आज हवाओं में भी जहर है – रीता पाण्डेय की अतिथि पोस्ट

मेरी पत्नीजी – श्रीमती रीता पाण्डेय घर की कुशल लीडर हैं। कोरोनावायरस के संक्रमण से लड़ने के लिये उन्होने घर के तीन कमरे और दालान नुमा 400 वर्ग फिट का कमरा घर के सदस्यों के लिये सील कर लिया है। वहां और किचन में केवल घर के लोगों का ही प्रवेश है। घर की साफ सफाई और किचन का सारा काम हम लोग – मुख्यत: मेरी पत्नीजी और बहू कर रहे हैं।

रीता यह सब करने के साथ साथ रोज पोर्टिको में बैठ कर एक डेढ़ पेज का लेखन भी कर रही हैं। मन में जो भी चल रहा है, उसे कागज पर उतारने से वे अपनी अभिव्यक्ति की जरूरत भी पूरी कर रही हैं। बखूबी।

पहले दिन जो लिखा, वह प्रस्तुत है –


ह्वाट्सएप्प पर एक संदेश आया। कवि प्रदीप के एक पुराने गाने का वीडियो। “कैसा ये खतरे का पहर है। आज हवाओं में भी जहर है”।

बेतहाशा, बेलगाम भागती दुनियां को एक जबरदस्त ब्रेक लग गया है। सब कुछ ठहर गया है – हवाई जहाज, ट्रेन, बस, कार, मोटर साइकिल – सब कुछ। आदमी, औरत, बच्चे घर में कैद हो कर रह गये हैं।

रीता पाण्डेय

एक खबर चल रही थी कि कुछ युवा अहमदाबाद से राजस्थान पैदल जा रहे थे अपने घरों को। हल्की सी मुस्कान के साथ याद आया कि हमारे ऋषि, संत घूमते हुये चौमासा एक जगह करते थे। पुरखे पैदल चारों धाम की यात्रा किया करते थे। अब क्या जमाना आ गया है। व्यक्ति व्यवधान आने पर अपने घरों की ओर ही चल पड़ा है।

डिजिटल दुनियाँ, चांद पर कॉलोनी बनाने का सपना देखने वाले अपने घुटनों पर आ गये हैं। मुम्बई, दिल्ली का प्रदूषण जीरो पर आ गया है। लोग घरों में अपने परिवार के साथ बंद हैं। हो सकता है अपने बुजुर्गों के साथ बैठ कर भूतकाल की किसी महामारी की चर्चा सुन रहे हों। ये सब लॉकडाउन के कुछ पॉजिटिव पक्ष हैं। … अभी तो शुरुआत है। रेस में लगी दुनियाँ, मौत के भय से डर कर इस फेज को कैसे निभायेगी, यह तो वक्त ही बतायेगा।

गांव में घर के आगे के हिस्से का अरण्य

मेरे पति के रिटायर होने के बाद हमने गांव में बसने का फैसला किया। यहां मेरे पास बड़ा घर है। घर के बहुत बड़े हिस्से में हरियाली है। फूल-पत्ती है। चिड़ियाँ हैं, गिलहरियाँ, नेवले और सांप भी हैं। समय काटना मुश्किल नहीं है। महानगरों में जहां बड़ी बड़ी इमारतों में एक या दो या तीन कमरे के फ्लैट में लोग रहते हैं और खिड़की खोलने पर कांक्रीट के जंगल ही नजर आते हैं; वहां लोग कैसे समय व्यतीत करते होंगे? मुम्बई की चालों में एक कोठरी में शिफ्ट वाइज रहते आठ दस लोगों की हालत और भी बदतर होगी जहाँ कोठरी में अब चौबीसों घण्टे सभी लोग एक साथ होंगे।

पार्क, स्वीमिंग पूल, बाजार, मॉल – सब बंद…

कठिन समय तो है, पर कठिनाइयों में ही आदमी की क्षमता परखी जाती है। लड़े बिना कोई रास्ता न हो तो आदमी सरेण्डर करने की बजाय लड़ना पसंद करता है। जंग छिड़ी है पूरी दुनियां में और जीतना तो है ही!

कोरोना से इस युद्ध में कितने शहीद होंगे, पता नहीं। पर जंग वही जीतता है जो रणनीति बनाता है और उसका कड़ाई से पालन करता, करवाता है।

आशा के प्रदीप को जलाये चलो, धर्मराज; एक दिन होगी मुक्त भूमि रण भीति से…


Published by Rita Pandey

I am a housewife, residing in a village in North India.

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