राम सेवक मेरे पड़ोस में रहते हैं। गांव से बनारस जाते आते हैं। आजकल ट्रेनें नहीं चल रही हैं। बस का किराया ज्यादा है और शहर में आस पास जाने आने के लिये वाहन चाहिये, इस कारण से साइकिल से ही बनारस जाना हो रहा है। पचास किलोमीटर एक तरफ का साइकिल चला कर जाना और शाम को वापस पचास किलोमीटर चला कर गांव आना सम्भव नहीं, इसलिये शहर में एक कमरा किराये पर ले रखा है रुकने के लिये और सप्ताहांत में ही गांव वापस आते हैं।

राम सेवक; जिनका कहना है कि माता-पिता ने उनका नाम ही सेवा करने के लिये रखा है; बनारस में माली का काम करते हैं। कई बंगलों में समय बांध रखा है। समय के अनुसार लोग पेमेण्ट करते हैं। कहीं हजार, कहीं दो हजार, कहीं चार हजार।
यहां गांव में जब हमारा घर का बाग अपेक्षानुसार नहीं लगा, तो कुछ दिन पहले उनसे अनुरोध किया। उनसे तय हो गया है कि सप्ताहांत में दो घण्टा हमारे परिसर को सुधारने में देंगे। उनके कहे अनुसार ही पेमेण्ट हमने तय कर लिया है।
उनके आते ही – आज दूसरा सप्ताहांत है; परिसर की सूरत बदलनी शुरू हो गयी है। हेज की एक राउण्ड कटिंग हो गयी है। मयूरपंखी का पौधा अब तिकोने पेण्डेण्ट के आकार में आ गया है। एक दूसरे से भिड़ रहे पेड़ अब अनुशासित कर दिये गये हैं। कोचिया का समय चुक गया है तो उनके कुछ पौधे, जिनका देहावसान हो गया था, निकाल कर जगह खाली कर ली गयी है, नया कुछ लगाने को।
पिछली बार उन्होने हमें केचुये की खाद मंगाने के लिये कहा था। वह एक बोरी मंगा दी गयी है। बोरी का अर्थ चालीस किलो। रामसेवक जी का कहना है कि अभी और लगेगी। एक बोरी और मंगानी होगी। गमलों की मिट्टी में “दम” नहीं रहा। उनकी मिट्टी निकाल कर प्रति गमले में दो अंजुरी कम्पोस्ट खाद मिलाकर मिट्टी फिर से भरने का काम आज आते ही उन्होने करना शुरू कर दिया है।

घर का हिस्सा, जो मुख्य है, अरण्य लगता था, अब लगता है पर्याप्त “शहरी” हो जायेगा।
मैं उनके काम के दौरान बातचीत करता हूं। वे कहते हैं – “मिट्टी में यह केचुये की खाद तो चाहिये ही। आपके पौधे बस जी भर रहे हैं। खुराक अब मिलेगी बढ़ने के लिये। फिर उन्होने बताया कि केचुये की खाद ही काफी नहीं है। अगर कोई पेड़, पौधा पीला पड़ रहा है तो उसकी जड़ों में डाई (डाई अमोनियम फॉस्फेट) या नीम की खली पड़नी चाहिये। अगर कोई फूल वाले पौधे में फूल नहीं आ रहे हैं तो उसे सरसों की खली की जरूरत है।“
रामसेवक बहुत तेजी से, बहुत दक्षता से काम करते हैं। अपने एक एक मिनट की कीमत वे जानते हैं। फिर भी उनके काम के बीच – उनके काम करते करते उनसे बातचीत की जा सकती है। बताते हैं कि क्यारियों में गुलमेन्हदी लगाना उचित रहेगा इस मौसम में। पर उसके पौधे नर्सरी से ला पाना अभी सम्भव नहीं हमारे लिये। नर्सरी बनारस में है और बनारस कोरोना के रोज नये केसेज उछाल रहा है। रामसेवक भी हमसे कहते हैं – अभी आप बनारस जाने को रहने ही दें।
मेरा बागवानी का ज्ञान शून्य ही है। वे मुझे जो भी बता रहे हैं, वह नयी जानकारी ही है। वैसी जानकारी जो मैं ब्लॉग पर लिख दूं तो शायद किसी के काम आ जाये।
हर सप्ताह उनसे जो कुछ ज्ञानवर्धन होगा, वह सप्ताह में एक ब्लॉग पोस्ट के जरीये ब्लॉग पर उतारूंगा। इससे और किसी का फायदा हो या न हो, मेरा तो होगा ही।

फिलहाल, आज केचुये की खाद, नीम की खली और सरसों की खली की टिप ही मानी जाये। रामसेवक जी ने बताया कि नीम और सरसों की खाली बाजार में आसानी से मिल जाती है। कोरोना संक्रमण कुछ थमे तो वह सब भी देखा-तलाशा जाये।
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