साइकिल से गुजरते हुए. नोकिया के पुराने मोबाइल से दृश्य क्लिक करना आसान भी है और 90 प्रतिशत चित्र ब्लॉग में प्रस्तुत करने लायक निकल आते हैं.

प्रयागराज कुछ कुछ मॉडर्न हो गया है. तीन चार जगह ट्रेफिक सिग्नल दिखे. सवेरे का समय था. ट्रेफिक कम था. लोग उन सिग्नलों का पालन कम, उलंघन ज्यादा कर रहे थे. दिन में जब पुलिस वाला ड्यूटी पर आ जाएगा, तब शायद पालन करना शुरू करें.

दुकानें खुली नहीं थीं. दिवाली का दिन था तो खुलेंगी जरूर. फुटपाथ ब्लॉक कर फूल बेचने वाले जरूर जमाए दिखे अपने पेवमेंट स्टाल. फूल वाले मोटर साइकिल पर फूल ले जाते भी दिखे. उसी तरह लादे हुए जैसे भदोही जिले में कार्पेट की काती लादे मोटर साइकिल वाले दिखते हैं.

कटरा का सड़क डिवाइडर. यह फूल वालों ने हथिया लिया है.

कटरा में सड़क पर कूड़ा बहुत था. कूड़ा था तो आवारा पशु भी थे और इक्का-दुक्का सफाई कर्मी भी. लोग मॉर्निंग वाक करते दिख रहे थे – हाथ में मोबाइल और कान में ईयर फोन ठूंसे. इतने कचरे में कोई Plogging जैसा नैतिक कृत्य करने की जहमत तो उठा ही नहीं सकता. उसे मोबाइल – ईयर फोन की बजाय कूड़ा बीनने के लिए खांची ले कर चलना होगा.

दुकानें बंद थीं कटरा में. साढ़े सात बजे अगर कोई साइकिल की दुकान खोल रहा होता तो आगे एक टोकरी और सीट कवर लगवाने का मूड था. वह फिर कभी होगा. हाँ नेतराम हलवाई की दुकान खुली थी और काफी भीड़ भी थी. सवेरे सवेरे लोग दिवाली मिष्ठान्न खरीद कर छुट्टी पाना चाहते थे.

साढ़े सात बजे ग्राहक काफी थे नेतराम की दुकान पर

और जगह फूल बेचने वाले गेंदा के फूल और मालाएं रखे थे, पर नेतराम चौराहे पर कमलिनी लिए बैठे थे.

नेत राम चौराहे पर फूल वाले

ग्यारह किलोमीटर की साइकिल सैर में मैं उतर कर खड़ा नहीं हुआ. अन्यथा कई ऐसे दृश्य थे, जो अगर तरीके से मोबाइल कैमरे में दर्ज किए जाते तो बढ़िया फोटोग्राफी होती. फिर कभी…

एक जगह एक सू-बबूल का पेड़ टूट कर गिरा दिखा. गांव होता तो गांव वाले उसके गिरते ही लकड़ी काट कर ढ़ो ले जाते. पतली टहनियां भी नहीं छोड़ते. शहर था तो पेड़ गिरने के बावजूद हरा भरा रहने का प्रयास कर रहा था.

टूटा पेड़

गांव और शहर में फर्क़ है. साइकिल भ्रमण की उथली नजर में भी वह फर्क़ नजर आता है. प्रयागराज में कुछ दिन और रहा और नियमित साइकिल चलाई तो अवलोकन शायद ज्यादा पैना हो सके.

वैसे, मेरे मित्र रमेश कुमार जी ने हिदायत दी है कि साइकिल से ज्यादा दूर तक न निकला जाए. यहां ट्रेफिक भेड़ियाधसान है.


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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