25 फरवरी 2023
चाकघाट से रवाना होने पर टौंस या तमसा नदी पड़ीं। करीब 275 किमी लम्बी यह नदी सतना-रींवा के पहाड़ी भाग से निकल कर गंगाजी में सिरसा-पनासा के बीच मिलती है। वहां प्रयाग से अपने गांव जाते आते हर बार इसे देखता आया हूं। बरसात के अलावा भी काफी पानी रहता है इस नदी में। प्रेमसागर के चाकघाट के पास इस नदी के चित्र से नदी के प्रति आत्मीय भाव छलक आया। नदी से कितना अपनापा होता है!



टौंस नदी, चाकघाट
चाकघाट से चल कर शाम सात बजे प्रेमसागर प्रयाग में थे। बता रहे थे कि गुड्डू मिश्र जी मिलने आ रहे हैं। उनसे मिल कर उनके घर रुकना होगा और कल सवेरे वे माता के दर्शन करेंगे। उस समय उनकी लाइव लोकेशन बता रही थी कि वे माधवेश्वरी/अलोपी माता के मंदिर से एक डेढ़ किमी की दूरी पर ही थे। इतना पास में होने पर दर्शन अगले दिन के लिये रखना – यह मुझे समझ नहीं आया। मैंने प्रेमसागर को बताया तो उन्होने इरादा बदल कर आज ही के दिन दर्शन सम्पन्न कर कल विंध्याचल के लिये प्रस्थान करने का निश्चय किया।

प्रेमसागर की इस पदयात्रा में बहुत एड-हॉकिज्म (अनिश्चयत्व) है। कहाँ कहाँ के पीठों के दर्शन करने हैं, और मार्ग क्या होगा – वह बनता बदलता रहता है। मेरे अनुसार वह विकिपेडिया के पेज और गूगल मैप पर आर्धारित किया जाना चाहिये। आदिशंकराचार्य ने अष्टादश महा शक्तिपीठों को चिन्हित करने वाला श्लोक लिखा है। उसी को आधार बना कर यात्रा करनी चाहिये और उस यात्रा में आसपास के अन्य शक्तिपीठों के दर्शन भी करने चाहियें।
नैनी में रहने वाले गुड्डू मिश्र उन्हें एक दूसरा तरीका बताते हैं यात्रा मार्ग तय करने का। गुड्डू मिश्र के अनुसार एक गुरू के निर्देश अनुसार यात्रा करनी चाहिये। गुरू और श्रद्धा के आधार पर यात्रा। प्रेमसागर में श्रद्धा है, पर क्या कोई गुरू हैं? मुझे नहीं मालूम। इसलिये यात्रा का क्या स्वरूप तय करते हैं – वह प्रेमसागर जानें। लबड़-धबड़ तरीके से की गयी पदयात्रा; जिसे घुमक्कड़ी भी कहा जाता है; के अपने अलग रोमांच हैं। अपना अलग तरीके का आनंद। प्रेमसागर शायद वह ले रहे हैं। छुट्टा घूम रहे हैं। 😆
आज अलोपी माता के अंतत: दर्शन कर लिये प्रेमसागर जी ने। कोई पार्षद महोदय – सोनू पाठक जी ने मंदिर के कपाट खुलवा कर उन्हें दर्शन करने दिये। अंधेरा हो गया था। इसलिये चित्र बहुत साफ नहीं हैं और प्रेमसागर का विवरण भी अस्पष्ट है। मैंने इण्टरनेट पर कई लोगों के अलोपी माता के दर्शन पर टिप्पणियां पढ़ी हैं। अधिकांश लोगों का कहना था कि वहां बहुत अव्यवस्था और गंदगी थी। एक शक्तिपीठ जैसे स्थल पर जो आनंद अनुभूति होनी चाहिये, वह वहां नहीं थी। प्रेमसागर ने कहा कि साफसफाई तो ठीक ही थी, पर शक्तिपीठ जैसी व्यवस्था नजर नहीं आयी।

माधवेश्वरी या अलोपी माता एक महत्वपूर्ण शक्तिपीठ है। शिव जी की सती की देह के साथ प्रदक्षिणा के दौरान जो अंतिम अंग – हाँथ की उंगलियां – यहां गिरी थीं, उससे देह अलोप हो गयी। इसीलिये ये अलोपी माता कही जाती हैं। अलोपी माता के मध्ययुगीन मिथक भी हैं। यहां कोई देवी प्रतिमा नहीं है। प्रतीक रूप एक झूला है। शक्तिपीठ के भैरव – भव – के दर्शन के बारे में भी प्रेमसागर ने कुछ विस्तृत नहीं बताया। प्रयाग आना जाना कई बार होगा प्रेमसागर को। वे अगर अपना डेरा रींवा के पास जमाते हैं तो प्रयाग बहुधा उन्हें आना होगा। तब वे माधवेश्वरी/ललिता/अलोपी देवी के दर्शन एक बार इत्मीनान से कर सकते हैं।

ॐ मात्रे नमः।
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दिन – 34 कुल किलोमीटर – 1244 मैहर। अमरपाटन। रींवा। कटरा। चाकघाट। प्रयागराज। विंध्याचल। कटका। वाराणसी। जमानिया। बारा। बक्सर। बिक्रमगंज। दाऊदनगर। करसारा। गया-वजीरगंज। नेवादा। सिकंदरा। टोला डुमरी। देवघर। तालझारी। दुमका-कुसुमडीह। झारखण्ड-बंगाल बॉर्डर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। फुल्लारा और कंकालीताला। नलटेश्वरी। अट्टहास और श्री बहुला माता। उजानी। क्षीरसागर/नवद्वीप। |
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