4 मार्च 23
कल यात्रा रोक कर अपने लिये रात में रुकने का डेरा ढूंढने प्रेमसागर जमानिया आये थे किसी वाहन से। आज सवेरे जमानिया के लॉज से पीछे जा कर वापस पैदल लौटने का कृत्य किया होगा। फिर उस स्थान से पैदल वापस आ, सामान ले कर सात बजे लॉज से निकले। सवेरे की रोशनी में उन्होने कुछ चित्र जमानिया के भेजे हैं। कस्बे के पास कोई नहर जाती है। उसके बैकग्राउण्ड में सेल्फी। नहर की बगल से सड़क का दृश्य। सवेरे की चहल पहल और सड़क सफाई करते कर्मचारी।

कस्बा जाग गया है। जमानिया से गहमर कुल तीस किमी है, जो आज प्रेमसागर को चलना है। ये दोनों गंगा किनारे हैं। गंगा कमान की तरह हैं और दोनो को जोड़ती सड़क, जिसपर प्रेमसागर को चलना है, धनुष की डोरी की तरह है। धनुष की डोरी और गंगाजी की कमान दर्शाती है कि घुमक्कड़ी के कारण कुछ दूरी बचा लेने का लाभ मिला है।
गंगाजी सर्पिल आकार में आगे बढ़ती हैं। उनपर मौजूद अनेक पीपे के पुल हैं। पैदल यात्री उनका प्रयोग करता आगे बढ़े तो उसके कई लाभ हैं; जो मैंने पहले नहीं सोचे थे। हाईवे से इतर चलने पर पैदल चलने वाले को सड़क ज्यादा गर्म नहीं लगती। उत्तर प्रदेश में तो एक बस्ती से अगली बस्ती, गांव लगभग सटे हैं। लोग मिलते हैं और थकान कम महसूस होती है। यह मेरा नहीं, प्रेमसागर का अनुभव है। इसके अलावा पीपे के पुल अनेकानेक नये रास्ते खोलते हैं। घुमक्कड़ी और रोचक हो जाती है – यह मैंने महसूस किया नक्शे पर अपना माउस फेरते हुये।



जमानिया के चित्र
सवेरे पौने नौ बजे प्रेमसागर से बात हुई। उनकी आवाज में उत्फुल्लता थी। पहली चाय पी चुके थे। दुकान वाले लड़के (नाम बताया अनिल) ने उन्हें पैदल शक्तिपीठ यात्री जान कर चाय के साथ जलेबी भी खिलाई थी और पैसा भी नहीं लिया था। प्रेमसागर ने उन नौजवान का चित्र भी खींच लिया। साधारण सी दुकान और प्रसन्न दीखता नौजवान या किशोर। पिछली रात प्रेमसागर को भोजन नहीं मिला था तो आज नाश्ते में माई ने जलेबी का प्रबंध कर दिया! बालक अनिल जिंदाबाद!
मेरी पत्नीजी ने इस जलेबी खिलाने को सुना तो टिप्पणी की – प्रेमसागर तुम्हारी तरह घोंघा नहीं है। तुम तो अपना नाम-काम बताते भी लजाते हो। प्रेमसागर को अपनी बड़ी यात्रा के बारे में बताने और उसके द्वारा लोगों में श्रद्धा जगाने का गुण है। तुम तो लैपटॉप पर बैठे खीझ सकते हो। वह मजे से आगे बढ़ रहा है!

आज यात्रा ठीक ही रही होगी। गंगाजी का मैदानी इलाका है। आबादी भी ज्यादा है। गांव एक दूसरे में घुसे हुये हैं। और मुख्य बात यह कि आज यात्रा में अनिश्चितता या सरप्राइज के तत्व नहीं थे। मैंने रास्ते का नक्शा और प्रेमसागर की यात्रा प्रगति का अवलोकन किया। आज इण्टरनेट अपेक्षाकृत ठीक काम कर रहा था प्रेमसागर के छोर पर और सामान्यत: लोकेशन अपडेट मिलती जा रही थी।
दिलदार नगर के आगे मैंने नक्शे में स्थानों को ध्यान से देखा – पुलीस चौकी, मेडीकल स्टोर, रेलवे स्टेशन, मंदिर – सब तरह के स्थान। मंदिरों में शैव और शाक्त दोनों की बहुतायत थी। वैष्णव मंदिर इक्का-दुक्का दिखे। इन शैव और शाक्त मंदिरों में रात गुजारना कठिन नहीं होना चाहिये। पर कई शाक्त मंदिर अघोरपंथी हैं। एक आश्रम तो गुरु कीनाराम के नाम से था। इन जगहों पर जहां मांस-मदिरा का प्रयोग पूजा-अर्चना का अंग हो, वहां प्रेमसागर ठहरने से रहे।



गहमर रेलवे स्टेशन के आसपास
और अंतत: जो स्थान तलाशा; या यूं कहें माता ने सुझाया वह अत्यंत उत्तम था। गहमर में उन्हें पता चला कि कामाख्या मंदिर, जहां रहने की अच्छी व्यवस्था होती, वह पीछे छूट गया है। वहां वापस जाने की बजाय वे आगे चले। बारा की ओर। और बारा में एक शिव मंदिर में रहने को स्थान मिल गया। जमीन पर बिछाने के लिये तिरपाल और ओढने के लिये कम्बल का इंतजाम था। मंदिर के भईया जी ने कहा कि वे प्रेमसागर के लिये भोजन भी बना देंगे। चहकते प्रेमसागर ने बताया – “मेन बात भईया कि पीपा पुल, जिसे कल सवेरे पार करना है, वह बगल में ही है।”
ॐ मात्रे नम:! माता जी ने कल प्रेमसागर को हैरान परेशान कर परीक्षा ली। लॉज में किराये के पैसे भी खर्च हुये और रात का भोजन भी नहीं मिला। आज उन्होने योग बनाया और शिवालय में आसरा दिया; कम्बल भी और भोजन भी। घुमक्कड़ी में यह मूल तत्व है – जब आप हैरान परेशान होने लगें तो बादल छंटते हैं और रोशनी नजर आने लगती है। आगे बढ़ने का जोश आ जाता है।

शिवाला के उस डेरा में क्या मच्छर नहीं होंगे? मैंने प्रेमसागर से पूछा। “पता करता हूं भईया। अगर हों तो पास की किसी दुकान से मच्छर की अगरबत्ती खरीदने की कोशिश करूंगा। वैसे एक बार नींद आ जाये तो कोई पांच सात लाठी भी मारे, मेरी नींद नहीं खुलती। मच्छर क्या असर करेंगे?” – प्रेमसागर के कथ्य में इस पक्ष से बेफिक्री झलकती थी। पर शायद उन्हे अपनी पोटली में मॉस्कीटो क्वाइल या ओडोमॉस जैसी क्रीम रखनी चाहिये। डेंगू-मलेरिया से बच कर ही यात्रा करनी चाहिये।
कल प्रेमसागर को नोटबुक – कलम न रखने पर मैंने सुनाई थी। आज उन्होने खरीद कर चित्र भेजा। उसमें उन जगहों के नाम लिखे हैं, जहां से वे आज गुजरे। दिनांक डालने की आदत अभी नहीं पड़ी। अलबत्ता ‘श्री गणेशाय नम:’ लिख दिया है! 🙂

प्रेमसागर को इस तरह की डायरी का अधिकाधिक प्रयोग करना सीखना चाहिये। यह उतनी ही जरूरी है (मेरे हिसाब से), जितना मोबाइल।
अगले दिन की यात्रा –
प्रेमसागर को पीपा का पुल पार कर गंगा किनारे चलते जाना है – बीरपुर से चाक छुटी तक करीब पांच-छ किमी। चाक छुटी में पुन: गंगा पार कर उत्तर प्रदेश से बिहार के बक्सर जिले में प्रवेश करना है। गंगा पार करने पर स्थान नक्शे में दीखता है मदनपुरा। मदनपुरा से बक्सर 8-9 किमी की दूरी पर है। बक्सर को प्रेमसागर “अपनी जान पहचान की जमीन” मानते हैं। 🙂
गंगाजी को दो बार पांच किमी में पार कर U टर्न लेने से वे कर्मनासा नदी लांघने से बच जाएंगे. इस बीच कर्मनासा गंगाजी में मिल कर पवित्र हो चुकी होंगी.
हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:।
(ॐ मात्रे नम: – माता का मंत्र है। यह कुछ वैसा ही है जैसे गायत्री मंत्र। तांत्रिक साधना का मंत्र नहीं।
श्री अरविंद आश्रम के संत हीरालाल माहेश्वरी जी को मैं जब भी पैर छूता था तो वे आशीर्वाद स्वरूप यही कहते थे – मात्रे नम:! माहेश्वरी जी अब नहीं हैं। पर उनकी याद यह मंत्र लिखते समय बरबस हो आती है।)
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दिन – 34 कुल किलोमीटर – 1244 मैहर। अमरपाटन। रींवा। कटरा। चाकघाट। प्रयागराज। विंध्याचल। कटका। वाराणसी। जमानिया। बारा। बक्सर। बिक्रमगंज। दाऊदनगर। करसारा। गया-वजीरगंज। नेवादा। सिकंदरा। टोला डुमरी। देवघर। तालझारी। दुमका-कुसुमडीह। झारखण्ड-बंगाल बॉर्डर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। फुल्लारा और कंकालीताला। नलटेश्वरी। अट्टहास और श्री बहुला माता। उजानी। क्षीरसागर/नवद्वीप। |