प्रेमसागर की यात्रा बिना नोटबुक के और एक खराब मेमोरी के साथ हो रही है! मेरी झुंझलाहट पर वे सीधे प्रतिक्रिया नहीं करते पर कुछ देर बाद बोले – “अब भईया, निकल लिये हैं तो आगे महादेव जाने, माई जानें। वे ही कोई न कोई बेवस्था (व्यवस्था) करेंगे।”
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
प्रेमसागर की यात्रा बिना नोटबुक के और एक खराब मेमोरी के साथ हो रही है! मेरी झुंझलाहट पर वे सीधे प्रतिक्रिया नहीं करते पर कुछ देर बाद बोले – “अब भईया, निकल लिये हैं तो आगे महादेव जाने, माई जानें। वे ही कोई न कोई बेवस्था (व्यवस्था) करेंगे।”