आसन्न मानसून की मानसिक हलचल


मैं तो वेदर चैनल और तापक्रम के चक्कर में पड़ा हूंं, पर किसान अपने काम पर लग गया है। उसको कोई पगार या पेंशन तो मिलती नहीं। उसे तो खरीफ की फसल की तैयारी करनी ही है।

आसपास के चरित्र


यह बंदा तो फकीर लग रहा था। बूढ़ा। दाढ़ी-मूछ और भौहें भी सफेद। तहमद पहने और सिर पर जालीदार टोपी वाला।
उसके हाथ में एक अजीब सी मुड़ी बांस की लाठी थी। कांधे पर भिक्षा रखने के लिये झोला।

इल्यूसिव, गॉड पार्टीकल, पीटर हिग्स और लैण्डलाइन फोन


खब्ती वैज्ञानिक! मुझे अगर नोबेल मिला होता तो बावजूद इसके कि मैं भी अपने को इण्ट्रोवर्ट कहलाये जाने को पसंद करता हूं; अपने लिये एक सूट सिलवाता और टाई जो मैंने पचास साल से नहीं पहनी; भी पहन कर पुरस्कार लेने जाता!

कोलाहलपुर के सुरेश


सेण्टर से कच्चा माल ले कर आते हैं और डिजाइन अनुसार बुनने के बाद सेण्टर पर देने से उन्हे काम के अनुपात में भुगतान होता है। सुरेश के अनुसार दो सौ रुपया रोज की आमदनी है। “इससे बढ़िया कहीं नौकरी/वाचमैनी होती?”

धर्मेंद्र सिंह की दण्डवत यात्रा


आगे एक दूसरा नौजवान सड़क पर लम्बा लेट कर दूरी नाप रहा था। उसके हाथ में एक पत्थर की गुट्टक थी। जिसे वह अपने हाथ आगे फैला कर सबसे अधिक दूरी पर रखता था और फिर उठ कर गुट्टक वाली जगह अपना पैर रख पुन: दण्डवत लेटता था।

लोलई राम गुप्ता का भिण्डा


खांची में कई छेदों वाली पूपली के कई पैकेट थे। एक पैकेट बीस रुपये का। खुदरा में दो रुपये का एक बेचते होंगे दुकानदार। उसका नाम फेरीवाले ने बताया – “लोग चिप्स कहते हैं पर हम उसे भिण्डा कहते हैं। कटी भिण्डी जैसा दिखता है।”