मेरे रेलवे ज्वाइन करने के समय से यह धारणा पुष्ट होती रही है कि रेलवे की नौकरी व्यक्ति को (मुख्यत: अफसर को) अंतर्मुखी बनाती है। नौकरी के दौरान मैं भी रेलवे के बाहर के बहुत कम लोगों से मिला। अब, जब उस काल का तामझाम/पैराफर्नेलिया नहीं है; तब बहुत से लोगों से मिलना हो रहा है। गांव देहात के तो अनेकानेक चरित्रों से रोज आमना-सामना होता है। अपने परिवेश को जानने-टटोलने की खब्ती इच्छा के कारण लोगों से मिलना होता है। अब, छ साल गांवदेहात में व्यतीत होने पर उसमें भी एक प्रकार की मोनोटोनी होने लगी है। पर शहर में यदा कदा जाने पर अब उस प्रकार के लोग मिलते हैं, जिनसे रेलवे की नौकरी के दौरान नहीं मिला।
शनिवार को रोहित मिले। रोहित यादव। सेमसंग के कस्टमर केयर के अधिकारी। हरी टीशर्ट पहने और नये काट के हेयर स्टाइल वाले नौजवान। बनारसी, पर बनारसीयत का दो पीढ़ी पहले का जो पैमाना होता है – बात करने में बनारसी टोन और मुंह में पान/पानमसाला ठुंसा हुआ – वह नदारद। यहीं नाटी इमली में रहते हैं। उनका यह सेमसंग का कस्टमर केयर सेण्टर उनके घर से करीब दस मिनट की पैदल दूरी पर है। उनकी पत्नी उनके लिये उनका लंच भेजती हैं। … घर से दस मिनट की दूरी पर दफ्तर। दफ्तर में; जैसा दीख रहा था; रोहित के प्रभुत्व में एक दर्जन से ज्यादा कर्मी। वे लोग रोहित जी के मित्रवत थे; यद्यपि उनके साथ अदब और आदर से पेश आ रहे थे। जिस तरह का माहौल था, उसके अनुसार रोहित बॉस नहीं, फर्स्ट-अमॉन्ग-ईक्वल नजर आ रहे थे।

मैंने उन्हें अपना परिचय देते समय उनपर अपने बीते प्रभुत्व का वर्णन उस प्रकार किया जैसे लोग नेम-ड्रॉपिंग में करते हैं। यह बताने की कोशिश की कि मैं रेलवे का गैरमामूली अधिकारी था। पर वह बोलते ही मुझे अहसास हो गया कि बीते अतीत की शान बताना कोई अच्छी बात नहीं। वह अतीत तो अब खण्डहर हो रहा है।
शब्द मुंह से निकल ही गये थे। वापस नहीं लिये जा सके थे। वैसे मुझे लगा कि रोहित के मुझ कस्टमर के प्रति व्यवहार में मेरे द्वारा मेरे अतीत का वजन डालने का कोई असर नहीं पड़ा। पड़ना भी नहीं चाहिये। रोहित मेरे रुआब झाड़ने के पहले भी विनम्र थे और बाद में भी। हाँ, मुझे जरूर लग गया कि अपना परिचय देने में मेरे पास मेरे वर्तमान के तत्व होने चाहियें; “हम फलाने तोप हुआ करते थे” वाला रिटायर्ड आदमी का राग नहीं गाना चाहिये।
रोहित के पास जाने को मैं विवश हुआ था। पिछले दिन मेरे मोबाइल में एक बैंक वाले एप्प ने कहा कि वे एप्प जो उसके ऊपर स्कीन को देखने और पढ़ने की परमीशन लिये हैं, उनकी परमीशन वापस ले कर बैंकिंग एप्प का प्रयोग करें, अन्यथा आपकी जानकारी कॉम्प्रोमाइज हो सकती है। तीन चार एप्प – स्क्रीन शॉट, लाइव ट्रांसस्क्राइब, स्क्रीन को रात के अनुरूप ढालनेवाला एप्प आदि को वह ओवर राइडिंग परमीशन है। सेटिंग में वह परमीशन वापस लेने की प्रक्रिया में मैंने कुछ गड़बड़ कर दिया। पूरा मोबाइल हैंग कर गया। री-बूट हो कर भी अपनी सही दशा में नहीं लौटा। लिहाजा, मजबूरन मुझे पैंतालीस किलोमीटर दूर की बनारस की यात्रा करनी पड़ी सेमसंग के कस्टमर केयर सेण्टर के लिये।

तीन प्रतिशत से कम असंतुष्ट – वह भी धुर यूपोरियन गढ़ बनारस में। वैसे आम बनारसी तो बनारसी सांड़ की तरह बिना बात हत्थे से उखड़ता है और उसकी भाषा भी कासी-का-अस्सी टाइप होती है। अगर बनारसी जनता को भी रोहित साध लेते हैं तो उनकी काबलियत और सैमसंग को काबिल लोगों की कद्र करने की कल्चर – दोनो का साधुवाद।
रोहित को मोबाइल सुधारने में पांच मिनट से कम ही समय लगा। मेरे जैसी सेटिंग की समस्या को ले कर वहां आने वाले कम ही लोग होंगे। मेरे जैसे बेकार में ही स्मार्टफोन के खांची भर के फीचर्स के साथ, उसकी सेटिंग में खुरपेंच करते हैं और अपने पैर का अंगूठा अपने मुंह में डाल लेते हैं। 😆
रोहित ने मुझसे पूछा भी कि कितने समय से मैं स्मार्टफोन का प्रयोग कर रहा हूं। मैंने बताया कि एक दशक से ज्यादा हो गया। करीब डेढ़ दशक। रोहित ने कहा – साठ से ज्यादा की उम्र के अधिकांश लोग वे आते हैं जो स्मार्टफोन का हाशिये बराबर प्रयोग करते ही दीखते हैं। उन लोगों का समस्या बताते समय पहला कथन यही होता है कि “उन्होने कुछ नहीं किया। मोबाइल जाने क्यों खराब हो गया”।
वैसे स्मार्टफोन के युग में सीनियर सिटिजन उत्तरोत्तर उसका अधिक प्रयोग करेंगे और उन्हें झमेला होने पर कस्टमर केयर सेण्टर आने की दरकार होगी। नुक्कड़ की मोबाइल रिपेयर शॉप वाला झोलाछाप डाक्टर की तरह मोबाइल की तकनीकी समस्या का समाधान करने के लिये उपलब्ध रहेगा; पर जैसे भारत का हेल्थ केयर सिस्टम अपर्याप्त है; वैसे ही शायद स्मार्टफोन केयर सिस्टम भी।
यह बनारस का सेमसंग का सर्विस सेण्टर भी घुमावदार उंची ऊंची सीढ़ियां चढ़ कर ही पंहुचा जा सकता है। वहां जाना इतना दुरुह है कि बूढ़ा आदमी हाँफ जाये! कुल छ काउण्टर हैं यहां और भीड़ भी खूब दिखी। सर्विस सेण्टर अपने आप में सेमसंग के लिये एक लाभ का सौदा होगा, ऐसा मुझे लगा। कस्टमर केयर बिजनेस पर सैमसंग को और ध्यान देना चाहिये। ग्रे-सेगमेण्ट में जो तकनीकी सुविधा प्रदान की जा रही है नुक्कड़ की दुकानों पर, उसकी बजाय अधिक आसपास कस्टमर केयर के आउटलेट होने चाहियें। और उम्रदराज लोगों के लिये ज्यादा सुविधाजनक होना चाहिये वहां पंहुचना।
रोहित आने वाले कस्टमर को सर्विस देने के बीच पिछले दिन के ग्राहकों से फोन पर सम्पर्क कर बात भी कर रहे थे और उनसे यह जानने का प्रयास कर रहे थे कि उनका संतुष्टि का स्तर कैसा है। वे फोन पर ग्राहकों से एसएमएस में दिये लिंक पर फीडबैक देने का आग्रह भी कर रहे थे। उन्होने मुझे बताया कि वे 23 साल की उम्र में इस नौकरी में आये थे और अब इग्यारह साल हो गये हैं इसी दफ्तर में काम करते हुये। अपना काम उन्हें अच्छा लगता है। ग्राहकों में तीन प्रतिशत से ज्यादा नहीं होते जो असंतुष्ट हों। और बहुधा वे भी अपने आकलन में गुड रेटिंग तो देते ही हैं।
तीन प्रतिशत से कम असंतुष्ट – वह भी धुर यूपोरियन गढ़ बनारस में। वैसे आम बनारसी तो बनारसी सांड़ की तरह बिना बात हत्थे से उखड़ता है और उसकी भाषा भी कासी-का-अस्सी टाइप होती है। अगर बनारसी जनता को भी रोहित साध लेते हैं तो उनकी काबलियत और सैमसंग को काबिल लोगों की कद्र करने की कल्चर – दोनो का साधुवाद।

आज दो दिन बाद, रोहित का फोन आया। “बाबूजी आप संतुष्ट तो हैं न सर्विस से? और एसएमएस में फीडबैक जरा देख लीजियेगा।” – रोहित के यह कहने पर मुझे लगा कि ड्राफ्ट में लिखी यह पोस्ट पब्लिश कर ही दी जाये। सेमसंग वाले हिंदी पढ़ते नहीं होंगे; पर शायद यह रोहित के किसी काम आ जाये।
रोहित यादव को शुभकामनायें।
रोहित जी अपने ऊपर बना यह ब्लॉग पढ़कर बहुत खुशी महसूस करेंगे ,और अपने परिजनों से जरूर शेयर करेंगे
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हाँ, यह नैसर्गिक ही है. 😊
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माधव कुमार, फेसबुक पेज पर –
केयर में नुक्कड़ से अधिक मनमाने मूल्य पर सेवा बेची जाती है।
केयर अधिकांश दूसरी तीसरी मंजिल पर ही होते हैं।
फ्रंट एंड दुकानों से कम किराए पर उपलब्ध हो जाते होंगे।
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