जगत नर्सरी


यह जगह – जगत नर्सरी, मझवाँ, मिर्जापुर – लगभग बीस-पच्चीस किलोमीटर दूर होगी वाराणसी से। गांव है, पर वहां इतनी सुंदर नर्सरी है यह कि विश्वास नहीं होता। गूगल सर्च करने पर काफी जानकारी मिलती है। नेट और खंगालने पर नर्सरी का एक फेसबुक पेज भी दिखता है। उसके व्यवस्थापक महोदय वनस्पतियों के चित्र भी प्रस्तुत करते हैं और डी.एम. पर जानकारी मांगने पर खरीद का विकल्प भी बताते हैं।

लोग कहते हैं कि भारत एक साथ बीस शताब्दियों में पाया जाता है। जगत नर्सरी का ग्रामीण परिवेश, उसका भव्य परिसर (वैसी नर्सरी वाराणसी या इलाहाबाद में मैने नहीं पाई) और उसकी इण्टरनेट पर उपस्थिति – यह सब भारत के तेजी से बदलते परिदृष्य का अहसास करा देती है।

मेरी पत्नीजी की घर में उद्यान को सही रूप देने में रुचि है। हमने पिछले कई वर्षों में अपनी पेंशन का ठीक ठाक हिस्सा वनस्पतियों पर खर्च कर दिया है। अब; जब अपनी बढ़ती उम्र और अल्पज्ञता के कारण उद्यान सही शेप नहीं ले पाया (वह उद्यान कम, अरण्य ज्यादा लगता था); तो हमने एक माली की तलाश की। सौभाग्य से घर के पास के ही रामसेवक जी मिल गये। वे सप्ताह में एक दिन हमारे परिसर को संवारने में वेतन के आधार पर योगदान करते हैं। उनके काम करते महीना से ज्यादा हो गया है, और उनके मेहनत से घर अरण्य से उद्यानोन्मुख हो गया है।

जगत नर्सरी में प्रवेश करती मेरी पत्नीजी।

रामसेवक को इनपुट देने के लिये हमने जगत नर्सरी से कुछ पौधे लेने का निर्णय किया।

जगत नर्सरी में हम अब तक दो बार गये हैं। दोनो बार वहां के प्रबंधक नहीं दिखे, एक कर्मचारी, कोई मौर्य जी ही मिले। काफी बड़े परिसर में फैली नर्सरी को शायद वही मैंनेज करते हैं। उनका नाम भूल रहा हूं। शायद रामजी मौर्य बताया। मौर्य जी पास के गांव में रहते हैं।

नर्सरी में पौधों को देखना और वहां से पौधे खरीदना मायूस मन को भी प्रसन्न कर देता है। और जब वहां एक ऐसे व्यक्ति से आदान प्रदान (इण्टरेक्शन) हो, जिसे पौधों की जानकारी हो, और जो उनको अपने काम में गहराई से लगा हो, तो प्रसन्नता दुगनी-तिगुनी हो जाती है। मौर्य जी से बातचीत कर वैसा ही लगा। जो कमी दिखी, वह यह थी कि वे पौधों या गमलों की कीमत के बारे में निर्णय लेने के लिये स्वतन्त्र नहीं थे। एक बार तो गुलदाउदी के पौधे बेचने के बारे में मौर्य जी ने फोन कर अपने मालिक जी से फोन पर निर्देश भी मांगा।

अगर मौर्य के पास पर्याप्त अथॉरिटी होती अथवा जगत नर्सरी के कर्ताधर्ता से हमारा सीधा सम्पर्क होता, तो शायद हम जितने की खरीद कर लौटे, उससे दुगनी-चौगुनी खरीद कर आते।

रामजी मौर्य ने नर्सरी के बाहर तक आ कर हमारे पौधे कार में रखवाये।

फिर भी, रामजी मौर्य ने हमें अच्छे से डील किया। वे पौधों को हमारी कार में रखवाने भी बाहर तक आये। यह भी बताया कि नर्सरी के साइन बोर्ड पर जो फोन नम्बर लिखा है, उसकी बजाय आप दूसरे नम्बर पर मालिक (कोई अखिलेश सिंह) जी से सम्पर्क कर सकते हैं। बकौल मौर्य, अखिलेश स्वयम अच्छी जानकारी रखते हैं और फूलों की खेती की उपज को वाराणसी के मार्केट में बेचने का व्यवसाय भी करते हैं। मुझे समझ नहीं आया कि अखिलेश जी का मुख्य उद्यम खेती है, फूलों की खेती है, नर्सरी का प्रबंधन है या वाराणसी का फूल व्यवसाय है।

बहुत विविधता है और हरियाली का बहुत फैलाव है जगत नर्सरी में।

जगत नर्सरी की ट्रिप ने मुझे और मेरी पत्नीजी को प्रसन्नता तो दी, पर कई सवाल अनुत्तरित ही रह गये। शायद अखिलेश जी से भविष्य में सम्पर्क हो तो पता चले।

फिलहाल, जगत नर्सरी हमें अच्छी तो लगी; पर दाम कुछ ज्यादा लगे। वनस्पति की विविधता मण्डुआडीह, वाराणसी की नर्सरियों से बेहतर लगी और परिसर का विस्तार तो निश्चय ही मन मोहक था।

वापस आ कर हम दो मन में हैं – जगत नर्सरी को पेट्रोनाइज करें या वाराणसी/इलाहाबाद की नर्सरियों को ही टटोलते रहें।

बहरहाल, मानसून के मौसम में नर्सरी हो कर आना एक सुखद अनुभव है। … कुछ और पौधे/गमले हमें लेने चाहियें थे।

जगत नर्सरी

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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