श्री मंगल आश्रम से जसदाण और आगे

मंगल आश्रम में रात बिना कम्बल के जैसे तैसे गुजारी प्रेमसागर ने। सवेरे आठ बजे जब बात की तो उनकी आवाज में उत्फुल्लता पहले जैसी थी। अपनी ओर से रात की ठण्ड या कम्बल न मिलने का कोई जिक्र नहीं किया था। इस बात का जिक्र भी नहीं कि अब बिना सर्दी का इंतजाम किये बिना चल नहीं पायेगा। वे इस बात को बहुत सामान्य तरह से ले कर चल रहे थे और मैं उसे बहुत बड़ा यात्रा तैयारी का छिद्र मान कर चल रहा था। हम दोनो की सोच में यह एक मूलभूत अंतर है। उनकी खराब अनुभवों को याद रखने की आदत है ही नहीं। झटक कर आगे चलने की है। पर मैं उसे याद ही नहीं रखता, वह याद मुझे बराबर सालती रहती है – अपने को कोसती रहती है। अभी भी एकाकी होने पर पुराने वे प्रकरण याद आते हैं जिनके बारे में मुझे लगता है कि यह नहीं यह किया होता तो कहीं बेहतर होता। शायद जिंदगी की धारा बदल गयी होती। … और लगता है प्रेमसागार इस मामले में मुझसे कहीं बेहतर हैं – तभी वे यह भागीरथ प्रयत्न वाली यात्रा कर पा रहे हैं और मैं घर पर बैठा हूं।

आज उनकी यात्रा छोटी ही है। जसदाण के आगे एक मंदिर में रुकना है। उसके पहले जसदाण में संजय भाई गिरधर व्यास जी ने उनकी अगवानी की। संजय भाई को अश्विन पण्ड्या जी ने सूचना दी थी। व्यास जी ने दिन में और संध्या को अपने घर पर भोजन कराया। उसके बाद वे रवाना हुये तीन किलोमीटर दूर मंदिर में रात में रुकने के लिये। प्रेमसागर ने बताया कि कोई हनुमान जी का मंदिर है। दिन में जसदाण में व्यास जी के साथ उन्होने अपने गर्म कपड़े खरीदे। कम्बल नहें लिया। व्यास जी ने अपने घर से ही गर्म मोटी ऊनी चद्दर उन्हे दे दी। “यह चद्दर कम्बल से बेहतर है भईया। इससे मेरा काम अच्छे से चल जायेगा। इसका वजन भी कम्बल से कम है। ले कर चलने में बोझा भी कम रहेगा।” – प्रेमसागर ने कहा।

जसदाण में एक पुरानी इमारत। बंगला या दफ्तर(?)

जासदाण राजकोट जिले की एक नगरपालिका है। पुरानी रियासत जिसे सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 15 फरवरी 1948 के दिन भारत में मिलाया। विकीपेडिया के अनुसार यह रियासत 1665 में बनी। यहां हीरे के तराशने, हस्त शिल्प और कृषि यन्त्रों के उद्योग हैं। आसपास के ग्रामीण अंचल के लिये बाजार भी यह है। घेला जसदाण के भेजे चित्रों में एक पुराने समय का बंगला भी दिखता है। परित्यक्त पर अतीत की समृद्धि की कहानी कहता हुआ। बाजार और इमारतों के चित्र में भी पुरातन अधिक आधुनिकता कम दिखती है। प्रेमसागर को शायद अंदाज है कि पुरातन में मेरी दिलचस्पी ज्यादा है। इसलिये वे खोज कर उन्हीं के चित्र लेते और भेजते हैं। या शायद परिवेश वैसा ही हो।

सुरेश भाई व्यास जी का परिवार। लगता है प्रेमसागर जी का खूब सत्कार किया उन्होने। पूरे धर्म-श्रद्धा भाव से।

सुरेश व्यास जी का घर परिवार भी सामान्य लगता है – मेरे अपने परिवार की तरह। घर में या परिवार में – पत्नी और एक छोटे बच्चे में – कोई दिखावा नजर नहीं आता। वैसा परिवार जिनके पास मैं भी असहज महसूस नहीं करूंगा।

जसदाण मार्केट में गये प्रेमसागर। सरदार पटेल जी की चौराहे पर प्रतिमा के नीचे चित्र खिंचाया।

सुरेश जी ने आज का ही नहीं कल किसी गांव में प्रेमसागर के रहने-रुकने का भी इंतजाम कर दिया है। अब उन्होने और अश्विन भाई पण्ड्या जी ने प्रेमसागर का रास्ता बदल दिया है। अभी वे सासनगीर इलाके से गुजरते हुये सोमनाथ जाने के हिसाब से चल रहे थे। इस रास्ते में उन्हें सोमनाथ लगभग 190 किमी पड़ता। अब वे गोण्डल के माध्यम से जामनगर होते हुये वेरावल/सोमनाथ पंहुचेंगे। उसमें उन्हें पंद्रह किमी ज्यादा चलना होगा, पर इससे वे सासनगीर की उस जंगली पट्टी से बच जायेंगे जिसमें शेर निर्भय विचरण करते हैं। यद्यपि उस गिर पर्वत-जंगल की पट्टी से पार कराने के लिये अश्विन जी ने फॉरेस्ट विभाग के अपने एक मित्र से बात कर भी ली थी; पर फिर उन्हे लगा कि गोण्डल हो कर जाना बेहतर रहेगा। … जाहि बिधि चाले राम, ताही बिधि चलिये! वैसे भी प्रेमसागर अपने शुभचिंतकों के दिखाये-सुझाये मार्ग का ही पालन करते चल रहे हैं। इसमें भी महादेव का विधान है। खुद मार्ग तय करते तो मेरी तरह घर के बाहर कदम भी न रखते।

सवेरे श्री मंगल अश्रम से निकलने के बाद हमेशा की तरह उन्होने पहली चाय की दुकान का चित्र भेजा है। उसके बाद खेती का चित्र। “यहां पौध की एक की कतार से दूसरी के बीच दो फुट की दूरी है भईया। यह नये तरह की खेती दिखी मुझे। पौधे तो गेंहू, चने जैसे ही लग रहे हैं। दूर हैं इसलिये पास जा कर देख नहीं पाया। पर ऐसे खेत मैने उत्तर प्रदेश या मध्य प्रदेश में नहीं देखे।”

खाली बची जमीन पर या पहाड़ी ऊंचाई जगह पर पवन चक्किया हैं। बहुत सी पवन चक्कियां प्रेमसागार को रास्ते में मिलीं। उनके लिये उनके पास इमारते भी बनी हैं। “शायद कोई कण्ट्रोल रूम होंगे भईया। उनपर कुछ अंग्रेजी में लिखा भी है।”

गुजरात में नहरों का जाल ही नहीं बिछा; प्राकृतिक ऊर्जा दोहन के बारे में भी सार्थक प्रयस हो रहे हैं। सौराष्ट्र के इलाके में समुद्र पास होने के कारण हवायें भी चलती होंगी। उनका प्रयोग विद्युत उत्पादन में हो रहा है।

पिछले दो तीन दिनों में प्रेमसागार के द्वारा दिये गये यात्रा विवरण से प्रेमसागर के बारे में मेरी सोच में अंतर आ रहा है। वे मुझे अधिक प्रिय लगने लगे हैं। मैं उनकी बहुत सहायता नहीं कर सकता। एक बंधी बंधाई छोटी सी – टोकन – मासिक रकम के अलावा कुछ नहीं। पर मेरे हाथ में उनके बारे में लिखना भर है। शायद यह देख कर कुछ लोग उनकी सहायता करें। और यद्यपि मैंने प्रेमसागर से पता नहीं किया; पर गंध लग जाती है कि लोग कर रहे हैं। उसके अलावा यात्रा के दौरान एक से दूसरे को बता कर उनकी सहायता की जो शृन्खला बन रही है – वह अभूतपूर्व है। अन्यथा वित्तहीन, साधनहीन व्यक्ति इतने सहज तरीके से इतनी बड़ी यात्रा कर गुजरा है और आगे भी करेगा; यह मेरे लिये कल्पनातीत है।

प्रेमसागर के प्रति यह प्रेम कब खीझ, खुंदक या क्रोध में तब्दील होगा, मैं नहीं कह सकता। वह उनकी यात्रा के दौरान कई बार हो चुका है। पर फिर भी वे चल रहे हैं और उनका साथ मैं दिये जा रहा हूं। यह मेरी मूल प्रवृत्ति के अनुसार नहीं है। और यही शायद महादेव की कलाकारी है। कठपुतली की तरह नाच रहे हो पण्डित ज्ञानदत्त! :lol:

हर हर महादेव!

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी
(गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) –
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर
2654 किलोमीटर
और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है।
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे।
प्रेमसागर यात्रा किलोमीटर काउण्टर

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

10 thoughts on “श्री मंगल आश्रम से जसदाण और आगे

    1. जय हो दयानिधि जी! आपको धन्यवाद आपके द्वारा प्रशंसा के शब्दों के लिए. आशा है कि आप नियमित पढ़ कर और टिप्पणियों से प्रोत्साहित करते रहेंगे.
      पुनः धन्यवाद।

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  1. शेखर व्यास फेसबुक पर –
    जैहि विधि राखे राम तेहि विधि रहिए 🙏🏻 जिसकी पूजा प्रेम जी करते हैं उन्ही की प्रभु राम भी ,तो भला प्रभु राम अपने आराध्य के सेवक की चिंता न करेंगे क्या ? …
    जब मैं (अहम ) था तो हरि नही
    अब हरि है तो मैं नाही
    प्रेम गली अति सांकरी
    जा में दो न समाय

    प्रेम जी का मै खत्म हो गया है तो उन्हें सब दिशाएं आनंद गान गाती प्रतीत होती हैं ।

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  2. सुरेश शुक्ल फेसबुक पेज पर –
    आपके संदर्भ से सासनगिरि के डाक बंगले पिछली सदी के नब्बे के दशक में तीन दिन तक यूनियन के कामगार शिक्षा शिविर में रहने का स्मरण हो आया। शेरों के परिवार से आमने-सामने का दृश्य भी स्मृतिपटल पर उभर आया।

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  3. लहरी गुरु मिश्र, फेसबुक पेज पर –
    महादेव जी, श्री प्रेम जी की यात्रा सुखद बनाए , बस सेहत की चींता लगी रहती है उनका कुशल क्षेम जान सुन जैसे अपनी पुजा हो गई लगती है ।
    संत हृदय पदयात्री श्री पाण्डेय जी सहित आप श्रीमन् को सादर चरण स्पर्श 🙏

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  4. सुरेश शुक्ल फेसबुक पेज पर –
    जाहि विधि सुझाए राम
    ताहि विधि बूझते चलिए

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  5. दिनेश कुमार शुक्ल, फेसबुक पेज पर –
    जब प्रोबेनर था तो इस इलाके में बड़ौदा से गया था- सासनगीर।वेरावल ।सोमनाथ।द्वारका।यादें धुंधली हैं।करीब पैंतालीस साल पहले। जय बाबा सोमनाथजी। जय बाबा नागेश्वर जी। हर हर महादेव।

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