आठ अगस्त को प्रेमसागर आये। सवेरे उन्होने फोन किया कि वे चित्रकूट से निकल रहे हैं और शाम तक पंहुचेंगे। आने पर जैसा बताया; उन्होने चित्रकूट से बस पकड़ी और गोपीगंज में बस से उतर कर ऑटो किया। शाम साढ़े सात बजे वे मेरे घर पर थे।
वे मेरे लिये दस किलो कोदों ले कर आये थे। मध्यप्रदेश में अमरकण्टक के आसपास कहीं से उन्होने जुगाड़ा था। कोदों यानि मोटा अनाज। मोटा चावल। पुनर्मूषको भव: की तर्ज पर आदमी अब पुन: मोटे अनाज पर लौट रहा है। हम आजकल गेंहूं की बजाय नियमित रूप से अरवाँ चावल और ओट्स का प्रयोग कर रहे हैं। उसमें अब कोदों भी जुड़ गया।

हमने पहले कभी कोदों देखा नहीं था। बचपन में शायद कभी देखा हो, पर उसकी स्मृति नहीं है। मेरी पत्नीजी तो मुझसे ज्यादा ग्रामीण परिवेश जानने वाली हैं; पर उन्होने भी नहीं देखा था। कोदों आने से हम बहुत उत्साहित हैं। कोदों से चावल, खीर, उपमा, उत्तपम, दोसा … सब बनाने की योजना बन गयी है। यूट्यूब खंगाला जा रहा है! 😆
कोदों ले कर आना प्रेमसागर का प्रेम दर्शाता है और साथ ही वे शायद इसे धन्यवाद ज्ञापन जैसा कुछ समझते हों। मेरे डिजिटल साथ से उन्हे शायद कुछ लाभ हुआ हो। वैसे उन्हें जो भी लाभ हुआ हो, उनके अनुपात में मुझे खुद अपने व्यक्तित्व को परिष्कृत करने का जो लाभ हुआ, वह कहीं ज्यादा है।

प्रेमसागर ने अपनी द्वादशयोतिर्लिंग यात्रा सम्पन्न होने पर प्रतीक स्वरूप हमें एक पाव वह जल भी दिया जो उन्होने भारत भर की पवित्र नदियों से शिवजी को चढ़ाने के लिये इकठ्ठा किया था। वह भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता-एकता का प्रतीक है। वह जल हमारे पूजा घर की अमूल्य निधि बन गया है।
प्रेमसागर मुझे प्रिय हैं। और वे मेरी विचार शृन्खला में कई कई प्रकार से आते रहते हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ लोग जो मेरे ब्लॉग या लेखन पर बात करते हैं, वे घूम फिर कर प्रेमसागर की चर्चा कर ही लेते हैं। प्रेमसागर के बारे में जिज्ञासु कई हैं। 🙂
प्रेमसागर ने बताया कि अपनी पैदल कांवर महा-यात्रा के दौरान उन्हें आगे कुछ काम करने के ध्येय दिख गये। गायों की व्यापक दुर्दशा देखी। उन्हें संरक्षण देने के लिये कुछ किया जाना चाहिये। वृद्धों का भी हाशिये पर जीना उनकी यात्रा में दिखा। घर परिवार में उनके साथ उपेक्षा और घोर अन्याय नजर आया। उसके अलावा, अपने खुद के विकलांग बच्चों की उपेक्षा, उन्हें बोझ समझना और उनसे अपने ही घर के आगे बिठा कर उनसे भिक्षावृत्ति कराना उन्होने देश के कुछ हिस्सों में देखा। यह उनकी कल्पना में भी नहीं था। हृदयविदारक। और यह एक दो जगह नहीं कई जगह दिखा उन्हें। आदमी वह सब, जो आर्थिक बोझ है, को बड़ी ही निर्ममता से ट्रीट करता है। इस बारे में वे कुछ करना चाहते हैं।
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
गुजरात में जूनागढ़ में रेखा परमार को विकलांग बच्चों के प्रति जीवन समर्पित करना प्रेमसागर ने देखा। भावनगर के अश्विन पण्ड्या जी भी उनके लिये बहुत कुछ कर रहे हैं। बहेतू गायों की देखभाल के लिये देश के कई भागों में प्रयास और कई स्थानों पर उनकी सेवा को भुनाने के प्रयास भी उन्होने देखे। वृद्धों के लिये भी कहीं कहीं किया जा रहा है। वह काफी नहीं लगता पर प्रयास हो रहे हैं।
प्रेमसागर जुट गये हैं इनके बारे में कुछ करने के लिये। एक कांवरिया का यह रूपांतरण मुझे आकर्षित भी करता है और उस प्रयास के प्रति उसी तरह की आशंका भी देता है जैसी प्रेमसागर की द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा के दौरान थी। प्रेमसागर के प्रबल संकल्प की ताकत मैंने देखी है। वही ताकत शायद इस साधन विपन्न पर जुनूनी व्यक्ति को उनके आगे के प्रयास में भी सफल बनाये।
प्रेमसागर ने बताया कि उन्हें रींवा के पास जमीन मिल गयी है। कुछ लोगों को यात्रा के दौरान उनके प्रति जो विश्वास बना है, उसी के प्रभाव से। कुछ लोग उन्हें सहायता कर रहे हैं एक संस्थान बनाने के लिये जो गौ-वृद्ध-विकलांग बच्चों के बारे में काम करेगा। वे मुझे उस संस्थान से जोड़ना चाहते थे, पर मेरी अनिच्छा ताड़ गये। ज्यादा जोर नहीं दिया।
मेरे घर रात बिताई प्रेमसागर ने। अगले दिन वे लखनऊ जाने के लिये निकल पड़े। बारह ज्योतिर्लिंग पैदल चलने के बाद भी चैन नहीं गै प्रेमसागर को। लखनऊ में वे इसी आगे के प्रयास के बारे में लोगों से मिलेंगे।

कई कई यात्राओं की भी सोचते हैं प्रेमसागर। बारह ज्योतिर्लिंग दर्शन के बाद अब उनके मन में सभी बावन शक्तिपीठों की भी यात्रा करने का विचार बन रहा है। यह यात्रा पैदल नहीं होगी। पर शक्तिपीठ भी दुर्गम और ऊंचाइयों पर हैं। कुछ तो अब उन हिस्सों में हैं जो भारत से इतर हैं। वह कैसे हो पायेगा, वह तो प्रेमसागर को भी नहीं मालुम। पर ज्योतिर्लिंग यात्रा प्रारम्भ करते समय वह कैसे होगी, वह भी प्रेमसागर को मालुम नहीं था…!
महीना भर से अधिक हो गया है प्रेमसागर के यहां आये। उनके द्वारा मिला कोदों का चावल मेरे दैनिक भोजन का हिस्सा बन गया है। मधुमेह होने के बावजूद मुझे कोदों का भात खाने पर रक्त शर्करा बढ़ी नहीं दिखती। इसका ग्लाइसेमिक इण्डेक्स गेंहू से कम ही है। जब भी कोदों का चावल बनता है, और यह पकता बहुत जल्दी है, तब प्रेमसागर की स्मृति हो आती है।
प्रेमसागर की आधी कांवर यात्रा – दक्षिण भारत की यात्रा का विवरण मेरे ब्लॉग पर नहीं है। मैंने प्रेमसागर से बात की है और उनकी स्मृति के आधार पर उस यात्रा के मेमॉयर्स भी लिखने का प्रयास आगे कभी होगा। मैं प्रेमसागर के नये प्रॉजेक्ट में तो शायद भागीदारी न करूं, पर यात्रा विवरण पूरा करने में मेरी रुचि है। उसके बहाने प्रेमसागर ब्लॉग पर आते रहेंगे।
प्रेम सागर का यूपीआई एड्रेस |
प्रेमसागर के नये प्रॉजेक्ट्स – गौशाला, वृद्धाश्रम और विकलांग बच्चों की सहायता हेतु बनने वाले उनके सन्स्थान के लिये अगर आप कुछ सहयोग करना चाहें तो निम्न यूपीआई पते पर कर सकते हैं – Prem12Shiv@SBI |
इस पोस्ट के आरंभ में दी गई प्रेम सागर जी की तस्वीर एक बेहतरीन पोट्रेट है। ज्ञानदत्त जी आप सिर्फ कलम के ही नहीं कैमरे की भी धनी हैं। ईश्वर से प्रार्थना है की प्रेम सागर जी के नए संकल्प में उन्हें सफलता मिले।
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जय हो 🙏🏼
आपका धन्यवाद प्रशंसा के लिए!
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संकल्प से सिद्धि को प्राप्त करना भी एक महायात्रा ही है, संकल्प अध्यात्मिक, मानव कल्याण अथवा भौतिक मायावी सुख किसी के लिए भी हो सकता है। ऐसी महायात्रा की शुरुआत करना, इस पर चल पड़ना, अथक चलते रहना ही संकल्प से सिद्धि की ओर जीवन की गति है।
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हाँ, प्रेम सागर जैसे कुछ ही हैं जो महायात्राएं करने का संकल्प लेते हैं और उसे सिद्ध करने के लिए जुट जाते हैं…
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