महाराष्ट्र का सत्ता पलट ड्रामा

मैं राजनीति में सामान्य से कम दिलचस्पी रखता हूं। कई बार मुझे खबरें पता ही नहीं होती – वे खबरें जो आम चर्चा में होती हैं। और जब कोई मुझे टोकता है – यह टोकना अब उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है – तब एक बारगी लगता है कि मुझे इतनी जल्दी और इतनी गहराई से वानप्रस्थ में नहीं जाना चाहिये। पर अंतत: मेरा उदासीन मन हावी हो जाता है।

लेकिन वह मन महाराष्ट्र के सत्तापलट जून के तीसरे पीरियड में अचानक पलट गया। बीस-इक्कीस जून से मुम्बई-सूरत-गुवाहाटी-गोवा और पुन: मुम्बई की हलचल काफी हद तक टेलीवीजन पर देखी। टेलीवीजन का रिमोट जो मैं सामान्यत: छूता नहीं था, दिन में काफी समय मेरे हाथ में रहा।

चीजें रोचक थीं। शिवसेना की कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी से बेमेल अघाड़ी कभी भी ठीक नहीं लगी थी मुझे और यह अवसर था कि वह ‘अश्लील’ प्रयोग खत्म होने की सम्भावना बन रही थी। एक आम नागरिक की तरह मैंने घटनाक्रम को रीयल टाइम ट्रैक किया।

यहां उत्तर प्रदेश में भी कुछ वैसा ही है। सवर्ण वोट को टेकेन फॉर ग्राण्टेड मानने की सोच है भाजपा स्टेटेजी-नियंताओं में। अपने इलाके में पिछले पांच छ साल से देख रहा हूं कि सांसद-विधायक के लिये कोई भी लैम्प-पोस्ट खड़ा कर देते हैं और यह मान कर ही चलते हैं कि भाजपा का सवर्ण वोट तो मिलेगा ही।

पर अंतिम दिन – कल शाम/रात जो ड्रामा हुआ; वह जमा नहीं। यह तो साफ लगा कि जो जोड़ तोड़ हो रही थी, उसमें फड़नवीस को पूरी तरह लूप में नहीं रखा गया था। फड़नवीस को दिल्ली दरबार द्वारा मना कर शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा का ‘अचम्भा’ जग जाहिर करना मजेदार लगा। पर उसके बाद नड्डा-अमित शाह का बेचारे फड़नवीस को कोंच-ठेल कर उपमुख्यमंत्री पद के लिये मनाना जमा नहीं। यह लग गया कि पूरी कवायद में फड़नवीस को मोहरे की तरह भाजपा ने प्रयोग किया है।

मराठा वोट बैंक साधना, ठाकरे और शरद पवार को ठिकाने लगाना – यह सब ठीक है। और जिस तरह से बेमेल अघाड़ी बना कर ढाई साल से जनता के मेण्डेट का मजाक बन रहा था; यह करना उचित ही था। पर मराठा वोटबैंंक साधने के लिये फड़नवीस को दरकिनार करना सही नहीं है। फड़नवीस को लूप में रखना था…

असल में भाजपा के साथ यही दिक्कत है। कुछ वर्गों को वह अपना बंधुआ मान कर चलती है। यह तो सही है कि महाराष्ट्र में बाभन तीन परसेण्ट ही हैं और वहां वोट बैंक के रूप में मराठा/ओबीसी को फड़नवीस के ऊपर तरजीह दिये जाने को भाजपा मास्टरस्ट्रोक मान कर चल सकती है। पर बांभन को बंधुआ मानना खराब तो लगता ही है।

यहां उत्तर प्रदेश में भी कुछ वैसा ही है। सवर्ण वोट को टेकेन फॉर ग्राण्टेड मानने की सोच है भाजपा स्टेटेजी-नियंताओं में। अपने इलाके में पिछले पांच छ साल से देख रहा हूं कि सांसद-विधायक के लिये कोई भी लैम्प-पोस्ट खड़ा कर देते हैं और यह मान कर ही चलते हैं कि भाजपा का सवर्ण वोट तो मिलेगा ही। सो खड़ा करते हैं केवट-पासी-ओबीसी या कोई अन्य जाति का खम्भा। उसे उसकी बिरादरी के अलावा कोई जानता नहीं और उस लैम्पपोस्ट को अपनी बिरादरी के अलावा किसी को देखने की जरूरत ही नहीं। बाभन ठाकुर भेड़ें है, जो साल दर साल चुनाव में कमल पर ठप्पा मारने की मजबूरी रखते हैं। मैं भी, थर्ड-क्लास उम्मीदवार के बावजूद मोदी के नाम पर वोट देता आया हूं और वह उम्मीदवार जीतने के बाद (उसके पहले भी) कभी दिखा नहीं। और स्थानीय स्तर पर; जहां जीते उम्मीदवार की प्रो-एक्टिविटी की जरूरत होती है; कोई काम होता ही नहीं। :sad:

भेड़ों को साधने की सोच वाली राजनीति अंतत: समाज के भले के लिये नहीं होती, वह मीडियॉक्रिटी को बढ़ावा देती है। पहले की सरकारें एक धर्म के तुष्टीकरण का खेल खेलती रहीं। भाजपा अगर वर्गपोषण की राजनीति पर चली तो उसमें और अन्य में क्या फर्क होगा?

खैर, आगे देखें कि क्या कुछ होता है महाराष्ट्र की या देश की राजनीति में।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

3 thoughts on “महाराष्ट्र का सत्ता पलट ड्रामा

  1. अगर आपके ब्लॉग का कमेन्ट सिस्टम आसान हो जाए तो लोग काफी बड़ी संख्या में कमेन्ट करेंगे 🙏 इतनी सारी एंट्री देखकर ही काफी लोग हिम्मत हार जाते होंगे। राजनीति से दूर रहना वानप्रस्थ बिल्कुल नहीं। ये तो बड़ी अच्छी बात है, मैं भी बस उतना ही देखता-सुनता हूँ, जितना सामने पड़ गया। फॉलो करने की कोशिश नहीं करता हूँ। मेरा यही मानना है कि 90% लोग राजनीति में दिलचस्पी केवल मनोरंजन के अभाव में करते हैं।

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    1. जय हो शब्द बीज जी! कितना सही कहा आपने कि राजनीति में दिलचस्पी उसकी मनोरंजन की क्षमता के कारण ही है…

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  2. आपकी यह बात सही है कि संघ और मोदी शाह की भाजपा एवं सरकार ने बाम्हन, ठाकुर तथा बनिया को हिन्दुत्व की भेड़ बना दिया गया है जो आंख मूंदकर जिधर इनका आईटी सेल हांक देता है उधर को चल देती हैं, और कोई इधर उधर बिदकना भी चाहे तो मोदी शाह के कमांड वाली ईडी सीबीआई इन्कम टैक्स के डंडे चाबुक से नियंत्रित कर ली जाती हैं।

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