नागेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन सम्पन्न – प्रेमसागर पर अंतिम पोस्ट

24 दिसम्बर 21 –

बीस दिसम्बर को दिन सवेरे प्रेमसागर ने बताया था कि वे पोरबंदर से आगे निकल लिये हैं। पोरबंदर से द्वारका 106 किमी और नागेश्वर तीर्थ 118 किमी है नक्शे के अनुसार। मेरे अनुमान से इस यात्रा में प्रेमसागर को तीन दिन लगने चाहिये थें। बाईस दिसम्बर को उन्हें गंतव्य पर पंहुचना था और तेईस को उन्हें नागेश्वर तीर्थ के दर्शन करने चाहिये थे।

दिलीप थानकी जी द्वारा भेजा नागेश्वर तीर्थ का चित्र।

वैसा ही हुआ। कल दोपहर में तीन बजे प्रेमसागर का फोन आया कि उन्होने नागेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन सम्पन्न कर लिया है। सोमनाथ में वे अकेले थे। यहां उनके साथ दिलीप थानकी जी, उनके जीजा जी, उनके परिवार-कुटुम्ब के कई सदस्य और दिलीप जी की बहन का वह बालक (जिसका चित्र पोरबंदर के समुद्र तट पर प्रेमसागर के साथ है) भी थे। प्रेमसागर अपनी इस उपलब्धि पर हर्षित दिख रहे थे। इसमें दिलीप थानकी जी और उनके कुटुम्ब की महती भूमिका है। उन्होने प्रेमसागर का सोमनाथ और उससे आगे न केवल पूरा ध्यान रखा, उन सब ने प्रेमसागर को उसी तरह का आतिथ्य दिया, जैसी छपिया के घनश्याम पाण्डे को नीलकण्ठ वर्णी के रूप में सौराष्ट्र ने दिया होगा। दिलीप जी और उनका कुटुम्ब प्रेमसागर के प्रति जो श्रद्धा व्यक्त कर रहा है वह अभूतपूर्व है। वे लोग प्रेमसागर की आगे की द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा का सारा आर्थिक और लॉजिस्टिक सपोर्ट सिस्टम बनाने और उसे सुचारु रूप से सतत जारी रखने के लिये कृत संकल्प हैं। महादेव की असीम कृपा प्रेमसागर पर है।

प्रेमसागर को, यह स्पष्ट हो गया है कि उन्हें मेरी लेखन सहायता की आवश्यकता आगे नहीं है। उन्होने इस को स्पष्ट शब्दों में नहीं कहा, पर उन्होने यह जरूर किया कि बीस दिसम्बर के बाद मुझे जानकारियां देना बंद कर दिया।

बाईस दिसम्बर को प्रेमसागर का फोन आया दिन में। उन्होने बताया कि पिछले दिन उनके पैर में कांटा चुभ गया था, सो चलने में पीड़ा थी। इस कारण वे बातचीत या चित्र नहीं दे पाये थे। यह वाजिब कारण लगा। पर उन्हें बिना जूते चलने की जरूरत क्यों हुई? प्रेमसागर ने बताया – “भईया, जूता टूट गया था। नया जूता मन माफिक मिला नहीं जो कपड़े का ही हो, जिसमें चमड़ा न इस्तेमाल हुआ हो।” यह कारण मुझे कुछ अजीब लगा। छोटे स्थानों पर भी प्रेमसागर को जूता या सेण्डिल मिल जा रहा था। पोरबंदर में न मिलना उचित नहीं प्रतीत होता, वह भी तब जब दिलीप जी प्रेमसागर की सब जरूरतें सहर्ष पूरी कर रहे हों। प्रेमसागर शायद जूता छोड़ कर चलना चाहते हैं और मुझे “नाराज” भी नहीं करना चाहते थे। पहले मैं नाराज भी होता और उनकी “जड़ता” या “लोग क्या कहेंगे” की भावना को निरर्थक ठहराने का प्रयास करता। पर इसबार मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।

थानकी जी का भेजा नागेश्वर तीर्थ का एक और चित्र

उसके बाद भी प्रेमसागर का नियमित फीड बैक – चित्र, फोन या लाइव पोजीशन शेयरिंग नहीं हुई। यह साफ हो गया, उनके बिना बोले कि वे आगे कोई सहयोग नहीं चाहते। वह सहयोग मैंने उन्हे जो दिया था, उसमें उनपर अपने स्नेह के अलावा जो गुस्सा, नारजगी या उनकी सोच पर व्यंगोक्तियाँ रही हैं, वे अब उन्हें अधिक चुभ रही हैं। वे शायद पहले भी कष्ट देती रही हों, पर तब उन्हे मेरे सहयोग, लेखन और लोगों से बातचीत कर उनकी सहायता करने आदि की आवश्यकता रही थी। अब उनके पास विकल्प हैं।

खैर, जो भी हो; पिछले लगभग चार महीने प्रेमसागर के साथ यात्रा जुगलबंदी ने मुझे बहुत फायदा दिया है। उनकी यात्रा न होती तो मैं रीवा, शहडोल, अमरकण्टक और नर्मदीय क्षेत्र, भोपाल, उज्जैन, माहेश्वर, गुजरात और सौराष्ट्र की मानसिक यात्रा कभी न कर पाता। कांवर यात्रा का उन्होने मुझे सहभागी बनाया, अपने सुख दुख – लगभग पूरी तरह – मुझसे बांटे, मेरे ब्लॉग को नया आयाम दिया; उसके लिये प्रेमसागर को धन्यवाद।

पोरबंदर से नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के मेरे पास कोई चित्र या और जानकारी नहीं है। परसों प्रेमसागर ने यह जरूर बताया था कि यह यात्रा भाग उन्होने कांवर को केवल प्रतीक के रूप में ले कर सम्पन्न किया है। प्रतीक के रूप में थोड़ा जल अपने कंधे पर लिये चले वे। बाकी सामान और जल के लोटे या तो पोरबंदर में रहे या द्वारका में। यात्रा के तीन दिनों में रातें उन्होने पोरबंदर (एक दिन) और द्वारका (दो दिन) रुक कर बिताईं। दिलीप थानकी जी के कुटुम्ब के लोग उन्हें यात्रा स्थल से वाहन द्वारा रात बिताने के लिये ले जाते थे और अगले दिन उन्हें वापस उसी स्थान पर छोड़ते थे, जहां से रात्रि विश्राम के लिये वे विराम लिये थे। इस प्रकार नवी बंदर से नागेश्वर तीर्थ की यह यात्रा पारम्परिक तरीके से कम प्रतीकात्मक तरीके से ज्यादा हुई। पर परम्परा पालन प्रेमसागर का ध्येय होना भी नहीं चाहिये। क्या होना चाहिये, उसपर कहने में इससे पहले मैं प्रवचनात्मक मोड में आ जाऊं, मैं इस ट्रेवलब्लॉग को यहीं विराम देता हूं।

मेरे ब्लॉग की पोस्टों के साथ 2654 किलोमीटर चले हैं। यह कोई कम पद यात्रा नहीं है। मुझे उसके साथ जुड़ने में ‘सेंस ऑफ प्राइड’ है; जिसे मैं लिखे बिना यह 90 पोस्टों की सीरीज बंद नहीं करूंगा। यह सब सम्पादित कर कभी पुस्तक का रूप लेगा या नहीं, मैं नहीं कह सकता। ब्लॉग से पुस्तक के रूपांतरण के लिये मैं निहायत आलसी हूं। अन्यथा “मानसिक हलचल” से पांच सात पुस्तकें दुह लेता। 😆

देवाधिदेव महादेव प्रेमसागर का कल्याण करें। हर हर महादेव!


*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है।
नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ।
और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है।
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी
(गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) –
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर
2654 किलोमीटर
और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है।
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे।
प्रेमसागर यात्रा किलोमीटर काउण्टर

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

33 thoughts on “नागेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन सम्पन्न – प्रेमसागर पर अंतिम पोस्ट

  1. ये तों ख़ैर होना ही था। बाक़ी महादेव जाने।
    जितना जल्दी हो उतना अच्छा।
    पिछले कुछ महीनो से यात्रा पोस्ट की रोज़ सुबह प्रतीक्षा रहती थी।
    आपकी लेखनी को प्रणाम, आपको पढ़ने में ऐसा लगता है की आदरणीय अमृतलाल वेगड़ जी को पढ़ रहा हूँ

    हर हर महादेव।

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    1. आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद। आपने मेरी अमृत लाल वेगड़ जी से तुलना की, यद्यपि मैं उनके पासंग में नहीं हूँ, पर आपका कहना अच्छा लगा.

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  2. देहाती, ट्विटर पर –
    मुझे लगता है एकबार स्पष्ट पूछ लेना चाहिए,
    शायद कोई तकलीफ हो या उनमें उपजे कुछ विचार !

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  3. अज्ननी कुमार सिंह, ट्विटर पर –
    वाह ! बहुत सुंदर ।
    अगला दर्शन किस ज्योतिर्लिंग का बन रहा है प्रेम सागर जी का ? लिखते रहेंगे ।
    #हर__हर_महादेव

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  4. राजेंद्र सारस्वत फेसबुक पेज पर –
    शायद उन्हें ऐसा लग रहा हो कि आपके लेखन से उन्हें मिल रहा यश लाभ उनके उदात्त अभिप्रेत पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। वैसे भी साधना का मार्ग तो नितांत एकांतिक और आत्मलक्षी ही है, और उनका यह संकल्प भी कम से कम उनके हिसाब से तो उस साधना का ही एक रूप है।
    मेरे विचार से तो उन पर बिना कोई भावनात्मक या अन्य दवाब डाले उन्हें उनके रास्ते पर उनके हिसाब से चलने दें तो ही उपयुक्त।
    अब मैं ही घर बैठे उनके उपक्रम का कोई लाभ बिना कोई कष्ट सहे लेने की लालच पालूं तो ये मेरी मुफ्तखोरी हो कही जायेगी ना।
    उनकी इच्छा के बिना उनकी यात्रा से कोई लाभ या आनंद लेने की लालसा को कैसे न्याय संगत ठहराया जा सकता है?
    हां, वो उसे स्वेच्छा से परमार्थ के व्यापक फलक पर फैलाना चाहें तो और बात है !
    मेरी मूढ़ मति के अनुसार …

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    1. मैंने ध्यान से सोचा। उनके उपक्रम से कोई लाभ लेने का भाव तो नहीं ही है। मैंने लेखन उनके सहयोग से उनके यात्रा की सहायता के लिये किया। हां, अब उनके लिये, उनके बारे में जो समय व्यतीत किया, उसको ले कर कष्ट जरूर है। “साधना का मार्ग तो नितांत एकांतिक और आत्मलक्षी” हो तो अच्छा ही हो। पर वे तो सौ-पचास लोगों का आतिथ्य लेने के फेर में पड़ गये हैं। कांवर यात्री को यश और ‘प्रसिद्धि’ से बचना चाहिये।

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  5. लाहिरी गुरू मिश्र फेसबुक पेज पर –
    आदरणीय श्री को सादर चरणस्पर्श 🙏
    लेखन जारी रहे हम प्रार्थनीय हुं । आदरणीय श्री प्रेम बाबा जी की द्वादश ज्योतिर्लिंग की पद यात्रा सुसम्पन्न होने की श्री काशी विश्वनाथ जी से बार बार प्रार्थना करता हुं बाबा जी की यात्रा मंगलमय हो ।
    ऐसा विचार न लाईए । पद यात्रा का लेखन जारी रखें । हम तो प्रेम बाबा जी को और इस इस यात्रा के विषय ट्वीटर से ही जान पाया ।आप के ब्लाग के विषय में बाबा जी से ही जान पाया ।
    आपके ब्लाग से प्रेरित हो कर हमने भी ट्वीटर फलक पर इस यात्रा का स्पेस भी चलाता हुं । मेरी मंशा द्वादश ज्योतिर्लिंग की इस पद यात्रा व पद यात्री आदरणीय श्री प्रेम बाबा जी के विषय ढेर सारे लोग अवगत हो पाए ।इस यात्रा के संदर्भ में हमने कुछ फेसबुक पोस्ट भी लिखी है ,पर गृहस्थ जीवन, समया भाव बस नहीं लिख पाता । आपकी लेखनी का मैं कायल हुं , हमारी हिन्दी त्रुटि पूर्ण है इसका मुझे भान है ।
    ईश्वर की यात्रा समझ आप लेखन जारी रखें ।🙏 प्रणाम ।

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  6. नीलोफर त्रिपाठी फेसबुक पेज पर –
    आपके लिखे को पढ़कर हम-सब एक मानसिक यात्रा में हैं। इच्छा तो यही है कि ये यात्रा के आगे के वृतांत भी पढ़ते रहें।

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  7. केके एल श्रीवास्तव फेसबुक पेज पर –
    सर प्रणाम,
    जारी रखिये किसी भी तरह से…

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  8. अपडेट नहीं मिल पाने के सैकड़ों कारण हो सकते हैं। अगर यह मानें कि कांवर यात्रा ट्रांसफार्मेशन करेगी, तो उस बदलाव के लिए हमें खुद को भी तैयार रखना होगा। यह ट्रांसफोर्मेशन अगर इस तरह है कि आगे की यात्रा बिना सोशल मीडिया के एकांत में होगी तो ऐसे ही सही और अगर कुछ और बदलाव हैं, तो अभी थोड़ा रुककर देख लेना चाहिए। प्रेमसागरजी इतना ऑर्गनाइज्‍ड नहीं हैं, आपको अभी कुछ और प्रयास करने चाहिए…

    बाकी हरि इच्‍छा…

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