सवेरे तीन बजे उठ जाना


मैंने रेल जीवन या रेल यात्राओं के बारे में बहुत नहीं लिखा। पर वह बहुत शानदार और लम्बा युग था। जब मैंने अपने जूते उतारे तो यह सोचा कि यादों में नहीं जियूंगा। आगे की उड़ान भरूंगा गांव के परिदृष्य में। पर अब, आज सवेरे इकतीस दिसम्बर के दिन लगता है कि फ्लैश-बैक में भी कभी कभी झांक लेना चाहिये।

रसूल हम्जातोव का त्सादा और यहां का गांव


रसूल हम्जातोव जैसी दृष्टि मेरी क्यों नहीं? अपने गांव को ले कर क्यों मैं छिद्रान्वेशी बनता जा रहा हूं। उसके लोगों, बुनकरों, महिलाओं, मन्दिरों, नीलगायों, नेवलों-मोरों में मुझे कविता क्यों नहीं नजर आती। नदी, ताल और पगडण्डियां क्यों नहीं वह भाव उपजाते?

रविवार, रामसेवक, अशोक के पौधे और गूंगी


माता-पिता ने उनका नाम रामसेवक रखा तो कुछ सोच कर ही रखा होगा। पौधों की देखभाल के जरीये ही (राम की) सेवा करते हैं वे! उनकी पत्नी को गुजरे दशकों हो गए हैं। बच्चे छोटे थे तो उनको पालने और उन्हें कर्मठता के संस्कार देने में सारा ध्यान लगाया।

अगियाबीर की आर्कियॉलॉजिकल साइट के बबूल की छाँव


“हम लोगों के यहां आने के बाद ही एक चिड़िया दम्पति ने इस बबूल के पेड़ पर अपना घोंसला भी बनाया है। अंडे भी दिये हैं घोंसले में। उनके चूजे निकलने का समय भी आ गया है।”

बिखारी समझते हैं मोदी सब समाधान निकालेंगे


“वैसे मोदी बनारस के हैं। उन्हे वोट दिया है। तेज दिमाग नेता हैं। सब समझते हैं। बिखारी को यकीन है कि मोदी जरूर कोई न कोई काम उस जैसे के भले के लिये करेंगे।”

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कसवारू गोंण का मछली मारने का जुनून


75+ साल (देखने में 55-65 के बीच), 35 किमी मॉपेड चला कर बंसीं से मछली पकड़ने के लिये गंगा किनारे आना! और एक दिन नहीं; नित्यप्रति! अत्यन्त विस्मयादिबोधक! केवल तुम ही नहीं हो उलट खोपड़ी के जीव पण्डित ज्ञानदत्त!