3 मार्च 23
सवेरे छ बजे के बाद का चित्र है वाराणसी केंट के आनंद लॉज का, जिसमें वहां से रवाना होते समय प्रेमसागर की लोगों के साथ एक सेल्फी है। सो माना जा सकता है कि सवेरे सवा छ बजे तक उन्होने अपनी यात्रा प्रारम्भ कर दी थी। उन्होने बताया कि राजवाड़ी में सुधीर पाण्डेय जी के घर (?) तक चलेंगे आज। वहां उनके रात्रि विश्राम की व्यवस्था है। एक जगह उन्होने सड़क खराब होने का जिक्र किया। सड़क रेलवे की जमीन पर है और रेलवे को फिक्र नहींं सड़क ठीक करने की। उत्तर प्रदेश प्रशासन या राष्ट्रीय सड़क विकास निगम उस सड़क के सुधार पर हाथ नहीं लगाता। यह दो अलग व्यवस्थाओं के बीच फंसा मामला है। सड़कों के विकास में यह झोल मेरे घर के पास भी है, जहां रेलवे कटका स्टेशन के पास छ सौ मीटर की सड़क बना ही नहीं रही।

प्रेमसागर को सीधे रजवाड़ी की ओर निकलना था पर दस बजे उनका फोन आया कि लोगों ने उन्हे शॉर्टकट बता दिया है। उन्होने बलुआघाट पर पुल से गंगा पार कर ली है। लोगों का कहना है कि वे सीधे चलते चले जायें। उन्हें कर्मनासा नहीं पार करनी होगी और वे सीधे बक्सर पंहुच सकते हैं। “भईया जरा नक्शा में देख लीजिये हम ठीक जा रहे हैं या नहीं?”


रेल की पटरी के समांतर रेल की जमीन पर सड़क की दुर्दशा।
यह विचित्र लगा मुझे। गांव के लोगों के कहने पर वे अपना रास्ता बदल चुके हैं। उन्हें बेसिक भूगोल मालुम होना चाहिये कि बक्सर के पहले कर्मनासा गंगाजी में मिलती हैं। अब वे बिना गंगा एक बार फिर पार कर उत्तरी भाग में गये बक्सर कैसे पंहुच सकते हैं कि कर्मनासा नदी को लांघ कर उनके सारे पुण्य नाश न हो जायें? मेरे स्वर में झुंझलाहट स्पष्ट थी। उनको कहा कि लोगों से पूछें कि आगे किस स्थान पर वे गंगा पुन: पार कर सकते हैं। ग्रामीण ने किसी स्थान का नाम बताया जिसे उन्होने मुझे दोहराया – “भईया जिगिना पर पीपा पुल से पार करने की बात कह रहे हैं.”
जिगिना तो प्रयाग-विंध्याचल के बीच है। ग्रामीण कुछ और बोल रहा था, प्रेमसागर कुछ और रजिस्टर कर रहे थे। उन्होने फोन उस ग्रामीण को दे दिया। ग्रामीण नगवाँ के पॉण्टून पुल की बात कर रहे थे। नगवाँ और जिगिना में बहुत अंतर होता है. मेरी झुंझलाहट और बढ़ गयी। मैंने नक्शे में देख प्रेमसागर को सुझाव दिया कि वे सीधे जमानिया-दिलदार नगर की ओर चलते रहें। आगे कहीं कोई पीपा का पुल मिले तो उससे कर्मनासा के गंगाजी में मिलने के पहले गंगा पार कर लें। दो तीन बार यह कहा पर मुझे लगा कि प्रेमसागर उसे ठीक से सुन नहीं रहे हैं। मैं उन्हें कुछ सुझा रहा था, ग्रामीण कुछ और सुझा रहे थे।



बलुआघाट पर गंगा पार की प्रेमसागर ने
प्रेमसागर की इस भारत दर्शन यात्रा के बहुत झोल हैं। कई हैण्डीकैप। वे नक्शा देखने में दक्ष नहीं हो पाये हैं। कोई भी व्यक्ति शॉर्टकट की बात कहता है तो उनका मन मयूर हो उठता है। यह शायद नेचुरल भी है। लम्बी यात्रा पर निकला आदमी एक एक इंच बचाना चाहता है। पर उसके साथ उनका नक्शा देखना और आगे की यात्रा का नियोजन उनका बहुत कमजोर पक्ष है। वे लोगों और स्थानों के नाम भी स्पष्टता से रजिस्टर नहीं करते। एक सज्जन ने ट्विटर पर टिप्पणी की थी कि प्रेमसागर आपके चांद पर लैण्डरोवर जैसे हैं। पर वैसा बिल्कुल नहीं है। वे मनमौजी ढंग से यात्रा मार्ग बदल लेते हैं और आगे के बारे में मुझसे कहते हैं – भईया जरा देख लीजिये कि रास्ता ठीक जा रहे हैं न?
मैंने कई बार उन्हें दिलदारनगर-गहमर की ओर बढ़ने को कहा। तब तक मैंने नेट पर छान लिया था कि गहमर के बाद बारा में पिछले साल पीपा का पुल बना है गंगा नदी पर। बारा उस स्थान से दो किमी पहले है जहां कर्मनासा गंगा में जा कर मिलती हैं। बारा में पीपा पुल पार कर वे कर्मनासा लांघने से बच जायेंगे। यह दो तीन बार बोलने पर प्रेमसागर नोट करने के लिये साथ के ग्रामीण से कागज कलम मांगने लगे। “भईया, मेरे पास डायरी थी बैग में पर रास्ते में वह रखे रखे खराब हो गयी है।”
प्रेमसागर की यात्रा बिना नोटबुक के और एक खराब मेमोरी के साथ हो रही है! मेरी झुंझलाहट पर वे सीधे प्रतिक्रिया नहीं करते पर कुछ देर बाद बोले – “अब भईया, निकल लिये हैं तो आगे महादेव जाने, माई जानें। वे ही कोई न कोई बेवस्था (व्यवस्था) करेंगे।”
और सभी हैण्डीकैप हैं प्रेमसागर के – विपन्न, साधन हीन, यात्रा नियोजन पक्ष की कमजोरी और नोटबुक-कलम जैसी बेसिक चीज का भी न होना! पर उनका एक सशक्त पक्ष है – ईश्वरीय सत्ता में अटूट विश्वास, आस्था और श्रद्धा! यही विश्वास, आस्था और श्रद्धा का फल है कि वे भारत दर्शन कर ले रहे हैं और मेरे जैसा व्यक्ति की-बोर्ड के सामने केवल खीझ रहा है!
शाम चार बजे मैंने उनकी लोकेशन देखी। वे किसी धनपुर के पास थे। आसपास कई मंदिर दीख रहे थे नक्शे में, गंगा किनारे। लगभग एक किमी पर एक मंदिर। मैंने प्रेमसागर को सुझाव दिया कि अब सांझ होने को है। अब वे किसी मंदिर या किसी और जगह अपने रात्रि विश्राम की जगह तलाशना शुरू कर दें। बेहतर हो ऐसी जगह तलाशें जो वीरान न हो। अब आगे यात्रा जारी रख कर जमानिया या दिलदार नगर नहीं पंहुचा जा सकता।

पर प्रेमसागर ने अपने हिसाब से किया। उन्होने जमानिया से सात किमी पहले अपनी यात्रा को आज का विराम दिया। एक वाहन से जमानिया पंहुच कर कोई लॉज/गेस्ट हाउस तलाशा और साढ़े पांच सौ में रुकने के लिये कमरा लिया। “सवेरे पांच बजे वापस उस जगह पर जा कर वहां से पदयात्रा शुरू कर दूंगा।” – प्रेमसागर का कहना था। उन्हें कमरा तो मिल गया पर भोजन का प्रबंध नहीं हो पाया। अपनी पोटली में जो रखा था उसी को खा कर पानी पी दिन पूरा हुआ।
जब ज्योतिर्लिंग यात्रा प्रारम्भ की थी तो प्रेमसागर कहा करते थे – “भईया किसी मंदिर के ओसारे में जमीन पर या किसी पीपल के नीचे भी रुकने में कोई दिक्कत नहीं है मुझे।” पर अब लगता है कि मंदिरों और पीपल के पेड़ के नीचे घोर असुविधा का अभ्यास नहीं रहा उनका। अपेक्षायें बढ़ गयी हैं। लोगों के सहयोग ने अपेक्षायें बढ़ाने में पर्याप्त योगदान किया है। महादेव और माई उनकी इन अपेक्षाओं को उचित ही मानते होंगे, जो वे इंतजाम किये जा रहे हैं।
लेकिन, मैं सोचता हूं – महादेव और माई बहुत खेला करते हैं। बिना प्लानिंग के चलने की, बिना नोटबुक कलम के यात्रा करने की जो बेफिक्री प्रेमसागर में है; उसे झटका देने के लिये किसी भी दिन वे पीपल के पेड़ के नीचे यात्रा विश्राम को उतार सकते हैं उन्हें! 😆
आगे कैसे और क्या होता है, देखना रोचक होगा। फिलहाल तो प्रेमसागर का कहना है – भईया एक बार बक्सर पंहुच जायें, फिर तो रास्ता भी जाना पहचाना है और लोग भी।
उनकी बक्सर की यात्रा अगले दो तीन दिन में होगी। इंतजार किया जाये। अभी तो, आप कृपया प्रेमसागर की साधन विपन्न घुमक्कड़ी के लिये उनके यूपीआई पते पर अंशदान करने की सोचें; महादेव और माता आपका भला करेंगे।
हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:।
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 34 कुल किलोमीटर – 1244 मैहर। अमरपाटन। रींवा। कटरा। चाकघाट। प्रयागराज। विंध्याचल। कटका। वाराणसी। जमानिया। बारा। बक्सर। बिक्रमगंज। दाऊदनगर। करसारा। गया-वजीरगंज। नेवादा। सिकंदरा। टोला डुमरी। देवघर। तालझारी। दुमका-कुसुमडीह। झारखण्ड-बंगाल बॉर्डर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। फुल्लारा और कंकालीताला। नलटेश्वरी। अट्टहास और श्री बहुला माता। उजानी। क्षीरसागर/नवद्वीप। |
वीणा सिंह, फेसबुक पेज पर –
उनको थोड़ा और बेहतर कैमरा वाला फोन चाहिए । बाकी ऐसी घुमक्कड़ी में अगर तैयारी लग गई तो फिर घुमक्कड़ी किस बात की🙏
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सुरेश पटेल, फेसबुक पेज पर –
जमानिया से सीधे गाजीपुर जाएगें तब कर्म नासा नदी पार नहीं करनी होगी उन्हें।
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शेखर व्यास, फेसबुक पेज पर –
ईश्वर सरल मन को प्रेरणा और संसारी मन को बुद्धि कौशल के चलते झुंझलाहट दे देते हैं । प्रेम बाबू अपनी मौज में चल रहे हैं और आप उनकी कुशलता की चाह में झुंझला रहे हैं । दोनों ही अपनी जगह सही हैं । नेपथ्य सदैव चुनौतीपूर्ण रहता है …मंच सीधा और आकर्षक । जहां तक बात उनके सुविधा मोह की है … वह उतावलेपन से प्रेरित लगता है कि सही आराम शीघ्र पूर्णता । जब तक मां जगदम्बा चाहेंगी,प्रेम बाबू ऐसे ही मौज में यात्रा करेंगे । मां का हृदय संतान के लिए अधिक द्रवित होता है । पिता सबक देते हैं , मां शिक्षा ।
उत्तर, ज्ञानदत्त पाण्डेय –
मुख्य यह है कि मैं उनकी श्रद्धा और अपनी खीझ – दोनों लिख दे रहा हूं. बिना लाग लपेट के. 😊
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