शिव भक्त प्रेमसागर की यात्रा इस समय वैष्णवों के बीच और वैष्णवों के पूरे आदर से सराबोर हो रही है। आज सवेरे वे लोयेज के स्वामीनारायण नीलकण्ठ वर्णी स्वामी के मंदिर में थे। स्वामीनारायण की शिक्षापत्री में भगवान स्वामीनारायण के सूत्र दिये हैं जिनके अनुसार सामान्य व्यक्ति को, आचार्यों को, राजा और गृहस्थ को, शादी शुदा और विधवाओं को और ब्रह्मचारी/साधू को पालन करना होता है। वे सभी जीवन के ‘करने और न करने के नियम’ हैं। वे नियम वैष्णव परम्परा के अनुसार ही लगते हैं। कहीं कहीं वे सरल और सामान्य लगते हैं और कहीं लगता है कि उनका पालन करना कठिन होगा। वे माध्वाचार्य के द्वैत दर्शन के समीप लगते हैं। बाकी, उन सूत्रों का चूंकि मैंने सरसरी निगाह से ही अवलोकन किया है; मैं शिक्षापत्री पर कोई निश्चयात्मक टिप्पणी नहीं कर सकता।

यह जरूर है कि अभी पिछले कई वर्षों से अपने जीवन को जिस तरल तरीके से जीता रहा हूं, उसे आगे अगर मुझे शिक्षापत्री के नियमों से बांधना हो तो कठिन होगा। वैसे उन नियमों का सत्तर अस्सी प्रतिशत पालन तो मैं करना ही होऊंगा। प्रेमसागर शायद उससे ज्यादा करते होंगे – यद्यपि वे शैव हैं।
पूर्णत: नैतिक नियमों से बंध कर चलने में एक झंझट है। नियमपालन में उहापोह की स्थिति तो आती है। उस समय क्या किया जाये? तब नैतिक नियमों के मूल – धर्म या उसे जो भी नाम दें – पर जाने और अपने कार्य निर्णय की जरूरत महसूस होती है। वे धर्म सूत्र कहां हैं? स्वामीनारायण भगवान ने अपने प्रवचन दिये हैं जो उनके वचनामृत में संकलित हैं। उनमें शायद समाधान हो। … मैं जितना इस सब के बारे में सोचता हूं, उतना यात्रा विवरण लिखने से दूर होता हूं। धर्म-नैतिक-व्यवहार के बारे में लिखने की एक सीमा तो बनानी होगी। इसलिए यात्रा पक्ष पर लौटा जाये।

सवेरे प्रेमसागर उठ कर बलदेव राजगुरु जी के साथ नीलकण्ठ वर्णी आश्रम का भ्रमण कर लिये। उन्होने उस कुंये का भी दर्शन किया जहां नीलकण्ठ वर्णी आये थे और जल ग्रहण किया था। कथा यह है कि उस कुयें पर महिलायें ही पानी भरती थीं और उन्होने नीलकण्ठ वर्णी को कहीं और जाने को कहा। उन्होने अपना गागर और रस्सी भी उन्हें नहीं दिया कुंये से पानी भरने के लिये। पर चमत्कार हुआ कि कुंये का पानी अपने आप ऊपर आ गया किशोर स्वामी की प्यास बुझाने के लिये। उससे गांव वालों को किशोर साधू की विलक्षणता का आभास हुआ। वहां वे गुरू रामानंद के शिष्यों के माध्यम से उनके सम्पर्क में आये और कालांतर में रामानंद जी ने उन्हें सहजानंद के रूप में दीक्षा दी। उन्हें अपने उद्धव सम्प्रदाय का उत्तराधिकारी भी बनाया। समय बीता और यह सम्प्रदाय कई शाखाओं में बंटा – अभी तीन शाखायें मुख्यत: नजर आती हैं। नीलकण्ठ वर्णी के इस लोयेज स्थित मठ को तीनो शाखायें श्रद्धा से देखती हैं।

उस कुंये की फोटोग्राफी पर प्रतिबंध के कारण प्रेमसागर वहां के चित्र नहीं ले पाये, पर उसे देखा इत्मीनान से।
प्रेमसागार को मठ के प्रमुख स्वामी जी का भी आशीर्वाद मिला। उन्होने नीलकण्ठ वर्णी की प्रतिमा पर जल भी चढ़ाया। एक चित्र में बलदेव राजगुरु जी भी जल चढ़ाते नजर आते हैं। मैंने प्रेमसागर से पूछा कि जल कौन सा चढ़ाया था – अपने कमण्डल का या नीलकण्ठ वर्णी परिसर का। उन्होने बताया कि वहीं का था। शायद उस पवित्र कूप का हो, जिसकी कथा नीलकण्ठ वर्णी के साथ जुड़ी है।




प्रेमसागर मठ के दर्शन के बाद माधवपुर के लिये रवाना हुये। कुछ ही किलोमीटर आगे उन्हें पंकज भाई अपने घर ले गये और उनका आतिथ्य सत्कार किया। दिलीप थानकी जी से बात करते हुये पता चला कि मार्ग में बहुत से लोगों को उन्होने प्रेमसागर के बारे में सूचना दे रखी है। इस पूरे समुद्र तटीय क्षेत्र में लोग सरल हैं, धर्म में श्रद्धा रखते हैं और उनमें धोखा देने की वृत्ति नहीं है। लोग शाकाहारी हैं और शराब का सेवन नहीं करते। बकौल दिलीप जी, लोगों में धूर्तता नहीं, भोलापन है और परनिंदा में समय व्यतीत नहीं करते। आतिथ्य की भावना उनमें सहज है।

शाम के समय प्रेमसागर माधवपुर में थे। वहां जनक भाई से उनकी मुलाकात हुई। जनक भाई ने आग्रह किया कि प्रेमसागर वहां एक दिन और रुक जायें। इसी भाव के तो भूखे थे प्रेमसागर। वे रुक गये हैं। कल वे माधवपुर में रहेंगे। आसपास के स्थलों का दर्शन करेंगे। यहां समुद्र तट है, ओशो का मूल आश्रम है और कृष्ण के विवाह से सम्बंधित स्थल/कथायें भी हैं।
लगता है प्रेमसागर को आतिथ्य मिलता रहेगा नागेश्वर/द्वारका तीर्थ तक और प्रेमसागर की यात्रा जो सप्ताह-दस दिन में हो सकती थी, उसमें दुगना समय लगेगा। महादेव ने सोमनाथ की खूब भरपाई का इंतजाम कर दिया है।
जनक भाई और माधव पुर की चर्चा अगली पोस्ट में।
जय माधव! जय श्री कृष्ण! हर हर महादेव!
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
जय महादेव।
वचनामृत में द्वेत व अद्वेत दोनो पक्ष का विवरण विमर्श है। ढांचा हिन्दू शास्त्र रीती जैसा प्रश्नोत्तर के रूप में है यह रीती ने ही संस्कृति को लचीला बनाया है। ऑप्शन खुले रखे गए है चाहे गीता हो या अन्य दार्शनिक ग्रंथ।
हाँ नीलकंठ वर्णी रूप में वो भी लंबी भीषण पदयात्रा करके ही लोज पहुंचे थे। नेपाल से पूरी से रामेश्वर हो के लोज। 14 की उम्र व काफी कठिन नियम पालन।
और उनकी कथा को सत्संगीजीवन ग्रंथ में शतानंद स्वमी ने लिखा है।
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तब तो सत्संगीजीवन पढ़ना होगा…
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पथिक पटेल फ़ेसबुक पेज पर
गुजरात मे स्वामीनारायण भगवान के अनुयायी जैनो जितने पैसे वाले गिने जाने लगे है। गरीब से पैसे वाले बनना बहोत आसान है। आपको व्यसनों से दूर होना है और खानेपीने में शुद्धि रखनी है तो ज्यादातर पैसे ऐसे ही बचते जाएंगे। ऐसे ही सदाचारों का पालन करवाने वाला बहोत ही अद्भुत बहोत ही छोटा सा ग्रथ है शिक्षापत्री…
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पथिक पटेल फेसबुक पेज पर –
शिक्षापत्री में लिखे सदाचार का पालन करना ज्यादा कठिन नही है। कई ऐसी बाते है जो गरीब परिवार को अमीर बना देती है। जैसे हररोज कितना पैसा खर्च करते है वो सब आवक जावक लिखना। बहोत छोटा नियम है पर बहोत ही कामका है।
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संदीप पाण्डेय, ट्विटर पर –
माधवपुर का समुद्र तट बहोत सुन्दर है | ये पूरा इलाका द्वारका तक काफी सम्पन और नैसर्गिक सुदरता से भरा हुआ है |
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धर्म शास्त्रों, वेदों, पुराणों, उपनिषदों, संहिताओं में नैतिकता के नियमों में सर्वकालिकता, सार्वभौमिकता, नही है और विरोधाभासी भी हैं, इसीलिए मानवीयता के सभी चर अचर के प्रति प्रेम, करूणा, दया, और सर्वकल्याण के नैतिक मूल्यों का अनुसरण करना श्रेयस्कर है।
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सही कह रहे हैं आप.
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