पांच दिन का कोरोना संक्रमण का मेरा उहापोह

पिछले पांच दिन इस दुविधा में निकले कि शरीर में जो कुछ हो रहा है वह कोविड-19 संक्रमण तो नहीं है। मुख्य लक्षण जुकाम के थे। उसके साथ खांसी भी जुड़ गयी। सूखी खांसी थी। सुनने वाले कहते थे कि उसकी आवाज खतरनाक सी लग रही है। बुखार नहीं था। फिर भी बार बार नापा। केवल एक ही बार 98.4 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा निकला। वह भी 98.7 डिग्री। सांस लेने में कोई तकलीफ नहीं थी। पर खांसी (वह भी सूखी खांसी) उत्तरोत्तर बढ़ती गयी। कुछ शारीरिक और कुछ मानसिक कारणों से लगने लगा कि शरीर अस्वस्थ है और यह दशा पहले के जुकाम-अनुभव की अपेक्षा अलग हो सकती है। यह आशंका सताने लगी कि कोरोना ने जाने अनजाने मुझे पकड़ ही लिया है।

आर्थिक तैयारी थी। मैंने एक कोरोना पॉलिसी ले रखी है। अगर कोविड पॉजिटिव का मामला बनता है और अस्पताल में भरती होने की नौबत आती है, तो इंश्योरेंस वाला ढाई लाख तो तुरंत दे ही देगा। पर आर्थिक तैयारी तो एक छोटा हिस्सा होती है कोविड प्रबंधन का। असली समस्या तो यह होगी कि कोविड संक्रमण का मामला होते ही घर का सारा सपोर्ट सिस्टम गड़बड़ा जायेगा। कोई काम पर आने वाला नहीं रहेगा। परिवार के अन्य सदस्य अगर संक्रमित हुये तो उनका भी ध्यान कौन रखेगा? घर में ही अगर आईसोलेशन की आवश्यकता पड़ी तो उसके लिये कमरे का चयन और सेवा के लिये घर के किसी व्यक्ति का सम्पर्क में रहना – भले ही दूरी बना कर हो, जरूरी होगा। वह कौन करेगा? बहुत से प्रश्न थे और जितना सोचते जायें, प्रश्न उतने ही बढ़ते जाते थे।

काढ़ा (गिलोय, दालचीनी, कालीमिर्च, लौंग आदि से बनाया) हम नित्य सवेरे चाय से पहले लेते हैं। उसकी मात्रा बढ़ा दी गयी। शाम के समय भी मुझे काढ़ा दिया जाने लगा। रक्तचाप और रक्त शर्करा नापने की आवृति बढ़ा दी, जिससे यह रहे कि दोनों निर्धारित परिमाप के अंदर रहें। पैंसठ की उम्र में किसी को-मॉर्बिडिटी का जोखिम तो घातक ही होगा!

दूसरे दिन तक खांसी बढ़ गयी और आवाज में भी (सुनने वालों के अनुसार) खरखराहट स्पष्ट लगने लगी। कोविड संक्रमण का भय और बढ़ा। मैंने आरोग्य सेतु एप्प पर देखा – आसपास की 500 मीटर की परिधि में एक व्यक्ति संक्रमित और चार अन्य “रिस्क” में थे। यह संख्या एक किलोमीटर की परिधि में बढ़ रही थी – दूरी के वर्ग के अनुपात में। कुल मिला कर यह तो लगता था कि संक्रमण फैल रहा है और वह इस गांवदेहात में भी समीप तक आ चुका है। पर अब भी – अढ़तालीस घण्टे बाद भी मुझे बुखार नहीं था और सांस लेने में कोई समस्या/अवरोध नहीं था।

यह देखने के लिये कि मेरा स्टेमिना कैसा है; डेढ़ किलोमीटर पैदल चहल कदमी कर आया और मेरी सांस सामान्य रही। उस पैदल चलने के बारे में फेसबुक पर पोस्ट भी किया था –

फिर भी, यह तो भय बना था कि आगे कहीं सांस लेने में तकलीफ न होने लगे और शरीर में ऑक्सीजन का स्तर गिरने न लगे। ऑक्सीजन और नाड़ी गति नापने के लिये आत्मनिर्भरता हेतु एक ऑक्सीमीटर खरीदने का निर्णय किया और अमेजन पर ताबड़तोड़ उसका ऑर्डर भी दे दिया।   

मैंने डाक्टर साहब को सम्पर्क करने का निश्चय किया। सूर्या ट्रॉमा सेण्टर में श्री रितम बोस ने मुझे सलाह दी कि मैं एजिथ्रोमाइसिन 500 एम जी की गोली, दिन में दो बार तीन दिन तक लूं। मेरे रिश्तेदार और प्रांतीय चिकित्सा सेवा में सीएमओ डा. उपाध्याय ने यह दवा दिन में एक बार और सिट्रीजाइन की एक गोली भी लेने को कहा।

याद आया कि पतंजलि के रामदेव जी ने भी दवा मार्केट में उतार रखी है। मास्क लगा कर दुकान से वह दवा – कोरोनिल और अणु तेल भी ले आया। उसका भी सेवन प्रारम्भ कर दिया।

कुल मिला कर, मात्र आशंका में, करीब दो हजार रुपये का खर्च कोविड-प्रबंधन की प्रारम्भिक तैयारी में हो गया। … भय ऐसा था कि कोई कुछ और भी बताता तो उसपर बिना इकनॉमिक प्रूडेंस की कसौटी पर कसे, मैं मुक्त हस्त खर्च करने की मानसिकता में जी रहा था।  

घर में अन्य लोगों को बिना बताये मैं घर की ऊपर वाली मंजिल का चक्कर भी लगा आया। वहां एक कमरा अटैच्ड बाथ के साथ है जिसे किसी अतिथि के आने पर ही इस्तेमाल किया जाता है। घर में आईसोलेशन की व्यवस्था – बड़े, खुले, हवादार परिसर और बिजली-पानी की सुविधा युक्त उपलब्ध है। वहां वातानुकूलन नहीं है, पर कोविड के मरीज को एयर कण्डीशंड कमरे की क्या आवश्यकता? मैं अपने आप को मानसिक रूप से पृथकवास के लिये तैयार करने लगा।

रितम बोस जी और डाक्टर उपाध्याय की सुझाई दवाओं और बाबा रामदेव की कोरोनिल/अणु तेल के सेवन से सुधार दिखने लगा। चौथे दिन मेरी खांसी कम हो गयी। मेरी आवाज में खरखराहट और स्वर का फटना भी लगभग खत्म हो गया। पाँचवें दिन स्वास्थ्य (सिवाय कमजोरी के) सामान्य था। कोरोना संक्रमण का भय समाप्त हो चुका था। पर पांच दिन इस अज्ञात और निदान रहित रोग की आशंका में डूबते उतराते बीते। ये मानसिक रूप से डूबते उतारते पांच दिन याद रहेंगे।

अब, आज पांचवें दिन की रात में, जब यह लिखने बैठा हूं तो शरीर पूरी तरह सामान्य हो गया है। किसी प्रकार की कोई व्यग्रता नहीं है। यह जरूर मन में है कि आगे से मास्क के प्रयोग, सेनीटाइजर, हैण्डवाश और अन्य लोगों से सम्पर्क आदि के विषय में पहले से ज्यादा सतर्कता बरतूंगा। जो आशंका की पीड़ा झेली है, वह पुन: नहीं झेलना चाहूंगा।

हुआ क्या रहा होगा?

वह छह सितम्बर की सुबह थी। सवेरे जल्दी उठ गया था तो साइकिल ले कर निकल गया था अगियाबीर के गंगातट लूटाबीर की तरफ। कुआर का महीना है। साफ आसमान रहता है और नमी-गर्मी के कारण उमस रहती है। सवेरा जरूर ठण्डा होता है। गंगा किनारे बबूल के झुरमुट में और भी शीतल था वातावरण। उस विषय में यह थी शिड्यूल की गयी ट्वीट –

लूटाबीर से लौटते समय अपने मित्र गुन्नीलाल पाण्डेय के यहां चाय के पहले दो गिलास पानी भी पी लिया – साइकिल चलाने के कारण पसीना निकला था और प्यास लगी थी।

रास्ते में एक सज्जन, प्रेम शंकर मिश्र जी ने मेरी साइकिल रोक कर अपनी व्यथा सुनाने का उपक्रम किया था। उस समय मैंने मास्क नहीं पहना था पर खुली सड़क पर उनसे दो गज से ज्यादा की ही दूरी थी।

प्रेम शंकर मिश्र जी

रास्ते में करहर की बनिया की दुकान से किराने का सामान भी लिया था पर मास्क लगा कर। उसके बाद सेनिटाइजर से हस्त प्रक्षालन भी किया था –

घर आने पर पसीने से तरबतर टी-शर्ट उतार कर उघार बदन वातानुकूलित कमरे में पंखे की हवा ने शायद अपना करतब दिखा दिया। जुकाम सा महसूस हुआ जो तेजी से बढ़ता गया। कुछ घण्टों में हल्की खांसी भी आने लगी। लगा कि यही सब कोरोना संक्रमण में भी होता है। खांसी आने पर घर में हर व्यक्ति शक की निगाह से देखने लगा और भय लीनियर की बजाय एक्स्पोनेंशियल बढ़ने लगा।

सांझ होते होते यह लगने लगा कि कोविड संक्रमण की प्रबल सम्भावना हो गयी है। … मेरे ख्याल से यही हुआ होगा।

अपने घर से बाहर जाने और लोगों से मिलने जुलने का मैंने पिछले पांच सात दिन का सूक्ष्म स्मरण किया। मुझे कोई ऐसा दृष्टांत नहीं मिला, जिसमें अनवश्यक जोखिम मैंने उठाया हो। अगर कार्डबोर्ड, पॉलीथीन या धातु की सतहों के स्पर्श से संक्रमण फैलता हो, तो एक दो प्रकरण अवश्य मिल सकते हैं जब उन सतहों को छूने के बाद, बिना हाथ सेनिटाइज किये अपने मुँह या आंखों को खुजलाया हो या मास्क को सेट किया हो। आगे उस तरह की सम्भावनायें भी मिटानी होंगी।

सीरॉलॉजिकल सर्वे और एक नया कोण

आज जब यह लिख रहा हूं तो आईसीएमआर की मई महीने की एक सीरॉलॉजिकल सर्वे के बारे में एक खबर अखबारों में है। इस खबर के अनुसार यह माना जा सकता है कि कोविड-19 संक्रमण के जितने मामले सामने आये हैं, उससे करीब सौ गुणा लोग संक्रमित हो कर ठीक भी हो चुके हैं। चुपचाप। उनमें कोरोनावायरस के प्रति रोग प्रतिरोधक एण्टीबॉडीज पायी गयी हैं। क्या पता यह भी हो कि मुझे भी इन पांच दिनों में कोविड संक्रमण हुआ हो और उसके बाद शरीर में उपयुक्त एण्टीबॉडीज जनित हो गयी हों। उस दशा में मेरे परिवार के अन्य सदस्य भी शायद इसी तरह संक्रमित और उबर जाने वाले हों, या उबर चुके हों।

आखिर, कोविड-19 संक्रमण इतना चंचल, इतना अनप्रेडिक्टेबल और इतना अनिश्चित प्रकार का पल पल म्यूटेट हो जाने वाला विषाणु है कि पूरे निश्चय से इसमें जुटे संक्रमण वैज्ञानिक (वाइरोलॉजिस्ट), इम्यूनोलॉजिस्ट या एपीडिमियोंलॉजिस्ट एक दिन जो कहते हैं, दूसरे दिन उसके उलट कहने पर बाध्य हो जाते हैं। और तीनों प्रकार के विशेषज्ञ अपने कहे से पल्टी मार चुके हैं – एक नहीं कई बार।

हम जन-सामान्य तो केवल उनके लेखों का आपने अल्प बुद्धि से पारायण करने और उनके अनुसार अपना कोर्स ऑफ एक्शन तय करने में ही सारी ऊर्जा लगा रहे हैं।

फिलहाल मैं प्रसन्न हूं कि कोरोना संक्रमण में जाते जाते बच गया हूं। जी हाँ, बच ही गया हूं! यह एहसास मरीज के अस्पताल से ठीक हो कर घर लौटने जैसा ही है! 😁


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

4 thoughts on “पांच दिन का कोरोना संक्रमण का मेरा उहापोह

  1. कोरोना का डर ज्यादा डरा रहा है।
    सतर्कता रखने के बाद भी यदि कोई लक्षण नजर आता है तो सीधे कोरोना हुआ लगता है।

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  2. ईश्वर की कृपा और आपकी सतर्कता आपको स्वस्थ रखेगी । तेजी से बढ़ रहा संक्रमण धैर्य की परीक्षा ले रहा ।

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  3. Sir garmi aur pasine se tarbatar ane k baad AC room ki thandi hawa m jana hi iska main karan samajh m aya

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