बोकारो में है मेरा नाती विवस्वान पाण्डेय। अभी पिछले दिनों मेरी बिटिया हमसे मिलने आयी थी, पर वह साथ नहीं आया। अब इतना बड़ा हो गया है कि अपनी माँ के बिना कुछ दिन रह लेता है।
पूछा कि वह क्यों नहीं साथ आया तो बिटिया ने बताया कि ऑनलाइन कोचिंग क्लासेस चलती हैं। रोज तीन घण्टा। इसके अलावा टीचर्स दिन भर ह्वाट्सएप्प पर कुछ न कुछ काम करने को देते रहते हैं। परीक्षायें और टेस्ट भी कोई मॉइक्रोसॉफ्ट का विण्डोज10 पर चलने वाला एप्प है, उसके माध्यम से ऑनलाइन लेते हैं स्कूल वाले। कुल मिला कर स्कूल में वैसे जितनी पढ़ाई होती थी, उतनी हो रही है। कोई व्यवधान नहीं। इसके अलावा घर के कम्फर्ट तो हैं ही। विवस्वान को यह ऑनलाइन अध्ययन ज्यादा अच्छा लग रहा है। उसे अगर स्कूल जाने और ऑनलाइन में चुनने को कहा जाये तो शायद वह ऑनलाइन का चयन करे।
इसके अलावा, बायजू के ह्वाइटहेड जूनियर वाले कोडिंग प्रोग्राम को भी उसने एनरोल कर लिया है। कोडिंग के जरीये एक दो एप्प भी बनाये हैं। उसमें उसे बड़ा मजा आ रहा है।
सप्ताह में एक दिन उसके तबला वाले सर आते हैं। तबला बजाने में वह स्टेज पर परफार्म करने लायक योग्यता हासिल कर चुका है। उसकी भी प्रेक्टिस वह करता है। उसने अपना एक यू-ट्यूब चैनल भी बनाया है। उसपर कुछ तबला वादन के वीडियो हैं। यह वीडियो उसके गुरूजी के साथ ताल कहरवा की प्रेक्टिस का है –
तबला के अलावा उसकी रुचि चित्र बनाने में है। उसके चित्र भी अच्छे बनते हैं। कई चित्रों को वह ट्विटर पर डाल भी चुका है।
छठी कक्षा में पढ़ने वाला विवस्वान ऑनलाइन कक्षा, कोडिंग, तबला वादन, स्केच बनाना, पेण्टिंग करना आदि अनेक विधाओं में हाथ अजमा रहा है और उसे इण्टरनेट पर प्रस्तुत करने के गुर भी सीख रहा है, या सीख चुका है। ट्विटर पर ट्वीट करने की तहजीब यहां अधेड़ लोग नहीं जानते। यह बमुश्किल 11-12 साल का बालक वह सब जानता है।
मैं अपनी याद करता हूं। छठी कक्षा में मैं गुल्ली-डण्डा, स्कूल के डेस्क से उखाड़ी पट्टी से बनाये बैट और कागज पर साइकिल के ट्यूब से बनाये छल्ले लपेट कर बनायी गयी गेंद से खेलता था। हांकी खेलने के लिये गुलाबांस का तना काट कर स्टिक बनती थी। पेण्टिंग, तबला जैसी बातें तो सोची भी नहीं थीं।
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एलगॉरिथ्म या कम्यूटर प्रोग्रामिंग का कुछ प्रयोग इन्जीनियरिंग के दूसरे साल में Fortran IV में कुछ प्रोग्राम बना कर किया था। उसके पहले एलगॉरिथ्म नाम की चीज का पता ही नहीं था। यह हाल बोर्ड की मैरिट लिस्ट में आने वाले और उसकी वरीयता के आधार पर बिट्स पिलानी में सीधे इलेक्ट्रॉनिक्स में दाखिला पाने वाले का था। वहां एक कविता लिखने वाले प्रोग्राम बनाने से अपने आप को तीसमारखाँ समझता था मैं। उस प्रोग्राम में कुछ खास नहीं था। केवल तुकबंदी के आधार पर विभिन्न प्री-रिटन पंक्तियों को सलेक्ट कर कविता बनाना भर था, जो आईबीएम का पुराने जमाने का कम्प्यूटर चला कर प्रिण्ट-आउट देता था। आज उस दो बड़े कमरों में समाये उस कम्प्यूटर सेण्टर में जितनी गणना की क्षमता थी, उससे हजार/लाख गुना क्षमता मेरे एक मोबाइल फोन में है।
एक ही आदमी की जिंदगी में जमाना कितना बदल गया है। हर दो साल में कम्प्यूटर की गणन क्षमता दुगनी हो जा रही है। और अब आर्टीफीशियल इण्टेलिजेंस (एआई) को ले कर जितनी भविष्य की कल्पनायें हो रही हैं; उसमें से अगर अंश मात्र भी सच हुआ तो (यह मानते हुये कि मेरी जिंदगी अभी दो दशक और तो चलेगी ही) मैं शायद वह सब देख – अनुभव कर लूंगा जो किसी भी प्रकार के स्वप्न में कभी नहीं आया होगा!
पर कोडिंग का क्या भविष्य है? कोई भी कम्प्यूटिंग मशीन बिना कोड के नहीं हो सकती। जब आर्टीफीशियल इण्टेलीजेंस का युग और सशक्त होगा तो मशीनें और ताकतवर होंगी और उनकी कोडिंग और भी आसान होगी। फोरट्रान 4 की प्रोग्रामिंग और एलगॉरिथ्म मैं इंजीनियरिंग के दूसरे साल में लिख रहा था; उसके बाद इंजीनियरिंग का एबीसीडी न जानने वाले भी अपना ब्लॉग और वेबसाइट बनाने लगे। आज छठी कक्षा का विवस्वान कोडिंग कर एप्प बना ले रहा है। यह विधा और सरल बनती जायेगी। वे माता-पिता जो यह कल्पना करते हैं कि कोडिंग सीख कर उनका बच्चा बिलगेट्स या स्टीवजॉब्स की तरह धनी बन जायेगा – उन्हे शायद बहुत निराशा हो। बहुत सम्भव है आज की सामान्य (और कठिन स्तर की भी) कोडिंग अगले दशक में एआई के जिम्मे हो जाये।
आने वाला कोडिंग स्किल-सेट पिछले युग का कारपेण्टरी हुनर सरीखा है। मेरे विचार से वह आपको एक नये क्रियेशन का आनंद दे सकता है; बहुत कुछ वैसे जैसे आप रंदा, आरी और हथौड़ी का प्रयोग सीख लें और एक मेज या कुर्सी बना सकें। उसे बना लेने का थ्रिल बहुत होगा; पर वह आपको अमीर बनाने से रहा।

कला का काफी हिस्सा भी आगे जाकर एआई के जिम्मे हो सकता है। पर विवस्वान तबला वादन या स्केच/पेण्टिंग से जिस मानसिक परिवर्तन से गुजर रहा है; जो सशक्तता उसे अपनी सोच विकसित करने में मिल रही है; वह लम्बे समय तक – विवस्वान की पूरी पीढ़ी तक आर्टीफीशियल इण्टेलिजेंस रिप्लेस रही कर सकती।
कोडिंग शायद बहुत सामान्य सा हुनर हो भविष्य में; पर उसमें अगर दर्शन शास्त्र, इतिहास या पुरातत्व की समझ, मानव मेधा के विषय का समावेश किया जाना हो, तो मात्र कोडिंग काम नहीं आयेगी। मेरे ख्याल से आने वाले दशकों में वकील, डाक्टर, इंजीनियर और अनेक ब्ल्यू कॉलर के काम तो एआई के जिम्मे जा सकता है। आपकी कारें मशीन चला सकती है; नहीं, पूरे शहर की कारें और वाहन एक सुपर यातायात कम्प्यूटर चला सकता है और वाहन चालक निरर्थक हो सकते हैं; पर एक दार्शनिक, एक कलाकार, एक क्रियेटिव लेखक को मशीन अभी एक दो पीढ़ी तक तो रिप्लेस नहीं कर सकतीं!
विवस्वान की ओर वापस लौटूं। उसकी कोडिंग मजेदार है। पर उसका तबला वादन, उसकी जिज्ञासा, उसका ओरीजिनल स्केच, उसकी अपने को विभिन्न माध्यमों से अपने को अभिव्यक्त करने की बढ़ती क्षमता और बौद्धिक मांसपेशियों का उत्तरोत्तर सशक्त होना – वह ज्यादा आशा जगाता है। शायद वह अगर अपने पिता से अर्थ जगत के गुर सीखे और पैसे/धन के अर्जन और उसके अच्छे-बुरे प्रभावों के बारे में अपनी सोच पुख्ता करे तो वह उसे और भी तैयार करेगा भविष्य के लिये। कोडिंग तो उसे सीखनी चाहिये यह जानने के लिये कि आने वाले समय में एआई की मशीनें कितनी सशक्त होंगी और उनसे कैसे काम लिया जाये या उनके दुष्प्रभावों से कैसे निपटा जाये।
और केवल विवस्वान को ही यह नहीं सीखना। मुझ जैसा सीनियर सिटिजन जो अभी दो या तीन दशक जीने (और सार्थक तरीके से जीने) की इच्छा रखता है; उसे यह सब करना होगा।
(नोट – यह बड़ी खुरदरी सी पोस्ट है और मेरे अपने विचार भविष्य में परिवर्तित/परिवर्धित होंगे; इसकी मुझे पूरी आशा/आशंका है! 😆 )
श्री नीरज रोहिल्ला जी की फेसबुक पर की गयी टिप्पणी उधृत है, ताकि भविष्य में लिंक की जा सके –
खुरदरी पोस्ट तो कहीं से नहीं है ये। विवस्वान की पढ़ाई के अलावा अन्य रुचियाँ देखकर मन बहुत प्रसन्न हुआ, और केवल रुचि ही नहीं उन विधाओं में समय/मन लगाकर मेडिओकर से आगे बढ़ने की ललक भी दिखती है।
व्हाइट हैट जूनियर के गैर-जिम्मेदार विज्ञापन और माता पिता को इमोशनल ब्लैकमेल कर प्रोडक्ट पुश करने के मामले सामने आ रहे हैं। इस विषय पर आपकी बेटी के क्या अनुभव रहे जानना रोचक होगा। कोडिंग कक्षाओं के बाद अगर आगे रुचि हो तो बहुत से और भी अच्छे मुफ्त रिसोर्सेस हैं इंटरनेट पर। आशा है खान एकेडमी के बारे में आपको पता ही होगा, इसके फाउंडर इमरान खान की कहानी दिलचस्प है।
एमआईटी का ओपन कोर्स वर्क्स (OCW) भी लाजवाब है और मुफ्त है, लेकिन वो स्नातक स्तर के लिये है, कभी फुरसत में YouTube पर MIT OCW लेबल वाले वीडियो देखिएगा, अच्छा लगेगा।
सबसे अच्छा लगा विवस्वान का तबला बजाना और उनके अध्यापक का गायन।