पोरबंदर – दूसरा दिन

18 दिसम्बर 21, सवेरे –

दिलीप थानकी मुझे विवरण दे रहे हैं। बाबा (बाबा प्रेमसागर) नेपथ्य में हैं। दिलीप की भाषा हिंदी है पर गुजराती पुट है। वैसे उन्होने मुझे बताया है कि उनकी शिक्षा दीक्षा मध्य गुजरात और पुणे में हुई है। सो वे काठियावाड़ी ही नहीं कॉस्मोपोलिटन हैं। अपना व्यवसाय भी वे डाइवर्सीफाई करने की दिशा में काम करते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में भी पैठ रखते हैं और बढ़ाने की सोचते हैं।

पसंद आ रहे हैं दिलीप मुझे। उम्र भी दिलीप की मेरे दामाद के समवयस्क सी लगती है। वह (विवेक) भी अपने व्यवसाय को बढ़ाने और डाइवर्सीफाई करने की सोचता/करता है। हो सकता है कि दोनो में कोई मेल मुलाकात और सिनर्जी कायम हो भविष्य में। … खैर वह सब भविष्य की बातें हैं और मैं उसकी बहुत सोचता नहीं।

दिलीप जी ने मुझे कल की प्रेमसागरीय गतिविधि के चित्र भेजे हैं और विवरण भी बताया है फोन पर। उन्होने न बताया होता तो मैं तीन दिन की इस अवधि को यात्रा और ब्लॉग-ब्रेक मान कर चलता। पर चूंकि उन्होने जानकारी दी है; उसके आधार पर कुछ लिखा तो जा ही सकता है।

किलेश्वर महादेव में प्रेमसागर

कल वे लोग बाबा प्रेम सागर को ले कर किलेश्वर महादेव गये थे। यह पौराणिक प्रसिद्धि का मंदिर बरडा पहाड़ियों के ऊपर है। कथानक है कि पाण्डव अज्ञातवास (सम्भव है लाक्षागृह से निकल भागने के बाद) में यहां रहे। वैसे अज्ञातवास को ले कर कई अन्य स्थान भी अपनी दावेदारी करते हैं। उसमें मेरी जानकारी में किलेश्वर महादेव भी जुड़ गया। यह स्थल पोरबंदर से 40-50 किमी उत्तर में है। बरडा पहाडियों में एक वन्यजीव अभयारण्य भी है। सावन के महीने में इस स्थान की छटा निखर जाती होगी – झरनों और हरियाली के बीच। उस समय यहां बहुत से श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। शत्रुशाल्या जी (जामनगर के राजा) की ओर से भण्डारा भी होता है।

बाबा जी को दिलीप जी ने शनि मंदिर भी दिखाया। यह स्थान भी पोरबंदर से 30 किमी दूर है। सातवीं-आठवीं सदी का यह शिव मंदिर हाथला गांव में है और यह स्थान शनि देव के बाल रूप से जुड़ा है।

किलेश्वर महादेव परिसर में महेश भाई और मयूर थानकी ( प्रेमसागर के दांये) हितेशभाई (लाल कमीज) और केतन भाई चेलावाड़ा

शनि और यम – दोनो भाई हैं और दोनो सूर्य के पुत्र हैं। दोनो मनुष्य को उसके कर्म अनुसार न्याय देने वाले हैं। शनि का जन्म उनकी माता छाया द्वारा शिवजी की तपस्या से हुआ है। शनि का रंग सांवला होने के कारण वे सूर्यदेव से तिरस्कृत रहे और उन्होने शिव जी की तपस्या की, तपस्या के फलस्वरूप अपने पिता को उन्होने हराया।… पौराणिक कथायें खूब गड्डमड्ड हैं। पर मूल बात यह है कि शनि मनुष्य के भय और न्याय की चाह के देवता हैं।

शनि मंदिर में प्रेमसागर

थानकी जी बताते हैं कि आज वे कीर्ति मंदिर, हरि मंदिर और सुदामा जी का मंदिर दिखायेंगे। समय मिला तो भीमेश्वर महादेव और जाम्बवंत की गुफा भी दिखायेंगे। आज अवसर मिलने पर बाबा प्रेमसागर को चिकित्सक से भी साक्षात्कार करा देंगे। यह सब प्रेमसागर की कांवर यात्रा से इतर गतिविधियांं हैं। पर यह सब प्रेमसागर को अपनी ऊर्जा री-कूप करने में सहायक होंगी। उनको इसी भाव से देखने को मैंने अपने को समझाया है।

प्रेमसागर को न केवल यात्रा करते हुये कंकर में शंकर तलाशने चाहियें, वरन मौका मिलने पर यात्रा मार्ग से दांये बांये भी झांक लेना चाहिये – यह मैंने अपने को समझाया है। मैं समझ रहा हूं, और मैं इस समझ में पहले फिसड्डी रहा; कि प्रेमसागर की यात्रा, यात्रा की पूर्णता और विधिवत सम्पन्नता में कम, यात्रा के लालित्य और वैविध्य में है। प्रेमसागर को क्या करना चाहिये और क्या नहीं करना चाहिये – यह मेरा बिजनेस नहीं है। … और यह मेरी पिछले एक दो दिन की उभरी सोच में आया परिवर्तन है।

मैं सोचता था कि मैं ब्लॉग में प्रेमसागर के बारे में लिख कर प्रेमसागर की यात्रा का फेसिलिटेटर हूं; पर वह भाव मैंने त्याग दिया है। मैं इस बात से थोड़ा चिंतित रहता था कि भौगोलिक जानकारी के अभाव में प्रेमसागर व्यर्थ ही 400 किमी अतिरिक्त चले जब कि लम्बी यात्रा में एक एक किलोमीटर अतिरिक्त चलना भारी होता है। मुझे यह भी चिंता थी कि महाराष्ट्र और दक्षिण की यात्रायें – सुदूर रामेश्वरम की यात्रा – कैसे होगी। अब वह चिंता मैं छोड़ने की कोशिश करूंगा। वह सब महादेव के जिम्मे! देखता हूं, यह भाव स्थाई रहता है या नहीं।

रात्रि भोजन के समय अलाव के इर्दगिर्द

महादेव अपने हिसाब से चलायेंगे यात्रा। हर हर महादेव।

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है।
नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ।
और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है।
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी
(गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) –
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर
2654 किलोमीटर
और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है।
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे।
प्रेमसागर यात्रा किलोमीटर काउण्टर

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

4 thoughts on “पोरबंदर – दूसरा दिन

  1. जय महादेव।
    लगता है प्रेमसागरजी आप को स्थितप्रज्ञता सिद्ध करवाके रहेंगे।आपने भी महादेव को जिम्मेदारी सौंपी ही आखिर में। नए आयाम स्थापित हो रहे है। ओर रोचक होगा ट्रावेलोग|

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    1. आशा की जाए कि बेहतर स्वरूप लेगा लेखन. सब निर्भर करता है कि परस्पर कितनी रुचि बनी रहती है…

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  2. आलोक जोशी ट्विटर पर –
    द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन या देशाटन के पीछे मूल भावना यही है कि चहुँ ओर घूम घूमकर देश की संस्कृति और सामाजिक जीवन से परिचित हुआ और आत्मसात किया जा सके..
    उस लिहाज से प्रेम जी यात्रा के दौरान अन्य स्थानों से परिचित होते हैं तो यह अनुभव उनके लिए अत्युत्तम होगा। आपकी सोच उचित है।

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  3. दिनेश शुक्ल जी, फेसबुक पेज पर –
    गुजरात कुछ अलग ही है, सकारात्मक रूप से अलग किस्म का प्रदेश।

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