मैं सवेरे उठता कैसे हूं?

मेरे जीवन में कर्मकाण्डों का बहुत महत्व नहीं है। मन उनमें नहीं लगता। कुछ कर्मकाण्ड सामाजिकता निर्वहन के लिये किये जाते हैं। उनका निर्वहन करते हुये निरपेक्ष भाव ही रहता है, सामान्यत:। अन्यथा, ईश्वर मंदिर में या यज्ञ-हवन-भजन में नहीं दिखते। वे अपने को या प्रकृति को यूंही निहारते में ज्यादा पास लगते हैं।

पर एक कर्मकाण्ड मेरे जीवन का अंग बन गया है – तीन चार दशकों से। उसमें कुछ परिवर्तन हुये हैं समय के साथ, पर मूलत: वह वैसा ही रहा है।

सवेरे उठते समय अगर नींद सामान्य रूप से खुलती है – किसी झटके या शोर या आकस्मिक घटना से नहीं – तब निद्रा और जागने की संधि पर मन में लेटे लेटे “हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे” का अठारह बार जप होता है। कभी कभी गिनती में गफलत होने पर अधिक भी हो जाता है पर सामान्यत: अठारह बार ही होता है।

उसके बाद धीरे धीरे बिस्तर पर बैठ कर निम्न प्रार्थना मन में ही होती है –

त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्‌। वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप। वायुर्यमोग्निर्वरुण:शशांक: प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च। नमो नमस्तेस्तु सहस्रकृत्व: पुनश्च भूयोपि नमो नमस्ते॥ पुनश्च भूयोपि नमो नमस्ते॥

Keep sheltered in my arms, they will protect you against everything. Open to my help, it will never fail you.

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥

यह प्रार्थना करते समय मन में योगेश्वर कृष्ण की छवि होती है।

योगेश्वर श्रीकृष्ण

उसके बाद मैं अपने पूर्वजो को याद करता हूं – जोड़े में। अपने माता-पिता, बाबा-आजी, नाना-नानी और स्वसुर-अम्मा जी को। याद करते समय, क्षण भर के लिये ही, उनकी छवि मन में आती है।

उसके बाद धरती पर पैर रख कर झुक कर दोनो हाथों से धरती को प्रणाम करता हूं।

यह क्रम, जैसा मैंने कहा, कई दशकों से चल रहा है। इस कर्मकाण्ड में कुछ परिवर्तन हुये हैं। शुरुआत में केवल हरे राम का जप होता था। कालांतर में गीता के उक्त श्लोक जुड़े। अंग्रेजी में मदर के कहे शब्द तो सन 2000 के आसपास जुड़े और उनके साथ सर्वधर्मान्परित्यज्य वाला श्लोक भी जुड़ा। तब शायद मन उद्विग्न रहा करता था और यह विचार आया कि सब गोविंद पर ही छोड़ देना चाहिये।

अपने पूर्वजों और धरती माता का स्मरण तो लगभग दो साल पहले जुड़ा। तब पिताजी की मृत्यु हुई थी। उसके बाद लगा कि दिन में एक बार उन्हें और पालन करने वाली धरती माता के प्रति भी भाव सवेरे की प्रार्थना में रहने चाहियें।

इस दैनिक कर्मकाण्ड के अलावा कोई धार्मिक कर्मकाण्ड मेरे जीवन का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। स्नान कर पूजा करना भी कभी होता है और कभी नहीं। संस्कृत मुझे नहीं आती – उतनी ही आती है, जितनी स्कूल में तृतीय भाषा के रूप में रटी थी। पर कुछ श्लोक याद हैं। उनका मनमौज के अनुसार यदा-कदा मन में या सस्वर उच्चारण भी कर लेता हूं। … हे कृष्ण गोविंद हरे मुरारे, अच्युतम केशवं रामनारायणम, या कुंदेंदु तुषार हार धवला, आदि कई श्लोक प्रिय हैं। इनको मन में आने पर बोलता हूं।

बस, ले दे कर यही मेरे कर्मकाण्ड हैं। यही मेरा धर्म। … बस। चारधाम की यात्रा, किसी मंदिर देवालय में जाना, किसी धार्मिक समारोह में शरीक होना – यह मेरी सामान्य प्रवृत्ति नहीं है और उनके लिये सयास कर्म नहीं करता। हां, उन्हें जड़ता या उद्दण्डता से नकारता भी नहीं। धर्म बहुत फ्लेग्जिबिल है! :lol:


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

9 thoughts on “मैं सवेरे उठता कैसे हूं?

  1. धर्म के प्रमुख पक्ष तो आप प्रातः ही कर लेते हैं। कर्मकाण्ड तो उस सिद्धान्तों का एक देशीय विस्तार है। उठकर बजरंग बली और उनके आराध्य श्रीराम का नाम लेता हूँ और धरती माँ के पैर छूता हूँ। रात्रि में नींद नहीं आये तो हनुमान चालीसा मनन करने लगता हूँ। “प्रात लेई जो नाम हमारा, तेहि दिन ताहि न मिले अहारा” कहने वाले ही नित्य भरपेट भोजन भी कराते हैं।

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    1. जय हो! हनुमान जी का स्मरण Insomnia की दवा हैं! मैं रात में अब उनकी भक्ति करूंगा! 🙏🏻

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  2. राजेन्द्र सारस्वत फेसबुक पेज पर –
    वाह! आपने तो मेरे धार्मिक परिवृत को शब्द भर दे दिए लगते हैं सर जी!

    मेरे धार्मिक अनुष्ठान भी ऐसे ही सूक्ष्म और लुंजपुंज से रहे हैं।
    बिस्तर बैठ कर ही, आंख बंद करने औरआंख खुलने से पहले किए जाने वाली स्टीरियो टाईप प्रार्थना। निर्धारित और सुविचारित विषय वस्तु के साथ जिसमें स्वस्थ और संतोषमय जीवन तथा सहज और शांत मृत्यु की ईश्वर से प्रार्थना एक अभिन्न अंग रहती है।

    हां पत्नी की मृत्यु के बाद मध्यान्ह की एक पारी जुड़ गई है।
    उनकी आत्मा की शांति हेतु पंडित जी के श्री मुख से जब श्रीमद् भगवद्गीता का अशुद्ध उच्चारण पाठ सुना तो, यह व्रत स्वयं ही साधना शुरू कर दिया ( गरुड़ पुराण का पाठ करने को मैने अपने आकलन के चलते स्वीकार नहीं किया )
    वैसे ही जब स्वयं के साथ जब पुरा परिवार कोरोना की चपेट में आया तो महा मृत्युंजय का स्वपाठ आरंभ किया था। एक के एक बीमारियों के शिकार होने के उपरांत भी एक साल से, केवल ये दोनों ही पाठ मेरी दैनिक पूजा का आदि अंत बने हुए हैं।

    कभी मंदिर या तीर्थ जाम जाने का सौभाग्य मिलता है तो उसमें श्रद्धाभाव घनीभूत होता भी है तो नई अनुभूति और यात्रा रोमांच की लालसा भी उतनी ही सघन रहती हैं।

    बहुत अच्छा लगा आपके सर्वांगसम विचार जानकर , श्रीमान 😀🙏

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  3. Suresh Shukla फेसबुक पेज पर –
    जामे लागे मन!
    वो ही करे तन!
    मन रहे सदा ही चंगा!
    तो कठौती में ही गंगा!

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